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इतिहास को विकृत करने के अपराधी

Posted at: Dec 13 , 2017 by Dilersamachar 9719

दिलेर समाचार,डा. विनोद बब्बर: इतिहास का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इससे हम अपने स्वर्णिम अतीत के साथ-साथ अंधकार के कारणों को भी समझ सकते हैं। हमारा इतिहास हमारे वर्तमान का पूर्वज है। जिस तरह से पूर्वज नहीं बदले जा सकते, उसी तरह से इतिहास भी बदला नहीं जा सकता लेकिन हमारे यहां कुछ लोगों ने पूजा-पद्धति बदलने के साथ ही अपने पूर्वज भी बदल लिये, उसी तर्ज पर भारतीय संस्कृति के विरोधी  हमारे इतिहास को इस तरह से प्रस्तुत करना चाहते हैं जिससे आमजन का मनोबल कमजोर हो। संस्कृति द्रोही लोगों के लिए सांस्कृतिक गौरव से कटे हुए लोगों को भ्रमित कर बांटना बहुत आसान होता है। यह एक बहुत बड़ा षड़यंत्रा है जिसकी जानकारी हर व्यक्ति को होनी चाहिए।

यदि देश की युवा पीढ़ी को पाठ्यक्रम के माध्यम से लगातार पढ़ाया जाये कि विदेशी लुटेरे और आक्रांता महान थे तथा अपने देश और संस्कृति के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले क्रांतिकारी आतंकवादी अथवा सिरफिरे थे तो समझा जा सकता है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को उसके गौरवशाली अतीत से काटने का अपराध कर रहे हैं। जो काम पहले मुगलों  और फिर अंग्रेजों ने किया, दुर्भाग्य से उसे स्वतंत्राता के बाद भी एक विचारधारा के प्रभाव में आकर जारी रखा गया। ऐसे में यदि देश का साम्प्रदायिक सद्भाव कमजोर हुआ है तो उसकी जिम्मेवारी उनकी है जो इतिहास को विकृत करने के अपराधी हैं।

यह सर्वविदित है कि हमें आजादी केवल तकली से नहीं मिली हैं। असंख्य भारतवासियों ने अपार कष्ट सहे, बलिदान दिया लेकिन श्रेय एक परिवार तक सीमित रखते हुए शहीदे-आजम सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, वीर सावरकर, भाई परमानंद, राजा महेन्द्र प्रताप, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लाला हरदयाल जैसी असंख्य विभूतियों को इतिहास में वह स्थान और सम्मान

नहीं दिया गया जिसके वे अधिकारी थे।

यदि हम बहुचर्चित पद्मावती फिल्म की बात करें तो निर्माता ने अपनी आदत के अनुरूप जानबूझ कर फिल्म की पटकथा में महारानी पद्मावती के बारे में कुछ ऐसी बातें शामिल की जिससे आत्मसम्मान के लिए जौहर करने वाली इस देवी का चरित्राहनन होता है। राजस्थान में फिल्म की शूटिंग के दौरान इसका जबरदस्त विरोध हुआ तो कड़ी सुरक्षा के बीच शूटिंग पूरी की गई है। अब जबकि फिल्म तैयार होकर रिलीज के लिए निकट है परंतु विवाद जारी है क्योंकि जब बार-बार कहा गया कि फिल्म के निर्माता को पटकथा को लेकर  समाज के महत्त्वपूर्ण लोगों को विश्वास में लेना चाहिए। इसे संजय भंसाली ने स्वीकार भी किया था लेकिन न जाने क्यों भंसाली ने ऐसा करना उचित नहीं समझा। इससे समाज में आशंका प्रबल हुई कि इसमें अवश्य कुछ आपत्तिजनक है हालांकि बाद में विरोध करने वाले पक्ष की अनदेखी करते हुए कुछ चुनिंदा संपादकों को फिल्म दिखाई। यहां उनका उद्देश्य विवाद खत्म करना नहीं बल्कि अपनी फिल्म का प्रचार करवाना था।

यह ठीक है कि उन्हें फिल्म बनाने का अधिकार है लेकिन किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार उन्हें तो क्या किसी को भी  नहीं है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ इतिहास को विकृत करना नहीं हो सकता। उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता अवश्य है लेकिन अन्य सभी को भी अपने पूर्वजों के अपमान का विरोध करने का अधिकार है। आश्चर्य यह है कि तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक ऐसा वर्ग भंसाली के पक्ष के लामबंद है जो डेनमार्क में बने एक कार्टून पर भारत में हिसंक विरोध पर मौन रहता है या उनका समर्थन करता है।

क्या यह सत्य नहीं कि इस फिल्म का जो ट्रेलर जारी किया है, उसमें  भंसाली ने दीपिका पादुकोण को पद्मावती के तौर पर दिखा कर अश्लील नृत्य करवाया है? जिन संपादकांे को फिल्म दिखाई गई है, उन्होंने जिस कथानक की चर्चा की है, उसमें भी अनेक ऐतिहासिक गड़बडि़यां हैं, जैसे कि फिल्म में दिखाया गया है कि रतन सिंह को छुड़ाने पद्मावती गयी तो क्या पद्मावती ने जौहर नहीं किया? स्पष्ट है कि इसे मनमाने ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यहां यह जानना आवश्यक है कि सेंसर बोर्ड को भेजे फार्म में संजय भंसाली ने यह स्पष्ट नहीं किया कि पद्मावती फिल्म काल्पनिक है या ऐतिहासिक?

भंसाली उत्तर दें या न दें लेकिन भारत की जनता जानती है कि पद्मावती का चरित्रा ऐतिहासिक है। अनेक इतिहासकारों और जनकवियों ने पद्मावती के  बलिदान को बहुत श्रद्धा से स्मरण किया है। अटल जी की एक बहुचर्चित कविता में उस देवी के जौहर की ज्वाला की तुलना भारतीय संस्कृति के प्रतीक भगवा से की गई है। स्पष्ट है कि इस फिल्म में अनेक काल्पनिक बातंे जोड़ी गई है। फिल्म को चर्चित बनाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी के साथ प्रेम प्रसंग जानबूझकर डाला गया है।

इस विवाद से उत्पन्न परिस्थितियों की मांग है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता को पुनःपरिभाषित किया जाना चाहिए ताकि समाज को ऐसे  अनावश्यक तनावों और विवादों से बचाया जा सके।  काल्पनिक कहानी और इतिहास में अंतर किया जाये। इतिहास और उसके पात्रों के साथ छेड़छाड़ की अनुमति ही नहीं होनी चाहिए। जो फिल्म निर्माता देश की छवि को विकृत ढंग से प्रस्तुत कर रातोंरात धन और प्रसिद्धि पाना चाहते हैं, उनपर अंकुश लगाना समय की मांग है।

सरकार को स्कूली पाठ्यक्रम से भी इतिहास की विकृतियों को दूर करने में तत्परता दिखानी चाहिए ताकि देश की भावी पीढ़ी को जहां सही इतिहास बोध प्राप्त हो, वहीं उनका आत्मबल और आत्मसम्मान कायम रहे तथा उनके मन में अपनी श्रेष्ठ विरासत को संरक्षित रखने का जज्बा पैदा हो।  यही देश और समाज के वृहद हित में भी है।

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