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हैप्पी होना ही है दुखो का कारण..?

Posted at: Jul 6 , 2018 by Dilersamachar 9572

दिलेर समाचार, मनोज जानी, इतनी तकलीफ़ तो अंग्रेजों ने सौ साल तक गुलाम बनाकर भी नहीं दी, जितना अकेले उनके एक शब्द ने दी है। यह शब्द है, हैप्पी। हालांकि हैप्पी का अर्थ हमारे अज्ञानी विद्वान खुश होना बताते हैं लेकिन मैं अपने निजी अनुभवों से निर्विवाद रूप से यह मानने लगा हूं कि हैप्पी का मतलब दुख या परेशानी होती है।

पैदा होने से लेकर मरने तक लोग जितनी बार भी ’हैप्पी‘ का कोड़ा मारते हैं, आप खुद विचार कीजिये कि उसमें कितना दुख छिपा होता है। जिस दिन बच्चा पैदा होता है उस दिन हर साल लोग ’हैप्पी बर्थडे‘ कहकर बधाई देते हैं।

लोग केवल मुंह से ’थैंक्यू‘ सुनकर तो लौटने वाले नहीं। बर्थडे की पार्टी से जब तक मुंह बन्द न करो, हैप्पी बर्थडे कहां पूरा होता है।

जैसे ही बच्चा जवानी की दहलीज पर कदम रखता है, ’हैप्पी वैलेण्टाइन डे‘ स्वागत के लिये तैयार रहता है। अब कोई लड़का किसी लड़की को बिना गिफ्ट दिये हैप्पी वैलेण्टाइन बोलेगा तो लड़की अनहैप्पी हो जायेगी और अगर जेब काटकर (पेट काटकर नहीं) गिफ्ट देकर हैप्पी वैलेण्टाइन डे कहेगा तो कितना खुश रहेगा।

कुछ और बड़ा होगा तो शादी करेगा। फिर लोग ’हैप्पी मैरिड लाइफ‘ कहकर चिढ़ाते हैं। अब मैरिज करके कितने लोग खुश हैं, यह तो एक गूढ़ प्रश्न है। लोग इतने पर भी केवल एक बार हैप्पी मैरिज कहकर नहीं बख्शते बल्कि हर साल हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी मनाना भी नहीं भूलते। पुराने जख्मों को कुरेदने से न जाने कौन सी खुशी मिलती है।

इसके अलावा देश में जितने भी त्योहार ’हैप्पी‘ के लिये बनाये गये हैं, सभी अनहैप्पी करने के लिये काफी होते हैं। साल के शुरूआत से शुरू करें। ’हैप्पी न्यू ईयर‘! ठंड में ठिठुरते हुये रात के बारह बजे दारू की बोतल के साथ, हैप्पी न्यू ईयर! सुबह चांद-सूरज से लेकर बीवी और पड़ोसन तक वही। ’न्यू‘ क्या हुआ? वही कूड़े के ढेर से कचरा बीनते बच्चे, दवा के बिना मरते गरीब, आत्महत्या करते किसान, ठण्ड से ठिठुर कर सर्दी से मरते सरकार द्वारा कम्बल पाये लोग। सब वैसे ही। ’हैप्पी‘ कौन हुआ? बस, जिसने ’पी‘, वही ’हैप्पी‘।

इसके बाद आयेगा ’हैप्पी रिपब्लिक डेे‘! जरा पब्लिक से पूछिये कितनी हैप्पी है। यहां तो बस पब्लिक ही पब्लिक है, रिपब्लिक कहां है? इस रिपब्लिक में नेता और अफसर के अलावा पब्लिक कहां खुश है? फिर भी हैप्पी रिपब्लिक डे।

रिपब्लिक डे की हैप्पी गयी नहीं, कि ’हैप्पी होली‘ आ गयी। महंगाई से लाचार आम आदमी गुझिया की ओर ललचाई निगाहों से देखकर ही ’हैप्पी‘ होने की गलतफहमी पाल लेता हैं नहीं तो भांग-छुपी खाकर ’हैप्पी‘ हो लेता है। दारू, भांग और धतूरे में कौन सी ’हैप्पीनेस‘ छुपी है, यह तो खाने वाला ही जाने।

सबसे ज्यादा चिढ़ाती है ’हैप्पी दिवाली‘। दीवाला निकाल कर भी हैप्पी रहने को मजबूर कर देती है। गाढ़ी कमाई के पैसों का दिवाला निकालकर कौन हैप्पी होता है, यह शोध का विषय है। क्या इतने उदाहरणों के बाद भी आप हैप्पी का मतलब खुश होना समझते हैं। ।

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