दिलेर समाचार, सीमा पासी। संसद के दोनों सदनों में मोदी जी का भाषण कोई साधारण भाषण नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देने का यह तरीका सही नहीं है लेकिन आज की राजनीति में सही और गलत का ध्यान किसे है। यह भी एक असाधारण बात है कि जब प्रधानमंत्राी बोल रहे हो तो विपक्ष हल्ला मचाये और वो भी इतना ज्यादा कि प्रधानमंत्राी को चिल्लाना पड़े। एक असाधारण बात यह भी थी कि प्रधानमंत्राी के डेढ़ घंटे लम्बे भाषण के दौरान विपक्ष चिल्ला-चिल्ला कर उनको रोकने की कोशिश करता रहा लेकिन प्रधानमंत्राी रूके नहीं बल्कि उनका भाषण संसद में दिये गये अब तक के उनके भाषणों में से सबसे लम्बा भाषण सिद्ध हुआ।
एक असाधारण बात यह भी थी कि हल्ला मचाने वालों का प्रधान उन्हें चुप कराने की जगह खुद ही चुप बैठा रहा और फिर वो बाद में मीडिया में चिल्ला रहा था कि मोदी जी ने जवाब नहीं दिया और यह उनका राजनीतिक भाषण था मैं भी उनकी बात से सहमत हूं कि ये संसदीय भाषण नहीं था, यह सिर्फ राजनीतिक भाषण था जैसे कोई रैली चल रही हो। अब सवाल उठता है कि जवाब मांगने वाले हल्ला नहीं मचाते बल्कि बात को सुनते हैं लेकिन आप तो वहाँ केवल शोर मचाने के लिये आये हुए थे।
राहुल की उपस्थिति में काँग्रेसी सांसदों का हल्ला मचाना असाधारण नहीं था क्योंकि उनकी मर्जी के बिना ऐसा नहीं हो सकता लेकिन ऐसा हो रहा था तो उसका नुकसान किसको हो रहा था, यह बात राहुल क्यों नहीं समझ पा रहे थे। ऐसा लगता है कि स्पीकर उन्हें रोकना नहीं चाहती थी क्योंकि उन्होंने भी चुप्पी साध रखी थी और वो चुपचाप मोदी जी का भाषण सुनती रही। एक तरह से देखा जाये तो संसद में काँग्रेसी सांसदों के शोर-शराबे को जनता देख रही थी और समझ भी रही थी और यही बात मोदी जी और स्पीकर महोदया भी समझ रही थी कि जब विपक्ष खुद ही जनता की नजरों में खुद को नीचे गिरा रहा है तो उसे क्यों रोकने की कोशिश की जाये।
प्रधानमंत्राी के डेढ़ घंटे के भाषण के दौरान इन सांसदों का लगातार चीखना चिल्लाना न केवल संसद का बल्कि देश का भी अपमान है और ये अपमान काँग्रेसी सांसद उनके नये नवेले अध्यक्ष के सामने कर रहे थे लेकिन वो बेचारे अध्यक्ष महोदय जानते ही नहीं है कि प्रधानमंत्राी का सम्मान क्या होता है जो उन्हें रोकने की कोशिश करते। जिन्होंने अपनी ही सरकार के प्रधानमंत्राी का अपमान किया हो, वो भला दूसरे दल के प्रधानमंत्राी का सम्मान कैसे कर सकते हैं। यह विडम्बना ही कही जायेगी कि लोकतन्त्रा को खतरे में बताने वाले ही लोकतन्त्रा का अपमान कर रहे थे।
अब बात आती है मोदी जी के भाषण की तो उसके बारे में पहली बार में ही यह बात दिखायी देती है कि मोदी जी चुनावी मोड में आ चुके हैं क्योंकि उनका भाषण संसद को सम्बोधित न होकर देश की जनता को सम्बोधित था। यह साफ दिखाई दे रहा था कि वो वहाँ किसी सरकार के मुखिया की जगह किसी राजनीतिक दल के मुखिया की तरह बोल रहे थे। मोदी जी ने कहा कि चुनाव के समय चुनावों की बात की जायेगी लेकिन उनका भाषण चुनावी घोषणा ही थी। काँग्रेस के बढ़ते हमले बता रहे हैं कि वो चुनावी मूड में आ गई है लेकिन मोदी जी ने जैसा हमला किया है, वो बता रहा है कि काँग्रेस की लड़ाई कितनी मुश्किल होने वाली है। काँग्रेस जिन मुद्दों को लेकर चुनावों में जाने की सोच रही है उनका करारा जवाब देकर मोदी जी ने काँग्रेस को चेता दिया है कि वो मुद्दे चलने वाले नहीं हैं। संसद के दोनों सदनों में दिये गये अपने भाषणों में मोदी जी ने संसद में किये गये सवालों का जवाब देने की जगह उन सवालों के जवाब दिये जो काँग्रेस सड़कों पर पूछती रहती है।
