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दमा की बिमारी को कंट्रोल कर सकते हैं ये खास स्टैप

Posted at: Mar 17 , 2018 by Dilersamachar 9801

युवराज मिश्र

 दिलेर समाचार,जहां अंग्रेज़ी दवाओं से दमा के लक्षणों को दबाकर तात्कालिक राह-ही पाई जा सकती है-वहां आहार चिकित्सा तथा प्राकृतिक नियमों का पालन कर इसे लगभग पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।

दमा एलर्जी का परिणाम है। जिन चीजों से व्यक्ति को एलर्जी हो, यह उनके प्रति एक प्रकार की शारीरिक प्रतिक्रिया है। सांस संबंधी रोगों में यह सबसे कष्टदायक है। दमा के मरीज को इसके दौरे बार-बार पड़ते हैं, और उस समय उसके लिए सांस लेना कठिन हो जाता है। दौरे से ठीक पहले और बाद में वह बिलकुल सामान्य रहता है।

लक्षण:- दमे के मरीज हांफते हुए दिखते हैं। उन्हें सांस लेने में जितनी कठिनाई होती है, उससे अधिक सांस छोड़ने में होती है। ऐसा फेफड़े तक हवा ले जाने वाली नली में संकुचन के कारण होता है। इस संकुचन की वजह से अभी पिछली सांस की हवा फेफड़े से निकल भी नहीं पाई होती है कि मरीज अगली सांस लेना चाहता है। इससे फेफड़े फूलने लगते हैं। दमा के सभी मरीजों को ज्यादा परेशानी रा-में, खासकर नींद की अवस्था में होती है।

दमे की शुरूआ-अचानक या धीरे-धीरे हो सकती है। जब दमा अचानक शुरू होता है तो उसके पहले खांसी का एक दौरा आता है। जब दमा की शुरूआ-धीरे-धीरे होती है तो इसका दौरा सामान्यतः सांस संबंधी संक्रमण से होता है। दमा का गंभीर दौरा पड़ने पर मरीज के दिल की धड़कन एवं सांस की गति बढ़ जाती है और मरीज बेचैनी एवं थकान महसूस करता है और उल्टी भी हो सकती है। उसे पेट में दर्द भी हो सकता है, खास कर अगर खांसी तेज हुई हो तो। दमे के मरीज का एक खास लक्षण सांस छोड़ने में घबराहट है। ऐसा संकुचि-हो गई सांस नली से हवा निकलने के लिए जोर लगने के कारण होता है।

कारण:- दमा कई कारणों से होता है। कई लोगों को यह एलर्जी के कारण होता है। यह एलर्जी मौसम की स्थितियों, किसी खाद्य, दवा, गंध या अन्य कारणों से हो सकती है। एलर्जी के कारण अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग होते हैं लेकिन सबसे सामान्य कारण धूल है।

कुछ लोगों को किसी खास प्रकार की धूल से एलर्जी होती है। कपड़े की धूल, गेहूं की धूल, कागज पर जमी धूल, पशुओं के बाल की धूल, फफूंद और कीट पतंगों की धूल इसकी मिसालें हैं। एलर्जी उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थ आम तौर पर ये हैं - गेहूं, अंडा, दूध, चॉकलेट, फलियां, आलू और मांस।

कुछ लोगों को दमा मन संबंधी कारणों से होता है। एक अध्ययन के अनुसार पच्चीस प्रतिश-युवा मरीज गहरी भावनात्मक असुरक्षा तथा मां-बाप का पूरा प्यार न मिल सकने के कारण दमे के मरीज बन जाते हैं। यह रोग वंशानुग-कारणों से भी होता है।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर मां-बाप दोनों को दमा हो तो पचास प्रतिश-मामलों में संतान को भी एलर्जी संबंधी रोग हो जाते हैं। हाल में कुछ अनुसंधानकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कुपोषण या शरीर में कुछ पौष्टिक तत्वों की कमी भी दमा का कारण हैं। अधिवृक्क ग्रंथि के ठीक से काम न करने, रक्-शक्कर कम होने या कार्बोहाइड्रेट ठीक से न पचा सकने की स्थिति में भी दमा हो सकता है।

उपचार:- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दमा का उपचार खोज पाने में विफल रहा है। जो दवाएं या टीके बनाए गए हैं, वे सिर्फ तात्कालिक रूप से लक्षणों को दबा भर देते हैं। इनमें से अधिकांश  को दवाओं की आद-लग जाती है और बाद में राह-पाने के लिए दवाओं की मात्रा में वृद्धि करनी पड़ती है। इसके साथ दमा पुराना होता जाता है।

