पूनम दिनकर
दिलेर समाचार, दो दशक पहले तक निम्न एवं मध्यमवर्गीय लड़कियों का पहनावा सलवार-कमीज तक ही सीमित था। उस समय जीन्स-पैंट, टी-शर्ट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट का अभिजात्य वर्ग के ‘मॉड‘ कही जाने वाली लड़कियों में प्रचलन था मगर फैशन की चली तेज आंधी ने फैशन के मामले में वर्गभेद को मिटाते हुए निम्न मध्यवर्गीय लड़कियों को भी अपनी चपेट में ले लिया। सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों और कस्बों में भी फैशन में तेजी के साथ बदलाव आया है। हर छः महीने में फैशन का स्वरूप बदलने लगा है।
इन दिनों लड़कियां सलवार-कमीज को अधिक पसंद नहीं करती। वे दुपट्टा संभालने की ज़हमत से बचना चाहती हैं। यही वजह है कि लड़कियों के बीच जीन्स, टी-शर्ट, स्कर्ट, मिडी आदि परिधानों की मांग बेहिसाब रूप से बढ़ी है। सलवार-कुरता पहनने पर भी दुपट्टों का इस्तेमाल इस प्रकार किया जाता है जैसे सिर्फ उसे कंधे पर रखना ही फैशन हो। उससे कुछ ढकता नहीं, सिर्फ वह कंधे पर झूलता भर रहता है। कुछ लड़कियां इसे मफलर की तरह भी गले में लपेट लेती हैं।
वक्षस्थल से दुपट्टे के सरक जाने या गायब होने के बढ़ते प्रचलन के पक्ष में लड़कियों की दलील है कि ‘यह तो आज का फैशन है और इस फैशन को अगर वे नहीं अपनायेंगी तो उनके मित्रा उन्हें पिछड़ा हुआ समझेंगे। दुपट्टे को वक्षस्थल से अलग रखकर ही ‘मॉड‘ बना जा सकता है।‘
कुछ लड़कियां तो पहनावे के मामले में किसी भी टीका-टिप्पणी को अपनी स्वतंत्राता पर हमला और नाजायज दखल समझती हैं। नये फैशन के परिधानों को पहनना उनकी निजी रूचि और स्वतंत्राता का एक हिस्सा है।
फैशन के इस बदलाव में संचार माध्यमों की भी एक बहुत बड़ी निर्णायक भूमिका है। कहना न होगा कि नयी पीढ़ी को मिलने वाली आधुनिक शिक्षा और भौतिकता के प्रति बढ़ते आकर्षण में लड़कियां तो लड़कियां, उम्रदराज औरतें भी पीछे नहीं हैं।
खुद को ‘मॉड‘ कहलाने को लालायित लड़कियां अपने पारंपरिक पहनावे से काफी दूर निकल गयी हैं। इसमें टी. वी. ने आग में घी डालने जैसा काम किया है। आज की लड़कियां और औरतें टी. वी. पर दिखाये जाने वाले धारावाहिकों को देखकर सिर्फ पहनावे की ही प्रेरणा नहीं पाती बल्कि अन्य अभिजात्य कुसंस्कारों के तरीकों को भी अपनाती रहती हैं।
दरअसल टी. वी. पर दिखाये जाने वाले धारावाहिकों से लड़कियां पाश्चात्य प्रभाव वाली चीजों तथा आदतों का आंखें बंद करके अनुसरण करती हैं। यह कुछ अभिभावकों को पसंद नहीं है लेकिन जमाने की बदलती हवा और बच्चों के बेपरवाह अंदाजों ने उन्हें चुप्पी साधने पर विवश कर दिया है। शायद आज के जमाने की मांग भी यही है।
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