वैसे देखा जाये तो मोदी जी ने जवाब कम दिये बल्कि सवाल कहीं ज्यादा खड़े कर दिये। जिस इतिहास को लेकर काँग्रेस भाजपा पर हावी होने की कोशिश करती है, मोदी जी ने उसी काँग्रेसी इतिहास की धज्जियाँ उड़ा दी और काँग्रेस को चुनाव में जाने से पहले ही सोच में डाल दिया है। यह भाषण वर्तमान की जगह आने वाले चुनावों की तीखी राजनीति का संकेत है। जहाँ काँग्रेस ने संसद की मर्यादा भंग की है, वहीं मोदी जी भी जिस तेवर के साथ बोल रहे थे, वो तेवर एक सत्तासीन प्रधानमंत्राी को शोभा नहीं देता लेकिन लगता है कि राजनीतिक मर्यादा की जगह अब बची नहीं है।
इतना कहा जा सकता है कि मोदी जी के भाषण ने न केवल राजग सांसदो को बल्कि देशभर में फैले हुए भाजपा के कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह का संचार किया है।
अगर आप बजट का विश्लेषण करें तो आप जान जायेंगे कि यह बजट पूरी तरह से चुनावी बजट है क्योंकि मोदी सरकार ने इस बजट में अपना पूरा ध्यान निम्न वर्ग की समस्याओं पर केन्द्रित किया है ताकि इसकी चुनावी संभावनायें बेहतर हो सके। जिस तरह से काँग्रेसी मोदी जी पर हमले करते समय नैतिकता, मर्यादा, शालीनता और असभ्यता की सारी सीमायें लाँघ रहे थे, उसका ऐसा करारा जवाब मोदी जी की तरफ से आयेगा, ऐसा किसी भी राजनीतिक विश्लेषक ने नहीं सोचा होगा। वास्तव में मोदी जी समझ रहे हैं कि वाजपेयी की शालीनता 2004 में काम नहीं आयी थी क्योंकि वाजपेयी जी के भारत के कायापलट देने वाले विकास कार्यों के बावजूद काँग्रेसी प्रचार ने उन्हें पटकनी दे दी थी। उस वक्त किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भाजपा की चुनावों में ऐसी हालत होगी लेकिन झूठा प्रचार जीत गया और विकास हार गया।
मोदी जी और बाजपेयी जी ने बड़ा अन्तर है। वाजपेयी जी अपनी बात बेहद मर्यादापूर्ण ढंग से रखते थे लेकिन मोदी जी जैसे को तैसा जवाब देने के लिये जाने जाते हैं। जब राज्यसभा में काँग्रेसी सांसद रेणुका चौधरी ने उनके भाषण के दौरान उनका उपहास उड़ाने के लिये बेहद भद्दे तरीके से अट्टहास के साथ हंसी तो उन्होंने ऐसा करारा कटाक्ष किया कि पूरी काँग्रेस तिलमिला उठी और वो तिलमिलाहट जाने का नाम नहीं ले रही है। आने वाले लोकसभा चुनावों में जिन मुद्दों पर भाजपा को घेरने की तैयारी चल रही है उनमें से रोजगार,विदेशी मामले, रक्षा नीति, एनपीए, महंगाई और हिंसा पर ऐसा करारा जवाब दिया है कि विपक्ष को नये मुद्दे तलाशने के लिये निकलना पड़ेगा। जनता किसका साथ देती है यह बाद की बात है लेकिन आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में मोदी से मुकाबला करना कितना मुश्किल है, यह बात राहुल जी को समझ आ गई होगी।
जिन समस्याओं को लेकर काँग्रेस हमलावर है उन समस्याओं को काँग्रेस के ही सिर पर मढ़कर मोदी जी ने बता दिया है कि उनका चुनावी प्रचार किस दिशा में जाने वाला है। यह भाषण और इस भाषण के दौरान विपक्षी दलों का रवैय्या बता रहा है कि आने वाले चुनाव किस माहौल में होने जा रहे हैं। आने वाले चुनावों में शालीनता, सभ्यता और नैतिकता के लिये कोई जगह नहीं होगी, दोनों तरफ से जोरदार हमले होंगे लेकिन जनता को समझना होगा कि कौन सही है और कौन गलत लेकिन जनता की मुसीबत यह होगी कि न कोई पूरी तरह से सही होगा, न ही कोई पूरी तरह से गलत।
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