दरअसल दमा का तात्कालिक कारण एलर्जी, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाने और शरीर के भीतर अव्यवस्था का संके-है। ऐसा खान-पान संबंधी गलतियों और दोषपूर्ण जीवन शैली के कारण होता है। इसलिए दमा का उपचार शरीर से गदंगी बाहर निकालने वाले अंगों को फिर दुरूस्-बना कर तथा खान-पान की उचि-आदतें अपना कर ही किया जा सकता है ताकि विषैले एवं अवशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाएं।

उपचार शुरू करते हुए प्रारंभ में मरीज को तीन से पांच दिन तक उपवास करना चाहिए। इस दौरान उसे रोज गर्म जल का एनीमा लेकर आंतों की सफाई भी करनी चाहिए। उपवास के बाद पांच से सा-दिन मरीज को पूर्णतः फलों के आहार पर रहना चाहिए ताकि शरीर से विषैले पदार्थ निकल जाएं। इस अवधि के बाद मरीज दूसरे खाद्य पदार्थ ले सकता है।

आहार:- दमे के मरीजों के लिए शाकाहारी आहार सर्वोत्तम है। उसके आहार में कार्बोहाइडेट, वसा एवं प्रोटीन की सीमि-मात्रा होनी चाहिए क्योंकि ये अम्ल बनाने वाले तत्व हैं। उनके भोजन में क्षारीय खाद्य अधिक होने चाहिए। इसके लिए उन्हें ताजे फल, हरी सब्जियां तथा अंकुरि-बीज एवं अनाज अधिक खाने चाहिएं।

मरीज़ को नाश्ते में ताजे फल और आलूबुखारा या अन्य सूखे फल लेने चाहिएं। दोपहर के भोजन में उसे भाप से पकाई गई सब्जियां और गेहूं की ताजी, रोटियां लेनी चाहिएं। रा-में उसे ककड़ी, खीरा, टमाटर, गाजर, चुकंदर आदि जैसी कच्ची सब्जियों से बने सलाद को काफी मात्रा में, घर में बने पनीर, आलू बुखारा और सूखे फलों आदि के साथ खाना चाहिए। अंतिम भोजन सूर्यास्-से पहले या कम से कम बिस्तर पर जाने से दो घंटे पहले कर लेना चाहिएं।

दमे के मरीज को चावल, चीनी, दाल, दही आदि जैसे कफ बनाने वाले, तले एवं अन्य खाद्यों से भी बचना चाहिए। उसे कड़क चाय, कॉफी, अल्कोहल वाले पेय, मसाले, अचार, सॉस और सभी प्रकार के कृत्रिम एवं प्रसंस्कृ-खाद्य छोड़ देने चाहिएं। दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ भी पूरी तरह छोड़ देने चाहिएं। रोगों में स्पष्ट सुधार होने के बाद थोड़ी मात्रा में दूध लेना शुरू किया जा सकता है। दमे  के मरीजों को हमेशा पेट की क्षमता से कम खाना चाहिए। उन्हें धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबा कर खाना चाहिए। उन्हें रोज आठ से दस गिलास पानी पीना चाहिए लेकिन भोजन के साथ पानी पीने से उन्हें बचना चाहिए।

दमा, खासकर जब उसका दौरा गंभीर होता है तो वह भूख नष्ट कर देता है। ऐसी हाल-में मरीज पर खाने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए लेकिन मरीज हर दो घंटे पर एक कप गर्म पानी पी सकता है। अगर उस वक्-एनिमा लिया जाए तो वह लाभदायक होता है।

दमे के उपचार में शहद बहु-लाभदायक है। कहा जाता है कि अगर दमा का मरीज एक कप शहद अपनी नाक के नीचे रख ले तो उससे होकर आने वाली हवा से सांस लेना आसान हो जाता है। इससे मरीज गहरी सांसे लेने लगता है। इसका असर एक घंटा या अधिक समय तक बना रहता है। इसका कारण यह है कि शहद में बेहतर किस्म के अल्कोहल एवं ईथर युक्-तेलों का मिश्रण होता है जिनका वाष्प दमे के मरीजों को लाभ पहुंचाता है। शहद को दूध या पानी में डालकर पीना भी दमे के मरीजों के लिए फायदेमंद है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एक साल पुराना शहद ज्यादा लाभदायक होता है।

मरीज़ को प्रकृति के अन्य नियमों का पालन भी करना चाहिए। वायु, धूप और पानी आराम देते हैं। सप्ताह में एक बार नियमि-रूप से उपवास, अक्सर एनीमा लेना, सांस के व्यायाम, ताज़ी हवा में रहने और हल्के व्यायाम करने से, सही मुद्रा में रहने से दमे के उपचार में काफी मदद मिल सकती है।

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