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लोगों मे होनी चाहिए बैडरूम और सार्वजनिक स्थान के अंतर की समझ

Posted at: Sep 22 , 2017 by Dilersamachar 9727

दिलेर समाचार,महिलाओं के प्रति अपराध एक मानसिक समस्या है जिसका संबंध अपराधी के चरित्र और संस्कारों से तो है ही, तात्कालिक परिस्थितियों से भी है।जांच के बाद यह तथ्य सामने आया कि केवल पेशेवर अपराधी ही नहीं, कुछ अपने तो कभी-कभी कुछ साधनहीन लोग भी यौन शोषण में शामिल पाये जाते हैं। पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में हुई एक ऐसी घटना में रिक्शावाला तो दूसरी में मजदूर शामिल था। एक
सेवानिवृत्त अधिकारी की हत्या में पकड़ी गई युवती की दास्तां तो बहुत दर्दनाक है। पहले नौकरी का झांसा देकर तो बाद में ब्लैकमेल कर लगातार यौन शोषण करने वाले अधिकारी से छुटकारा पाने के लिए उसे ऐसा करना पड़ा।निश्चित रूप से ऐसी घटनाएं किसी भी सभ्य समाज पर कलंक हैं लेकिन हम तो हर घटना का समाधान पुलिस प्रशासन और राजनीतिक छींटाकशी में ढ़ूंढ़ते हैं।उप्र के एक नेता द्वारा विरोधी दल की नेता के प्रति ‘अपशब्दों’ का उपयोग निश्चित रूप से निंदनीय है लेकिन उसके बदले उसकी बेेकसूर बेटी को ‘पेश करने की मांग उससे भी बड़ा अपराध है। दरअसल इस समस्या की जड़ें मानसिकता में है जो हमारे परिवेश में विद्यमान हैं लेकिन आश्चर्य कि हम जड़ों पर प्रहार कर स्थाई समाधान के बारे में सोचते तक नहीं। हमारा सारा जोर ‘सख्त कार्यवाही पर रहता है। दोषी को सख्त सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन यह भी देखना होगा कि हमारी मानसिकता को दूषित करने वाले तत्व कौन से हैं। उन्हें भी बख्शा नहीं जाना चाहिए।
पहले दिल्ली को ही लें।दिल्ली मेट्रो विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेवा होने के नाते सम्पूर्ण राष्ट्र का गौरव है। आज इसके बिना दिल्ली के जनजीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि लगभग हर मेट्रो स्टेशन और चलती मेट्रो में भी ‘गलबहियों करते युवा जोड़े दिखाई देते हैं। अनेक बार तो ऐसे दृश्य उत्पन्न हो जाते हैं कि शर्म से सिर झुक जाता है। ऐसे ही दृश्यों की क्लिपिंग गत वर्ष सामने भी आ चुकी हैं लेकिन हमने क्या किया? सरकार ने क्या किया?, मेट्रो प्रशासन ने क्या किया? क्या मौन समाधान है?
टीवी चैनलों से बेलगाम इन्टरनेट तक कामुकता की बाढ़ आई हुई है। क्या लगातार ऐसे दृश्य देखने का आज के युवा के मन-मस्तिष्क पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता? जिनके पास साधन हैं वे कोई अनैतिक लेकिन अपेक्षाकृत ‘सभ्य तरीका अपना सकते हैं परंतु साधनहीन लेकिन पथभ्रष्ट किसी ‘आसान शिकार की तलाश में किसी बच्ची, किसी विक्षिप्त, किसी अधेड़ को शिकार बनाते हैं। यहां हमारा उद्देश्य उनके साथ किसी तरह की नरमी का नहीं है। हर दोषी को ‘कठोरतम सजा दी ही जानी चाहिए लेकिन साथ ही उनकी मानसिकता को दूषित करने वाले वातावरण को भी ‘जस का तस नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
उन्हें इतना सभ्य अवश्य बनाना होगा कि वे ‘बैडरूम और ‘सार्वजनिक स्थान के अंतर को समझ सके। मेट्रो में ऐसा व्यवहार करने वालों को यदि कोई सख्त सजा न भी दी जाये तो भी क्या हर दोषी के परिजनों को बुलाकर उनके बच्चों के व्यवहार के बारे सूचित करना तेजी से बढ़ते अनैतिक और असहनीय परिवेश में परिवर्तन का सबब बन सकता है या नहीं?
हो सकता है कुछ लोग इसे ‘मोरल पुलिसिंग घोषित करें, लेकिन स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का अंतर हर वयस्क को मालूम होना चाहिएं? आखिर कोई भी स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती। उसकी एक सीमा तो निर्धारित करनी ही पड़ती है। यदि आप युवाओं के कुछ भी करने को उनका मानवाधिकार मानते हो तो शेष लोगों के मानवाधिकार का हनन भी तो नहीं कर सकते। अगर आप मानते हैं कि इस प्रकार की शारीरिक चेष्टाएं उचित हैं या उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए तो ‘रैन बसेरों की तरह ‘लव शेल्टर अथवा ‘लव प्वाइंट क्यों नहीं बनातें। आप उनके लिए कुछ भी करें लेकिन शेष युवाओं की मानसिकता को विकृत करने का अधिकार आपको तो क्या, किसी को भी नहीं हैै।
ध्यान रहे- कोई फिल्म कुछ ऐसे ही दृश्यों के कारण यू की बजाय ए हो जाती है। उसे हर आयु के दर्शक नहीं देख सकते हैं तो सार्वजनिक स्थानों पर तो कुछ ‘यू और ‘ए जैसी मर्यादा स्थापित क्यों नहीं होनी चाहिए? टीवी चैनलों पर प्रदर्शित होने वाले कार्यक्रमों की जांच की कोई प्रणाली   क्यों नहीं होनी चाहिएं? एक दिन की अशांति फैलने के अंदेशे में किसी नगर अथवा प्रांत में इंटरनेट बंद किया जा सकता है तो पूरे समाज को स्थाई रूप से अशांत करने वाली ‘वैबसाइटस’ को बंद क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
सवाल और भी हैं। शायद कुछ आपके पास भी हो। और शायद आपके पास इसके विरोध में भी कुछ हो। असहमति आपका अधिकार है। आपकी स्वतंत्रता है लेकिन हमारी भावी पीढ़ी को समाज का जिम्मेवार और सुसंस्कृत बनने से रोकने वालों पर कुछ लगाम तो लगानी ही पड़ेगी। 

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