दिलेर समाचार, तो वो ट्रेन से सफर कर सकता था और न ही हवाई यात्रा. बैठते ही सो जाना और फिर खर्राटों की ऐसी गूंज जो दूसरे यात्रियों के लिए बन जाती थी परेशानी का सबब. उसका शरीर भले ही सो जाता था, लेकिन दिमाग इस कदर जाग जाता था कि देखने वालों की रूह कांप जाती थीC यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है, उस शख्स की जो मोटापे की वजह से स्लीप एप्निया का इस कदर शिकार हो चुका था कि उसकी जिंदगी ही नर्क बन गई थी.
रूह कंपा देने वाली ये कहानी है धनबाद में रहने वाले कोल मर्चेन्ट मुकेश कुमार की. मुकेश कुमार की उम्र करीब 40 साल है. बीते साढ़े चार साल से वह अपने मोटापे औऱ स्लीप एप्निया की वजह से विकलांगों की तरह जिंदगी जी रहे थे. बड़ी मेहनत से खुद अपने पैरों पर खड़े होने के बाद उन्होंने अपने कारोबार को जमाया है. मुकेश को साल 2013 के बाद मोटापे ने इस तरह जकड़ा कि उसका सीधा असर धंधे पर दिखने लगा. उनका वजन 131 किलो हो गया. मुकेश कुमार मोटापे की वजह से स्लीप एप्निया से ग्रस्त हो गए. चौबीसों घंटों नींद जैसा लगना, आलस आना, बैठे-बैठे सो जाना, नींद से जाग जाना, नींद में ऑक्सीजन का रुक जाना, सिर में दर्द रहना, भयकंर खर्राटे लेना जैसे और कई लक्षणों से वह जिंदगी से तंग हो चुके थे.
हालात यहां तक बिगड़ गए कि ट्रेन में बाकी मुसाफिरों के साथ उनके लिए सोना तक दुश्वार हो गया. ट्रेन में सफर के दौरान पूरी बोगी के मुसाफिरों की शामत आ जाती. खर्राटों की आवाज बाकी लोगों के लिए बर्दाश्त से बाहर हो जाती थी. इस परेशानी के चलते एक हजार किलोमीटर तक का सफर ट्रेन को छोड़ कार से करना मजबूरी बन गया था. धनबाद से दिल्ली तक कई नामी-गिरामी डॉक्टरों को दिखाया. स्लीप स्टडी की तो पता चला कि 6 घंटे 10 मिनट की नींद के दौरान ऑक्सीजन की कमी के कारण 453 बार दिमाग जाग जाता है और ऊंची आवाज वाले 3500 खर्राटे आते हैं. नींद में 1 मिनट 10 सेकंड तक सांस रुकने लगी थी. डॉक्टरों की सलाह पर सोते वक्त सीपअप मशीन (ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली मशीन) लगाई गई, लेकिन दो साल बात उससे भी बात नही बनी. पूरा घर उनकी बीमारी से परेशान हो चुका था. घर में पत्नी औऱ दो बच्चे खर्राटे सुनने के आदी हो चुके थे.
मोटापे की वजह से उनके पैरों औऱ कमर मे दर्द होने लगा था. कारोबार को अपग्रेड करने में 90 फिसदी की गिरावट आ गई. ब्रांडेड कपड़े पहनने के शौकीन मुकेश कुमार को कपड़े के शो रूम से भी निराशा हाथ लगने लगी थी. उनकी साइज 48 हो चुकी थी, जबकि आमतौर पर 44 से बड़ा साइज नहीं मिलता था. पूरे दिन तीखा मिर्च-मसाला वाला खाना खाने का मन करता था. मुकेश बोझ बन चुकी जिंदगी को जैसे-तैसे काट रहे थे. मगर नींद में सांस रुक जाने की बीमारी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक झकझोर के रख दिया. ये कोई साधारण बीमारी नहीं थी. आनन-फानन में डॉक्टर से परामर्श लिया. पूरी जांच करने के बाद डॉक्टर ने साफ कह दिया कि या तो वो सांस की नली के ऊपर जमी हुई चर्बी को ऑपरेशन करवाकर उसे निकलवा दें, या फिर 6 महीने में वजन कम कर लें, वरना उनके शरीर का कोई अंग डैमेज हो जाएगा. डॉक्टर की कही यह बात वाकई डराने वाली थी. तब मुकेश कुमार ने खुद ही बेरियाट्रिक सर्जरी के बारे में पता करना शुरू कर दिया.
