दिलेर समाचार, नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शक्तिकांत दास के सामने न सिर्फ पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के अधूरे कामों का भारी भरकम एजेंडा है बल्कि उन्हें आरबीआई की साख सुधारने की बड़ी जिम्मेदारी भी निभानी होगी। इसके अलावा नए गवर्नर से बाजार को उम्मीद है कि वो नकदी की किल्लत को भी खत्म करेंगे।
सबसे अहम बात है कि दास को हालात को समझने के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं मिलेगा क्योंकि सिर्फ तीन दिन बाद उनके नेतृत्व में आरबीआई के निदेशक बोर्ड की पहली बैठक होने वाली है। इस बैठक में उन्हें पिछली 19 नवंबर की बोर्ड बैठक में लिए गए फैसलों को लागू करने पर सरकार के प्रतिनिधियों और आरबीआई बोर्ड के बीच सहमति बनानी होगी।
आरबीआई और सरकार के बीच चल रहे विवाद को दास किस तरह से "डील" करते हैं यह तो वक्त बताएगा लेकिन उन्हें इस बात का खयाल रखना होगा कि उनके साथ अभी पूर्व गवर्नर की ही टीम होगी। इसमें पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य भी शामिल हैं जिन्होंने सरकार के हस्तक्षेप के खिलाफ सबसे पहले सार्वजनिक बयान दिया था।
माना जाता है कि पिछली बोर्ड की बैठक में जिन मुद्दों पर फैसला हुआ उसको लेकर आचार्य के अलावा आरबीआई के कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी असहज हैं। इनमें खासतौर पर आरबीआई के रिजर्व फंड के इस्तेमाल के मौजूदा नियमों में बदलाव को लेकर गठित होने वाली समिति का मुद्दा है जिस पर तनाव हो सकता है।
पिछली बैठक के बाद बताया गया कि केंद्रीय बैंक और वित्त मंत्रालय मिलकर समिति के सदस्यों को तय करेंगे लेकिन तकरीबन तीन हफ्ते बीत जाने के बावजूद समिति गठित नहीं हो पाई। पटेल इस प्रस्ताव के सख्त खिलाफ थे। इस बारे में दास के कदम पर सभी की नजर होगी।
दास को तत्काल जिस मुद्दे पर दो टूक फैसला करना होगा, वह होगा प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) का मसला। इसके दायरे से सरकारी बैंकों को बाहर निकालने के लिए क्या रास्ता अख्तियार किया जाता है। अभी यह सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा है। इसके दायरे में 11 बैंक हैं जो कर्ज नहीं बांट पा रहे हैं।
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