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मुकेश की अधुरी चाहत....

Posted at: Jul 11 , 2018 by Dilersamachar 9851

दिलेर समाचार, बद्री प्रसाद जोशी, मुकेशचंद माथुर को दिल्ली में बैठे-बैठे विचार आया कि मोतीलाल राजवंश बंबई में सफल हीरो बन गये हैं और अपने रिश्तेदार भी हैं। यदि बंबई जाकर भाग्य आजमाया जाये तो मैं भी हीरो बन सकता हूं। यह विचार आते ही मुकेश चंद बालकेश्वर रोड पर स्थित गवर्नमेंट गेट के सामने वाले बंगले में पहुंच गये।

मोतीलाल ने मुकेशचंद को समझाया कि अभिनेता बनने के लिए अभिनय की लायकात का होना जरूरी है। मुकेशचंद गोरे थे और अभिनेता बन सकें, ऐसी थोड़ी लायकात तो उनमें थी ही। मोतीलाल के जरिये उन्हें नेशनल स्टूडियो की फिल्म ‘निर्दोष‘ में नलिनी जयवंत के साथ मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला। उनका फिल्मी पर्दे का नाम भी मुकेश ही था।

‘निर्दोष‘ के प्रदर्शन के बाद मुकेश के सारे सपने टूट गये। अभिनेता के रूप में वे असफल रहे। इसलिये ‘जब जागे तभी सवेरा वाली‘ कहावत पर चलते हुए उन्होंने अपने कैरियर के बारे में नये सिरे से सोचना शुरू कर दिया। वे एक अच्छे गायक थे परंतु गायक के रूप में वे सफल होंगे या नहीं, इसका उन्हें संदेह था पर अभिनेता के रूप में असफल होने के बाद उनके मन में गायक  बनने की इच्छा हुई।

वे अपने स्नेही दोस्तों में अपनी आवाज के लिये प्रशंसित थे। कई दोस्तों ने मिलकर मुकेश के साथ कई व्यक्तिगत पार्टियों व समारोहों में गायन का कार्यक्रम भी दिया पर वे गायक के रूप में श्रोताओं पर प्रभाव न डाल सके।

किस्सा 1944 का है। मुकेश रहते तो थे मोतीलाल के साथ पर गवर्नमेंट गेट के स्टॉप पर न उतरकर मलबार हिल के अंतिम स्टॉप पर उतरते। इसके पीछे उनका यही मकसद था कि इस लंबी बस यात्रा में कोई संुदरी तो उनकी तरफ आकर्षित हो और सरला पीमावाला की तरफ वे आकर्षित भी हुए। दोनों में प्रेम हुआ और फिर शादी।

एक दिन मोतीलाल ने अनिल विश्वास के सामने मुकेश का जिक्र किया। उन्होंने उनसे मुकेश का टेस्ट लेने की सिफारिश की। अनिल विश्वास ने मुकेश का टेस्ट लिया। मुकेश का स्वर माइक के अनुकूल था, इसलिये उन्होंने मुकेश से वादा किया कि वे उन्हें कभी चांस जरूर देंगे।

1947 में मुकेश को वह चांस मिला। मजहर खान ‘पहली नजर‘ नामक फिल्म बना रहे थे। उसका संगीत तैयार कर रहे थे अनिल विश्वास। इस फिल्म में उन्होंने मुकेश से ‘दिल जलता है तो जलने दे’ गीत गवाया। लोग इस गीत को सुनकर झूम उठे। उन्हें लगा कि यह गीत जैसे सहगल ने गाया है। यहीं से शुरू हुई मुकेश की सफल यात्रा।

धीरे-धीरे मुकेश को प्लेबैक गायक के रूप में सफलता मिलने लगी। उनसे पहले और उस समय दुरानी, तलत महमूद, कनुराय आदि प्लेबैक गायक के रूप में लोकप्रिय थे, परंतु मुकेश इनकी लोकप्रियता को भी पार कर गये और लोगों ने उन्हें काफी पसंद किया।

मुकेश का स्वभाव शुरू से ही चंचल था। उनके मन में अभिनेता बनने की जो इच्छा थी, वह निर्दोष में पूरी नहीं हुई, इसलिये उन्होंने फिर एक बार दांव लगाया। उन्हें कोई भी निर्माता अभिनेता बनाने के लिए तैयार नहीं था, इसलिये मुकेश स्वयं निर्माता बने और ‘मल्हार‘ का निर्माण किया। उन्हें फिर एक बार कड़वा अनुभव प्राप्त हुआ। चूंकि मुकेश निर्माता बन गये थे, इसलिये किसी भी संगीतकार ने उनसे गीत गवाना उचित नहीं समझा।

एक तो वे अपनी निर्माण व्यवस्था में घिरे हुये थे। दूसरे वे समय पर रिकार्डिंग के लिये नहीं पहुंच पाते थे। संगीतकारों को दोहरी तकलीफ झेलनी पड़ती थी, इसलिये मुकेश से न गवाने का उनका फैसला वाजिब था।