बेरियाट्रिक सर्जरी के लिए उन्होंने तमाम जांच पड़ताल के बाद मोहक हास्पिटल इंदौर को चुना. घर से बगैर किसी को बताए चुपचाप अपने दोस्त के साथ मुकेश इंदौर चले आए. डॉ मोहित भंडारी ने उनके हर सवाल का जवाब दिया. उन्हें भरोसा जगा और सीधे सर्जरी के लिए राजी हो गए. 25 मई 2017 को सर्जरी से एक घंटे पहले उन्होंने घर वालों को फोन कर बताया. सर्जरी से तीन दिन बाद जो रात आई वह उनके लिए जन्नत जैसी खुशियां लेकर आई. साढ़े चार साल बाद उन्होंने चैन की नींद ली. आज महज 4 महीने में उन्होंने सर्जरी से 33 किलो वजन घटा लिया. अब उनका वजन 98 किलो है औऱ वजन का गिरना लगातार जारी है. अब उनका कारोबार दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की कर रहा है और ऐसा लग रहा है मानो उन्हें दुसरा जन्म मिला हो. उनका कहना है कि बेरियाट्रिक सर्जरी के लिये मोहक हास्पिटल देश का सबसे भरोसेमंद अस्पताल साबित हो चुका है.
क्या है बेरियाट्रिक सर्जरी
बहुत ज्यादा मोटे लोग जो चल नही पाते, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती हो, ब्लड प्रेशर की बीमारी हो, डायबिटीज हो, ऐसे लोगों के परीक्षण के बाद बेरियाट्रिक सर्जरी की जाती है. यह सर्जरी तीन तरह की होती है. पहला होता है कि यदि कोई व्यक्ति ज्यादा खाना खा रहा होता है तो उसकी डाइट को कम करने के लिए यानी पेट को छोटा करने के लिए. इसे रेस्ट्रिक्टिव सर्जरी कहा जाता है. दूसरी सर्जरी है माल एक्जाप्टिव सर्जरी. इसमें शरीर में खाना जा रहा होता है, लेकिन वह पच नही पाता. तीसरी तरह की होती है मेटाबालिक सर्जरी. यह सर्जरी डायबिटिक मरीजों के लिए होती है. ये तीनों तरह की सर्जरी बेहद सफल है. मेटाबॉलिक सर्जरी से बड़ी संख्या में लोगों को कारगर इलाज मिला है और डायबिटीज से हमेशा के लिये छुटकारा मिला है. मौजूदा वक्त में भारत में डायबिटीज के 95 फीसदी मरीज टाइप-2 डायबिटीज से ग्रसित हैं. इसमें इन्सुलिन की कमी मरीज को नही होती, लेकिन शरीर में घूमने वाला इन्सुलिन ठीक तरीके से काम नही कर रहा होता है, क्योंकि यह रोग प्रतिरोधक बन जाता है. यह सब हार्मोनल गड़बड़ियों की वजह से होता है. इस सर्जरी के जरिये हार्मोन का संतुलन बना कर इन्सुलिन को एक्टिव बनाते हैं. इससे डायबिटीज की बीमारी पूरी तरह से खत्म हुई है.
कैसे होती है बेरियाट्रिक सर्जरी
बेरियाट्रिक सर्जरी लायपोसेक्शन सर्जरी नही है. यानी शरीर के किसी भी सर्फेस से फैट नहीं निकाला जाता बल्कि पेट के अनवांटेड साईज को कम कर या पाचन तंत्र को ठीक कर किया जाता है. साथ ही सर्जरी के जरिए बहुत से हार्मोनल बदलाव भी करते हैं. यह सर्जरी बेहद सुरक्षित है. भारत में यह सर्जरी करने वाले मोहक बेरियाट्रिक्स ऐंड रोबोटिक्स की टीम ने इसकी विशेष ट्रेनिंग फ्रांस के प्रतिष्ठित संस्थान से ली है. मोहक अस्पताल, इंदौर में रोबोट के जरिए भी इस सर्जरी को पूरा किया जाता है. रोबोटिक्स सर्जरी मैन्यूअल की तुलना में बेहद एक्यूरेसी वाली सर्जरी है. इस सर्जरी में आधे से एक घंटा लगता है और दो से तीन दिन के बाद मरीज की अस्पताल से छुट्टी भी हो जाती है. सर्जरी के दूसरे दिन से ही हर दिन तेजी से वजन घटने लगता है औऱ 3 से 4 महीने में 30 से 40 किलो वजन घट जाता है.
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