एस.आर. बादशाह
दिलेर समाचार, क्रोध आवेश जन्य स्थिति है, तात्कालिक और क्षणिक प्रमाद है। यह एक विचार मात्रा नहीं, भावों का आवेग है जिसके आने से शांति भंग हो जाती है, श्वासें तीव्र हो जाती हैं और हृदय विक्षुब्ध हो जाता है। इसका संपूर्ण शरीर संस्थान और मन संस्थान पर प्रभाव पड़ता है। क्रोधी व्यक्ति अशांति, और आवेश से घिरा रहता है। उसके घर में कलह छिड़ा रहता है जिसके कारण वह अपमानित होता है एवं घृणा का पात्रा बनता है।
व्यक्ति अपने जीवन में कई व्यक्तियों के नित्य सम्पर्क में आता है और विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है। जन व्यवहार या परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो वह सुखी और प्रसन्न होता है लेकिन जब व्यवहार और परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं या उसकी कामना पूर्ति नहीं होती तो उसके मन में क्षोभ पैदा होता है और वह प्रतिकूल व्यवहार करने वाले पर, प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा करने वाले पर और कामना पूर्ति में बाधक या अवरोधक बनने वाले पर उत्तेजित होकर उन्हें हानि पहुंचाने या नष्ट भ्रष्ट करने पर आमादा हो जाता है।
यह आवेग कई बार इतना तीव्र होता है कि व्यक्ति अपनी समझ बूझ और विवेक को ताक में रखकर हत्या, मारपीट या खून खराबा कर बैठता है। इस प्रकार की आवेशपूर्ण स्थिति को बाधक या अवरोधक होने पर आना वाला क्रोध भी कह सकते हैं।
अकारण क्रोधः- व्यक्ति की क्रुद्ध मनः स्थिति पर जब कोई उसके सम्पर्क में आता है तो वह उन पर अकारण उत्तेजित होकर क्रोध करता है, जैसे पति पत्नी आपस में झगड़ा कर रहे हों और उसी बीच बच्चा आ जाता है तो वे जरा सी बात पर बच्चे पर उत्तेजित होकर क्रोधित हो जाते हैं। दफ्तर का बाबू जब अपने अधिकारी से डांट खाकर आता है और पत्नी पर जरा सी बात पर उत्तेजित होकर क्रोधित होता है। इस प्रकार की आवेगपूर्ण स्थिति को अकारण क्रोध भी कह सकते हैं।
स्थायी क्रोधः- मस्तिष्कीय संरचना ऐसी है कि जब कोई आवेग बार-बार उदय होता है तो उसके संस्कार गहरे पड़ते हैं। फिर वह आवेग स्वभाव का अंग बन जाता है। इसी प्रकार क्रोध का आवेग जब बार-बार उदय होता है तो लंबे अभ्यास के कारण व्यसन बन जाता है। ऐसा व्यक्ति बार-बार क्रोधित होता रहता है। इस आवेग पूर्ण स्थिति को स्थायी क्रोध कह सकते हैं।
आज युवा, वृद्ध, स्त्राी, पुरूष व्यवसायी और नौकरी पेशा, गरीब अमीर हर वर्ग और हर स्तर का व्यक्ति क्रोध से ग्रसित रहता है। कोई व्यक्ति छोटे फल वाले से उधार फल मांगता है और वह पहले के पैसे बाकी होने के कारण देने से इंकार कर देता है तो वह उसकी इतनी पिटाई करता है कि वह मर जाता है। उसे इसके कारण आजीवन कारावास या फांसी की सजा भुगतनी पड़ती है। रोने और पछताने के अतिरिक्त उसके पास कुछ नहीं रहता है।
क्रोधी व्यक्ति अपनी कामना पूर्ति में बाधक व्यक्ति को हानि पहुंचाना चाहता है पर उसके समर्थ शक्तिशाली होने पर, उसे हानि न पहुंचाने की स्थिति में अपना सिरफोड़ कर, बाल नोच कर, अंग भंग करता और आत्महत्या कर अपना नुकसान कर लेता है।
क्रोध के कारण शरीर में तनाव हो जाने से रक्त संचालन में तीव्रता आती है, शरीर में अनावश्यक गर्मी बढ़ जाती है एवं बढ़ी गर्मी के कारण आंतों का पानी सूख जाता है और पाचन क्रिया शिथिल हो जाती है जिससे जीवनी शक्ति क्षीण हो जाती है।
क्रोध में शारीरिक शक्ति ही नहीं, मानसिक शक्ति का भी हृास होता है। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. जे. एस्टर ने क्रोध के कारण होने वाली मानसिक शक्ति के हृास के संबंध में कहा है, ‘पन्द्रह मिनट क्रोध के रहने से मनुष्य की जितनी शक्ति नष्ट होती है उससे वह साधारण अवस्था में नौ घंटे कड़ी मेहनत कर सकता है। शक्ति का नाश करने के साथ क्रोध शरीर और चेहरे पर अपना प्रभाव छोड़कर उसके स्वास्थ्य सौन्दर्य को भी नष्ट कर देता है। ऐसे व्यक्ति में जवानी में ही बुढ़ापे के चिन्ह प्रकट हो जाते हैं।‘
जब क्रोध आता है तो हृदय की धड़कन आम स्थिति की अपेक्षा कई गुना बढ़ जाती है और हृदय पर पहले की अपेक्षा अधिक दबाव पड़ता है। इस स्थिति में हृदय की धड़कन बढ़ जाने के कारण शरीर में रक्त परिभ्रमण भी पहले की अपेक्षा ज्यादा होने लगता है जिससे रक्तचाप तथा हृदय संबंधी रोग की संभावना बहुत बढ़ जाती है। आंखों पर भी क्रोध का प्रभाव पड़ता है। उस समय आंखों की दृष्टि सीमा में फैलाव आ जाता है और इसके कारण कई नेत्रा रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार - क्रोध को शांत करने के लिये एक गिलास ठंडा पानी पीना चाहिये जिससे मस्तिष्क व शरीर की गर्मी शांत होकर क्रोध दूर हो सके।
एक विद्वान का मत है कि जिस स्थान पर क्रोध आये, उस स्थान से उठकर और कहीं चले जाना या किसी और काम में लग जाना अच्छा है। इससे मन की दशा बदल जाती है और चित्त का झुकाव दूसरी ओर हो जाता है।
क्रोध सदैव जल्दबाजी का परिणाम होता है। क्रोध आने पर उसके कारण की बारीकी से जांच करनी चाहिये। कभी-कभी जल्दी में गलत निर्णय हो जाने से क्रोध के कारण बहुत हानि उठानी पड़ती है, अतः निर्णय करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये।
क्रोध आने पर इसका समाधान करने में देर नहीं लगानी चाहिये जैसे घास चरते हुए हिरन ने फुफकारते हुए सर्प को देखते ही मार डाला और पुनः घास चरने लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो।
इस प्रकार क्रोध सब प्रकार से हानिकारक है। विश्व के समस्त धर्मशास्त्रों और नीति गं्रथों में क्रोध को विनाशकारी बताया है और त्याज्य ही ठहराया है, इसलिये सुख, शांति, उन्नति चाहने वाले को इससे बचना ही चाहिए।
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