‘मल्हार’ में जबरदस्त नुकसान होने के बाद मुकेश स्वयं को फिर से स्थिर करने के लिये प्रयत्न करने लगे। प्लेबैक गायक का अपना स्थान प्राप्त करने के लिये उन्होंने संघर्ष करना शुरू कर दिया। आर. के. फिल्म्स्, राजकपूर और शंकर- जयकिशन ने उनके इस संघर्ष में उनका साथ दिया। मुकेश जो कुछ समय के लिये मोहम्मद रफी से पिछड़  गये थे, फिर उनके साथ हो लिये पर उनके कैरियर के उतार-चढ़ाव तब भी बरकरार थे।

उसी समय बी. एम. व्यास ने मुकेश को हीरो बनाकर ‘माशूका‘ का निर्माण किया। इसके पीछे  भी एक किस्सा है। सौराष्ट्र की एक स्टेट के बासाहेब फिल्म क्षेत्रा में रूचि लेने लगे थे, कारण थे मुकेश। बासाहेब ने निर्माता-निर्देशक बी. एम. व्यास से आग्रह किया कि वे एक फिल्म बनाना चाहते हैं जिसे वे निर्देशित करें पर उस फिल्म में वे एक ही शर्त पर पैसा लगाने के लिये तैयार थे कि नायक मुकेश हों। बासाहेब मुकेश पर फिदा हो गये थे। मुकेश के ही लिये वे एक फिल्म में पैसा रोकने के लिये तैयार हो गये थे।

जो होना था, वही हुआ, ‘निर्दोष‘ और ‘मल्हार‘ जैसी हालत ‘माशूका‘ की हुई। इसके बाद मुकेश ने भीष्म प्रतिज्ञा की कि वे फिर कभी अभिनेता बनने का विचार भी अपनी जुबां पर नहीं लाएंगे।

इन कड़वे अनुभवों के बाद मुकेश बहुत ही गंभीर और व्यावहारिक हो गये थे। जो नये युवा फिल्म क्षेत्रा में अभिनेता या प्लेबैक गायक बनने आते, वे उनका मार्गदर्शन करते। वर्षों तक प्लेबैक गायक और विदेशों में अपने कार्यक्रम पेश करने वाले छोटे-बड़े प्लेबैक गायक मुकेश के साथ विदेश गये और विदेशों में रहने वाली भारतीय जनता का मनोरंजन कर उनका प्यार व श्रद्धा हासिल की।

ऐसे ही एक विदेशी दौरे में मुकेश के साथ लता मंगेशकर भी गयी। वह दौरा अमरीका का था। उनके पुत्रा नितिन मुकेश भी उनके साथ गये थे। अमरीका की वह यात्रा उनके लिये जानलेवा साबित हुई। मुकेश को हृदय रोग की बीमारी पहले से ही थी परंतु उस यात्रा में उनके हृदय ने उनको धोखा दे दिया। अमरीका में ही उनकी हृदयगति रूक गयी  और वे सदा-सदा के लिये ये दुनियां छोड़  गये। एक विशेष जहाज में लता मंगेशकर और नितिन मुकेश उनके शव को मुंबई लाये और यहीं उनका अंतिम संस्कार  किया गया।

मुकेश का गायन हमेशा एक ही लीक पर चलता रहा। वे दर्द भरे गीतों को बड़े ही खूबसूरत ढंग से गाते। राजकपूर और मुकेश की आवाज में एकरूपता थी, इसलिये राजकपूर ने अपना हर गीत मुकेश की आवाज में ही पिरोया। मोहम्मद रफी के आने के बाद मुकेश का कार्यक्षेत्रा प्रभावित हुआ, क्योंकि मोहम्मद रफी हर प्रकार के गीत गाने में निपुण थे।

मुकेश को जो आनंद लता मंगेशकर के साथ गीत गाने में मिला, वैसा अन्य गायिकाओं के साथ नहीं मिला। लता मंगेशकर भी मुकेश का बहुत आदर करती थी और उन्हें मुकेश भैया कहकर बुलाती थी। मुकेश ने लगभग 25 वर्षों तक प्लेबैक गायक के रूप में फिल्म उद्योग में राज किया।

मुकेश पहले गायक थे जो दीर्घकाल तक संगीतकारों और निर्माताओं के बीच लोकप्रिय बने रहे। वे फिल्म क्षेत्रा में अभिनेता बनने आये थे पर बन गये गायक। उनके साथ ही दिल्ली से मोतीसागर भी आये थे। वे आये थे प्लेबैक गायक बनने और बन गये अभिनेता। ये सारे तकदीर के खेल तमाशे हैं। दुःख की बात तो यह है कि मुकेश का बहुत ही छोटी उम्र यानी 56 वर्ष की उम्र में ही निधन हो गया।  

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