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हार्दिक पटेल ने उठाया सवाल कहा, जब बाबू बजरंगी की सजा बरकरार तो माया कोडनानी बरी कैसे?

Posted at: Apr 20 , 2018 by Dilersamachar 10190

दिलेर समाचार, अहमदाबाद । गुजरात में 2002 में हुए नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए माया कोडनानी को बरी किए जाने, जबकि बाबू बजरंगी की सजा को बरकरार रखा. न्‍यायालय के इस फैसले के बाद पाटीदार आंदोलन का नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि माया कोडनानी को बरी करना बड़ा सवाल है. उन्‍होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब बाबू बजरंगी की सजा बरकरार रखी गई तो माया कोडनानी बरी कैसे. हार्दिक पटेल ने जी न्‍यूज ने बातचीत में कहा कि न्‍यायपालिका पर भरोसा करना ही पड़ता है.

उल्‍लेखनीय है कि जस्टिस हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद पिछले साल अगस्त में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. इस केस में स्पेशल कोर्ट ने बीजेपी विधायक माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत 32 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

कोडनानी ने किया था इलाके का दौरा- एसआईटी

इस मामले की पिछली सुनवाई में एसआईटी ने कोर्ट में कहा था कि घटना के अगले दिन विधानसभा में शोक सभा का आयोजन किया गया था. शोक सभा में शामिल होने के बाद माया कोडनानी इलाके में गई थीं. इलाके के दौरा करने के बाद उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए उकसाय़ा था. एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक माया कोडनानी जब वहां से चली गईं तो इसके बाद लोग दंगे पर उतारू हो गए. वहीं, स्पेशल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कोडनानी ने कहा है कि एसआईटी के पास उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है.

 

जानें, कोर्ट ने किसे कितनी सजा दी

कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. एक अन्य बहुचर्चित आरोपी बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. सात अन्य को 21 साल के आजीवन कारावास और अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था. जहां दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, वहीं विशेष जांच दल ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

नरोदा पाटिया नरसंहार मामला

उल्लेखनीय है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां जलाने की घटना के बाद 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में नरसंहार हुआ था. इस दौरान 97 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी, जबकि 33 लोग जख्मी हुए थे. जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. इस डिब्बे में 59 लोग थे, जिसमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कार सेवक थे.

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