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क्या चर्च का भाजपा के खिलाफ फतवा राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं?

Posted at: Mar 3 , 2018 by Dilersamachar 9707

राकेश सैन

दिलेर समाचार, चर्च का नाम सुनते ही ध्यान में आते हैं सच्चाई के लिए सूली पर चढ़े प्रभु ईसा मसीह, मन की गहराई तक उतर जाने वाली शांति और मानवता का संदेश देती बाइबल परंतु आजकल के चर्च का अर्थ केवल इतना ही सबकुछ नहीं है। चर्च पर धन बल के सहारे गरीबों का धर्म खरीदने के आरोप तो ब्रिटिश काल से लगते रहे परंतु अब चर्च राजनीति में भी उतर आया है। मनपसंद प्रत्याशियों को वोट देना, किसके पक्ष में मतदान करना और किसका बहिष्कार, इसका फैसला भी चर्च करती है। अंतर केवल इतना है कि अगर ऐसा ही काम मठ-मंदिर करे तो उसका हल्ला मच जाता है परंतु चर्च की राजनीति उसकी घंटियों के शोर में दब गई है।

पूर्वोत्तर में तीन राज्यों की विधानसभाओं के लिए इसी महीने हुए मतदान को लेकर नगालैंड के बैपटिस्ट चर्च ने एक खुला पत्रा लिख कर कहा है कि लोग भाजपा का विरोध करें क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा है। लोगों को संघ का भय दिखाया जा रहा है परंतु असलियत यह है कि चर्च पूर्वोत्तर में देश की बढ़ रही रुचि व केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे ध्यान से चिंतित है। चर्च अभी तक गलत दावा करती आ रहा है कि इस इलाके में लगभग सारी आबादी ईसाई बन चुकी है जबकि सच्चाई यह है कि यहां का समाज आज भी कबीलों में बंटा और अपनी उन आस्थाओं से जुड़ा है जो वृहत हिंदू समाज का ही अंग हैं। सच्चाई सामने आने और जमीन दरकने की आशंका से चर्च चिंतित है और पूरा प्रयास है कि भाजपा जैसा कोई राष्ट्रवादी दल इस इलाके में प्रवेश न कर सके  और चर्च की विदेशी धन पर चल रही दुकानदारी यूं ही चलती रहे।

पुराणों में नागभूमि के नाम से वर्णित नगालैंड में राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों और विचारधाराओं के बजाय आदिवासियों, गांवों और व्यक्तिगत मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं परंतु अबकी बार बैपटिस्ट चर्च की तरफ से कहा गया है कि अनुयायी पैसे और विकास की बात के नाम पर ईसाई सिद्धांतों और श्रद्धा को उन लोगों के हाथों में न सौंपें जो यीशु मसीह के दिल को घायल करने की फिराक में रहते हैं। राज्य में बैप्टिस्ट चर्चों की सर्वोच्च संस्था नगालैंड बैपटिस्ट चर्च परिषद् ने नगालैंड की सभी पार्टियों के अध्यक्षों के नाम एक खुला खत लिखा है कि भाजपा सरकार में अल्पसंख्यक समुदायों ने सबसे बुरा अनुभव किया है।

एनबीसीसी के प्रवक्ता ने कहा-हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से हिंदुत्व का आंदोलन अभूतपूर्व तरीके से मजबूत और आक्रामक हुआ है। प्रभु जरूर रो रहे होंगे जब नगा नेता उन लोगों के पीछे गए जो भारत में हमारी जमीन पर ईसाई धर्म को नष्ट करना चाहते हैं। चर्च के नेता ईसाई बहुल तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में बीजेपी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को लेकर सावधान हैं। नगालैंड में  बीजेपी ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठजोड़ किया है।

अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान देश के वनवासी व गिरीवासी इलाकों में ईसाई मिशनरियों को खूब प्रोत्साहन दिया और भारतीयों के प्रवेश पर रोक लगा दी। इसका असर यह हुआ कि यहां चर्च ने बड़ी तेजी से अपने पांव पसारे परंतु पूरी ताकत झोंकने के बाद भी इन इलाकों को पूरी तरह क्रास की छाया के नीचे नहीं ला पाई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार नगालैंड की जनसंख्या 88 प्रतिशत ईसाई, 9 प्रतिशत हिंदू और 2 प्रतिशत मुस्लिम हैं लेकिन सच्चाई यह है कि नगा समाज अंगामी, आओ, चखेसंग, चांग, दिमासा कचारी, खियमनिंगान, कोनयाक, लोथा, फोम, पोचुरी, रेंगमा, संगतम, सूमी, इंचुंगेर, कुकी और जेलियांग आदि जातियों में विभक्त है और अपने कबीलाई रीति रिवाजों का पालन करते हैं। ये रितिरिवाज वृहत हिंदू धर्म के अंग माने जाते हैं लेकिन पूर्वोत्तर की राजनीति व प्रशासनिक व्यवस्था में चर्च का अत्यधिक हस्तक्षेप होने के कारण क्रिसमस वाले दिन अपने घर के बाहर तारे व क्रास से सजावट करने वाले हर परिवार को ईसाई मान लिया जाता है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि हिंदू समाज सभी धर्मों का पालन करने वाला है और करोड़ों लोग हिंदू होने के बावजूद क्रिसमस सहित अन्य धर्मों के समारोह भी मनाते हैं परंतु चर्च ने इसका अर्थ उन्हें ईसाई होने में निकाल लिया है। चर्च को लगने लगा है कि कहीं चुनावों के जरिए इस क्षेत्रा में राष्ट्रवादी दल के मजबूत होने से उसका झूठ दुनिया के सामने आ सकता है और शायद यही कारण है कि चर्च आज भाजपा व आरएसएस के खिलाफ इस तरह  का अलोकतांत्रिक फतवा जारी कर रही है।

चर्च का डरना स्वाभाविक भी है क्योंकि नगालैंड 1 दिसंबर, 1963 को देश का 16वां राज्य बना परंतु संघ ने इससे पहले ही वहां अपना काम शुरू कर दिया था। नगालैंड के गवर्नर पद्मनाभ आचार्य ने वहां भारत मेरा घर के नाम से अभियान शुरू किया था। आचार्य आरएसएस से जुड़े हुए थे। आरएसएस को इस इलाके में लोगों ने 90 के दशक से अहमियत देनी शुरू की थी। आज लोग संघ को मानने लगे हैं। पहले तो उन्हें संघ के बारे में पता ही नहीं था, लेकिन अब लोगों को ये अंदाजा है कि आरएसएस लोगों और समाज के भले के लिए काम कर रहा है। लोगों का हम पर भरोसा बढ़ रहा है। हम समाज को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चर्च की इस अलोकतांत्रिक हरकत पर देश के सेक्युलर तानेबाने ने न जाने क्यों मुंह में दही जमा लिया है। क्या यह धर्म का राजनीति में हस्तक्षेप नहीं?

गुजरात विधानसभा चुनाव में भी गांधीनगर के आर्च बिशप थामस मैकवान ने चिट्ठी लिखकर ईसाई समुदाय से अपील की थी कि वे ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ को हराने के लिए मतदान करें। चर्च का इस तरह निरंतर राजनीति में हस्तक्षेप स्पष्ट तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय एवं चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन है और इसे सख्ती से रोका जाना चाहिए।

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