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देवउठनी एकादशी – आपके किस्मत के बंद दरवाजे खोल सकते हैं श्रीहरि

Posted at: Nov 18 , 2018 by Dilersamachar 10010

दिलेर समाचार, दीपावली के 11 दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव-प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी की तरह मनाया जाता है। पारंपरिक मान्यता के तहत आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात देवशयनी एकादशी से रूकेहुए विवाहों या अन्य शुभ कार्य इस दिन से प्रारंभ होते हैं।

कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्ना हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है।

अत: इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है। इस दिन पूजन के साथ व्रत रखने को भी बड़ा महत्व दिया जाता है। महिलाएं इस दिन आंगन में गेरू तथा खड़ी से मांडणे सजाती हैं और तुलसी विवाह के साथ ही गीत एवं भजन आदि के साथ सभी उत्सव मनाते हैं।

देवउठनी एकादशी की पौराणिक मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद वध किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देव उठनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान श्रीविष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए।

एक अन्य मान्यता के अनुसार एक बार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा कि आप दिन-रात जागा करते हैं और जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं और उस समय समस्त सृष्टि का क्रम गड़बड़ाया रहता है। ऐसे में आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें तो मुझे भी विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराकर बोले कि मेरे जागने से सब देवों को और खास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता।

इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी अल्पनिद्रा भक्तों के लिए परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा।

तो आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से शयनकाल में गए श्रीहरि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को शयनकाल से लौटते हैं। उसे उत्सव की तरह मनाया जाता है।

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