दिलेर समाचार, पटना: पाकिस्तानी आतंकियों से लड़ते हुए भारतीय मुजाहिद भले शहीद हो गया, लेकिन उसके गृह राज्य बिहार की नीतीश सरकार उसके शहादत में वो गरिमा नहीं दे पायी जिसका वो हक़दार था. मुजाहिद को बुधवार को उसके पैतृक गांव बिहार के भोजपुर जिले के पीरो में सैनिक सम्मान के साथ दफ़नाया गया. हज़ारों की संख्या में सभी जाति और धर्म के लोग मौजूद थे लेकिन ना बिहार सरकार का कोई मंत्री और ना स्थानीय सांसद राजकुमार सिंह पहुंचे. परिवार वालों को सबसे ज़्यादा इस बात का दुःख है कि स्थानीय ज़िला अधिकारी एक पांच लाख का चेक लेकर पहुंचे जबकि एक दिन पूर्व बिहार के खगड़िया जिले के मृतक सैनिक के परिवार वालों को ग्यारह लाख का चेक दिया था.
राज्य सरकार का कहना है कि वर्तमान में शहीद सैनिक के परिवार वालों को 11 लाख और अर्ध सैनिक बल के जवान को पांच लाख देने का प्रावधान है. हालांकि ज़िला अधिकारी ने परिवार वालों को भरोसा दिलाया है कि राज्य सरकार उनकी मांगों पर विचार कर रही है. लेकिन सवाल है कि नीतीश सरकार शहीदों के परिवार वालों के साथ भेदभाव वाली नीति में बदलाव कब लाएगी.
देश पर जान न्योछावर करने वाले मुजाहिद खान के जनाजे में जनसैलाब उमड़ पड़ा. शहीद जवान को अंतिम विदाई देने के लिए उनके गांव के अलावा आसपास के कई गांवों से हजारों लोग पीरो पहुंचे. पीरो के ऐतिहासिक पड़ाव मैदान में शहीद मुजाहिद के जनाजे की नमाज पढ़ी गई, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया. पीरो के दुकानदारों ने अपनी दुकानों को बंद रखा और शव यात्रा में शामिल हुए. जनाजे में शामिल लोगों ने 'पाकिस्तान मुर्दाबाद' के नारे भी लगाए.
पीरो गांव निवासी राजमिस्त्री रहे अब्दुल खैर खान के पुत्र मुजाहिद सितंबर वर्ष 2011 में सीआरपीएफ के 49वीं बटालियन में भर्ती हुए थे. मुजाहिद के परिजनों के मुताबिक, मुजाहिद बचपन से ही देशभक्ति की भावना से लबरेज थे.
जम्मू के सीआरपीएफ कैम्प पर सोमवार को हुए आतंकी हमले में आमने-सामने की गोलीबारी में छह जवान शहीद हुए, जिनमें से एक पीरो का लाल मुजाहिद खान भी था. खुद को राष्ट्रभक्त बताने वाले एक भी मंत्री ने शहीद जवान को आखिरी सलामी देने की जहमत नहीं उठाई. शहीद के परिजनों को इसका मलाल है.
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