दिलेर समाचार- नक्सलियों ने परंपरागत तीर-धनुष को घातक रूप देते हुए इसे एक मारक हथियार में तब्दील कर दिया है. जंगलों के भीतर सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने में ये नक्सलियों के लिए एक सस्ते विकल्प के तौर पर भी सामने आया है. नक्सली अब रैम्बो तीर का सहारा लेकर सुरक्षाबलों को निशाना बना रहे हैं.
खास बात यह है कि इस तीर को बनाने के लिए किसी खास तरह की महारथ की दरकार नहीं होती. तीर की नोक पर विस्फोटक बांधकर इसे चलाया जाता है. जानकार इसे छोटे जगहों काफी घातक मानते हैं. ठेठ देसी तरीके से बनी बन्दूकों की जगह अब यही तीर लेने जा रहे हैं.
दरअसल इसी के सहारे नक्सली अब सुरक्षाबलों को नुकसान पंहुचा रहे हैं. इसमें बन्दूक से गोली नहीं बल्कि विस्फोटक बंधे तीरों को चलाया जाता है, जिससे सीमित जगह पर काफी नुकसान पहुंचता है. इसे हाल ही में सुरक्षाबलों ने झारखण्ड के चाईबासा जिले के नक्सली ठिकानों से बरामद किया है.
इस तरह के हथियार छत्तीसगढ़ में भी इस्तेमाल किये गए हैं. इसमें तीर की नोक पर प्लास्टिक विस्फोटक बांधा जाता है जो निशाने पर टकराते ही फट कर व्यापक नुकसान पहुंचाते हैं.
क्यों घातक हैं ऐसे तीर
झारखण्ड के घोर नक्सलग्रस्त जिले खूंटी के सुदूरवर्ती बोंदा गावं में पहले आदिवासी तीर-धनुष का इस्तेमाल जंगली जानवरों से आत्मरक्षा या फिर कभी-कभार हिंसक जानवरों के शिकार के लिए करते हैं. अब इन्हीं तीरों के अगले भाग पर नक्सलियों ने IED जैसे घातक विस्फोटकों का इस्तेमाल कर सभी को चौंका दिया है.
उन्नत किस्म के इन तीरों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा में सुरक्षाबलों को व्यापक क्षति पहुंचाई. नक्सली अब विस्फोटक सूंघने के लिए प्रशक्षित कुत्तों को भ्रमित करने के लिए विस्फोटक पहले ही जानवरों को मल देते हैं. इन्हें न सूघ पाने की वजह से डॉग स्क्वॉयड के दो प्रशिक्षित मेंबर्स को अपनी जान गवांनी पड़ी.
दरअसल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर तीर बम का इस्तेमाल कर एक नई चुनौती पेश कर दी है. लैंड माइन और बूबी ट्रैप से बचाव की तकनीक सीख कर नक्सलियों से लोहा लेनेवाले जवानों को अब इस नई मुसीबत से बचाव के भी गुर बहुत जल्द सीखने होंगे. ऐसे में उन्हें अब जमीन पर नजर साधने के साथ-साथ पेड़ो पर भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि हमले का जाल कहीं से भी बुना जा सकता है.
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