Logo
April 24 2024 08:49 AM

12 सितंबर को है हरतालिका तीज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व

Posted at: Sep 11 , 2018 by Dilersamachar 10088

दिलेर समाचार, नई दिल्‍ली: हिन्‍दू धर्म को मानने वाली महिलाओं में हरताल‍िका तीज (Hartalika Teej) का विशेष महत्‍व है. इस दिन गौरी-शंकर की पूजा का विधान है. मान्‍यता है कि हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है. यह त्‍योहार मुख्‍य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है. कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को गौरी हब्‍बा के नाम से जाना जाता है.
हरतालिका तीज कब है?
हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार हरतालिका तीज भाद्रपद यानी कि भादो माह की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है. इस बार हरताल‍िका तीज का व्रत 12 सितंबर को है. 


हरतालिका तीज का महत्‍व 
सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्‍व है. हरतालिका दो शब्‍दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका. हरत का मतलब है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'. प्राचीन मान्‍यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्‍हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्‍णु से उनका विवाह न करा पाएं. सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्‍था है. महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्‍य का वरदान देते हैं. वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्‍त‍ि होती है. 

हरतालिका तीज की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त 
तृतीया तिथि प्रारंभ: 11 सितंबर 2018 को शाम 6 बजकर 4 मिनट. 
तृतीया तिथि समाप्‍त: 12 सितंबर 2018 को शाम 4 बजकर 7 मिनट. 
प्रात: काल हरतालिका पूजा मुहूर्त: 12 सितंबर 2018 की सुबह 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक.

हरतालिका तीज का व्रत कैसे करें?
हरतालिका तीज का व्रत अत्‍यंत कठिन माना जाता है. यह निर्जला व्रत है यानी कि व्रत के पारण से पहले पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित है. व्रत के दिन सुबह-सवेरे स्‍नान करने के बाद "उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये" मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लिया जाता है.  हरतालिका तीज के व्रत के नियम 
- इस व्रत को सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्‍याएं रखती हैं. लेकिन एक बार व्रत रखने के बाद जीवन भर इस व्रत को रखना पड़ता है. 
अगर महिला ज्‍यादा बीमार है तो उसके बदले घर की अन्‍य महिला या फिर पति भी इस व्रत को रख सकता है. 
- इस व्रत में सोने की मनाही है. यहां तक कि रात को भी सोना वर्जित है. रात के वक्‍त भजन-कीर्तन किया जाता है. मान्‍यता है कि इस दिन व्रत करने वाली महिला अगर रात को सो जाए तो वह अगले जन्‍म में अजगर बनती है. 
- मान्‍यता है कि अगर व्रत करने वाली महिला इस दिन गलती से भी कुछ खा-पी ले तो वह अगले जन्‍म में बंदर बनती है. 
- मान्‍यता है कि अगर व्रत करने वाली महिला इस दिन दूध पी ले तो वह अगले जन्‍म में सर्प योनि में पैदा होती है.

हरतालिका तीज की पूजन सामग्री 
हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लें: गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल और फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, वस्‍त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद.  

मां पार्वती की सुहाग सामग्री: मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, सुहाग पिटारी. 

हरतालिका तीज की पूजन विधि 
हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय. हरतालिका तीज के दिन इस प्रकार शिव-पार्वती की पूजा की जाती है: 
- संध्‍या के समय फिर से स्‍नान कर साफ और सुंदर वस्‍त्र धारण करें. इस दिन सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं. 
- इसके बाद गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं.  
- दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत बनाएं.
- सुहाग की सामग्री को अच्‍छी तरह सजाकर मां पार्वती को अर्पित करें. 
- शिवजी को वस्‍त्र अर्पित करें. 
- अब हरतालिका व्रत की कथा सुनें. 
- इसके बाद सबसे पहले गणेश जी और फिर शिवजी व माता पार्वती की आरती उतारें. 
- अब भगवान की परिक्रमा करें. 
- रात को जागरण करें. सुबह स्‍नान करने के बाद माता पार्वती का पूजन करें और उन्‍हें सिंदूर चढ़ाएं. 
- फिर ककड़ी और हल्‍वे का भोग लगाएं. भोग लगाने के बाद ककड़ी खाकर व्रत का पारण करें.
- सभी पूजन सामग्री को एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें.

हरतालिका तीज का पर्व कैसे मनाते हैं?
सुहागिन महिलाओं को साल भर हरतालिका तीज का इंतजार रहता है. इस‍ दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और दिन भर भजन-कीर्तन करती हैं. हरतालिका तीज का व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन नए कपड़े पहनकर सोलह श्रृंगार करती हैं. इस दिन खासतौर पर लाल या हरे रंग के कपड़े पहने जाते हैं. महिलाएं एक दिन पहले ही हाथों में मेहंदी लगा लेती हैं ताकि व्रत वाले दिन मेहंदी अच्‍छी तरह रच जाए. व्रत के दिन घर में हल्‍वा, पूरी और खीर बनाई जाती है. शाम के वक्‍त महिलाएं गौरी-शंकर की आराधना करती हैं और अगले दिन सुबह व्रत तोड़ती हैं.

हरतालिका तीज की व्रत कथा 
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था. मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया. एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं. नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं. भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी.

फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है. यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा. माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं. यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.

उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे. फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे. इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए.

ये भी पढ़े: 100 कुंटल विदेशी फूलों से सजा Golden Temple...

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED