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अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि 1984 के दंगों में दिल्ली में 2700 से अधिक सिख मारे गये थे जो निश्चित ही ‘अकल्पनीय पैमाने का नरसंहार' था. अदालत ने कहा था कि यह मानवता के खिलाफ उन लोगों द्वारा किया गया अपराध था जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था और जिनकी कानून लागू करने वाली एजेन्सियां मदद कर रही थीं. अदालत ने अपने फैसले में इस तथ्य का जिक्र किया कि देश् के बंटवारे के समय से ही मुंबई में 1993 में, गुजरात में 2002 और मुजफ्फरनगर में 2013 जैसी घटनाओं में नरसंहार का यही तरीका रहा है और प्रभावशाली राजनीतिक लोगों के नेतृत्व में ऐसे हमलों में ‘अल्पसंख्यकों'को निशाना बनाया गया और कानून लागू करने वाली एजेन्सियों ने उनकी मदद की.
उच्च न्यायालय ने गत 21 दिसंबर को सज्जन कुमार के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने अदालत में समर्पण की अवधि 30 जनवरी तक बढ़ाने का अनुरोध किया था. सज्जन कुमार ने यह अवधि बढ़ाने का अनुरोध करते हुये कहा था कि उन्हें अपने बच्चों और संपत्ति से संबंधित कुछ पारिवारिक मसले निपटाने हैं और कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देने के लिये भी समय की आवश्यकता है.सज्जन कुमार की संलिप्तता वाला सिख विरोधी दंगों का यह मामला दक्षिण पश्चिम दिल्ली की पालम कालोनी के राज नगर पार्ट-I में 1-2 नवंबर, 1984 को पांच सिखों की हत्या और एक गुरूद्वारे को जलाने की घटना के संबंध में है.
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तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी सुरक्षा में तैनात दो सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मार हत्या करने की घटना के बाद दिल्ली और देश के कुछ अन्य राज्यों में सिख विरोधी दंगे भड़क गये थे. सज्जन कुमार के वकील ने बताया कि शीर्ष अदालत में 22 दिसंबर को दायर अपील की त्रुटियों को दूर कर लिया गया है. उन्होंने कहा कि चूंकि इस समय शीर्ष अदालत में अवकाश चल रहा है, इसलिए इस पर शीर्ष सुनवाई का अनुरोध करने के लिये उल्लेख करने का भी अवसर नहीं है. ऐसी स्थिति में समय का अभाव है. शर्मा ने बताया कि इस मामले में सज्जन कुमार की पैरवी के लिये उन्हें अभी वरिष्ठ अधिवक्ता की सेवायें भी लेनी है।
दंगा पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का ने पहले ही शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर कर रखी है ताकि सज्जन कुमार के पक्ष में एकतरफा कोई आदेश नहीं सुनाया जा सके.उच्च न्यायालय ने इस मामले में सज्जन कुमार को बरी करने का निचली अदालत का 2010 का फैसला निरस्त कर दिया था। मामले में अन्य दोषियों में कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोखर, नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और पूर्व विधायक महेन्दर यादव और किशन खोखर शामिल हैं.
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