दिलेर समाचार, रमेश ठाकुर: पिछले दिनों देश के कोने-कोने से आए हजारों किसानों ने दिल्ली की हुकूमत को अपने तल्ख लहजे से ललकारा, कहा सुधर जाओ नहीं तो अंजाम बुरा होगा। देश की राजधानी दिल्ली को रैलियों व प्रदर्शन की स्थली माना जाता है। यहां का प्रख्यात जंतर-मंतर हर रोज दर्जनों धरना-प्रदर्शन आदि का गवाह बनता रहा है। दरअसल मुल्क की हुकूमत यहीं वास करती है इसलिए लोग अपनी कुंद आवाज यहीं आकर बुलंद करते हैं जो सभी का मौलिक अधिकार भी है लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार को यह बर्दाश्त नहीं कि कोई उनकी सरकार व उनकी नीतियों के खिलाफ धरना स्वरूप विरोध
करे।
इसी दौरान पिछले सप्ताह पूरे हिंदुस्तान से करीब हजारों की संख्या में किसानों ने एकत्रा होकर मोदी सरकार को ललकारा। किसानों ने रामलीला मैदान से संसद तक मार्च निकाला। सियासत की कर्मस्थली किसानों के जयकारों से गूंज उठी। इस दौरान पूरी राजधानी चक्का-जाम में तब्दील हो गई। इसे अन्नदाताओं की ताकत और हिम्मत ही कहेंगे कि चुनावी वक्त में इस तरह का साहस जुटाया। किसानों की ललकार से सरकार थोड़ी असहाय और चिंतित जरूर हुई है। किसानों की मांगों पर सरकार कितना गौर करेगी, ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन किसानों ने सरकार के तोते जरूर उड़ा दिए हैं।
महाराष्ट्र के किसानों द्वारा लगातार आत्महत्याएं करना, यूपी के किसानों का सालों से गन्ने का भुगतान न होना और फसलों पर उचित मूल्य न मिलना जैसे तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिनसे अन्नदाता आहत हैं। मोदी सरकार से किसान संगठनों ने ऋण की समस्या के समाधान के लिए एक व्यवस्था स्थापित करने की भी मांग की है। किसानों ने प्रधानमंत्राी पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनाव-प्रचार के दौरान फसलों के लिए अच्छी कीमतें दिलाने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने का वादा किया था जो बाद में सिर्फ हवाई साबित हुए।
इस समय किसान भयंकर परेशानियों से घिरा है। यूं कहें कि अन्नदाता सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। उनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं कर रहा। कीमतें नहीं मिलने पर अपनी फसलों को सड़कों पर फेंक रहे हैं। दरअसल वर्तमान में लागत और आमदनी के बीच असंतुलन की वजह ईंधन, कीटनाशक, उर्वरक और पानी की बढ़ती कीमतों के कारण लागत में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे किसान ऋण की समस्या का सामना नहीं कर पा रहे और आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। कृषि उपज की कम कीमतें किसानों को ऋण की ओर धकेल रही हैं। वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि नेताओं को अन्नदाताओं की जरूरत चुनाव के वक्त ही पड़ती है क्योंकि उस दौरान उनसे वोट हासिल करना होता है। इससे पहले और उसके बाद उनकी कोई जरूरत नहीं। नेताओं की इसी भूल और भ्रम को तोड़ने के लिए रामलीला मैदान में देश भर के करीब 187 किसान संगठनों ने अपने हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जुटकर केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। किसानों ने इस ललकार की पटकथा 6 जुलाई को मंदसौर में लिखी थी। मंदसौर से चला किसानों का काफिला बीस प्रांतों से होकर दिल्ली पहुंचा जहां किसान संसद में तब्दील हुआ। केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बिगुल बजाकर पूरे हिंदुस्तान का भ्रमण करते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की किसान मुक्ति यात्रा का समापन दिल्ली के रामलीला में हुआ।
खेतीबाड़ी करना आज के समय में सबसे कठिन और घाटे का क्षेत्रा माना जाने लगा है। किसान नोटबंदी और जीएसटी से बेहाल हो गए हैं। लोग किसानी छोड़ दूसरे धंधों में आ रहे हैं। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर 187 किसान संगठनों ने एक मंच पर आकर सभी ने एक सुर में मोदी सरकार के किसान विरोधी फैसलों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। किसानों की मांगंे जायज हैं। सालों से अपना हक मांग रहे हैं।
पिछली सरकारों ने भी इनके साथ छल किया। इन्हें चुनावों के वक्त इस्तेमाल किया। बाद में कोई नहीं पूछता। दरअसल अब किसान फसलों की कीमतों के आंकलन के साथ वैध हक के तौर पर पूर्ण लाभकारी कीमतें और उत्पादन लागत पर कम से कम 50 फीसदी का लाभ अनुपात पाना चाहते है। उनकी मुख्य मांगों की बात करें तो वह फौरन व्यापक कर्ज माफी सहित कर्ज से आजादी चाहते हैं और कर्ज की समस्या के हल के लिए सांविधिक संस्थागत तंत्रा स्थापित किए जाने की भी मांग कर रहे हैं।
किसान प्रधानमंत्राी के उस वायदे को आधार बनाकर चल रहे हैं जो उन्होंने लोकसभा चुनाव में कहे थे। प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि यदि वह चुने जाते हैं तो किसानों को अपनी फसलों के लिए अच्छी कीमतें मिलेंगी और स्वामाीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा पर, वह दोनों वायदों से मुकर गए। वर्तमान में लागत और आमदनी के बीच असंतुलन की वजह ईंधन, कीटनाशक, उर्वरक और यहां तक कि पानी सहित लागत की कीमतों में लगातार वृद्धि का होना है। इन चीजों का किसान सामना कर रहे हैं।
किसान इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पर रहा है। यही वजह है कि कीमतों में घोर अन्याय किसानों को कर्ज में धकेल रहा है, वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं और देश भर में बार-बार प्रदर्शन हो रहे हैं। किसानों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है अगर उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो राष्ट्रीय राजधानी में तीसरे दौर का प्रदर्शन शुरू किया जाएगा। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी किसान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। अब ये देखने वाली बात होगी कि किसानों की ललकार सरकार के कानों में कितना प्रभाव छोड़ेगी।
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