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वाजपेयी सरकार में जम्मू-कश्मीर के वार्ताकार रह चुके एनएन वोहरा के हाथ में अब घाटी की कमान

Posted at: Jun 20 , 2018 by Dilersamachar 9527

दिलेर समाचार,नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से मंजूरी मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में आज (बुधवार से) तत्काल प्रभाव से राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. ऐसे में राज्यपाल नरिंदर नाथ वोहरा की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई है क्‍योंकि 28 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है. आपको बता दें कि बीजेपी ने मंगलवार को प्रदेश की सत्तारूढ़ बीजेपी-पीडीपी गठबंधन से अलग कर लिया था. इसके बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया था. बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस लेते हुए कहा था कि राज्य में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद के बीच सरकार में बने रहना असंभव हो गया है. मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्यपाल एन. एन. वोहरा ने राष्ट्रपति को भेजे गये एक पत्र में राज्य में केन्द्र का शासन लागू करने की सिफारिश की थी. इसकी एक प्रति केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गयी थी. राष्ट्रपति ने वोहरा कि सिफारिश को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद आज तत्काल प्रभाव से प्रदेश में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. 

कौन हैं एन एन वोहरा
1 - 2008 से हैं जम्मू-कश्मीर के गवर्नर और 28 जून को उनका कार्यकाल खत्‍म हो रहा है. 
2 - वोहरा के कार्यकाल में 3 बार लगा राज्यपाल शासन लग चुका है.
3 - वर्ष 2003 में वाजपेयी सरकार में जम्मू-कश्मीर के वार्ताकार भी बने और वर्ष 2003 से 2008 तक वह जम्मू-कश्मीर में वार्ताकार भी रहे. 
4 - वह पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल के प्रमुख सचिव भी रह चुके है और इसके आलावा गृह सचिव, रक्षा सचिव पर रह चुके हैं. 
5- संगठित अपराधियों, माफिया और नेताओं के बीच के संबंधों की जांच के लिए 1993 में गठित एन. एन. वोहरा समिति की रिपोर्ट काफी चर्चा में रही. गृह सचिव रहते हुए अक्टूबर 1993 में इन्होंने वोहरा (कमेटी) रिपोर्ट सौंपी थी.  आपको बता दें कि जम्‍मू-कश्‍मीर में पिछली बार मुफ्ती सईद के निधन के बाद आठ जनवरी, 2016 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का शासन लागू हुआ था. उस दौरान पीडीपी और भाजपा ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से संस्तुति मिलने पर जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 92 को लागू करते हुए वोहरा ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाया था. जम्मू-कश्मीर में मार्च 1977 को पहली बार राज्यपाल शासन लागू हुआ था.  उस समय एल के झा राज्यपाल थे. सईद की अगुवाई वाली राज्य कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख महमूद अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था. मार्च 1986 में एक बार फिर सईद के गुलाम मोहम्मद शाह की अल्पमत की सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण राज्य में दूसरी बार राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था.

इसके बाद राज्यपाल के रूप में जगमोहन की नियुक्ति को लेकर फारूक अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था. इस कारण सूबे में तीसरी बार केंद्र का शासन लागू हो गया था. सईद उस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री थे और उन्होंने जगमोहन की नियुक्ति को लेकर अब्दुल्ला के विरोध को नजरंदाज कर दिया था. इसके बाद राज्य में छह साल 264 दिन तक राज्यपाल शासन रहा, जो सबसे लंबी अवधि है. इसके बाद अक्तूबर, 2002 में चौथी बार और 2008 में पांचवीं बार केंद्र का शासन लागू हुआ. राज्य में छठीं बार साल 2014 में राज्यपाल शासन लागू हुआ था.

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