दिलेर समाचार, भगवान की पूजा के समय उनको तिलक लगाने का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार सिंदूर धारण करने से पहले कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे स्नान कर वस्त्र धारण करने के बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके माथे पर तिलक लगाया जाना चाहिए।
विष्णु संहिता में उल्लेख मिलता है कि शुभ और वैदिक कार्य में अनामिका अंगुली, पितृ कार्य में मध्यमा, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक क्रियाओं में प्रथम यानि तर्जनी अंगुली का प्रयोग किया जाना चाहिए।
तिलक लगाने के लिए भिन्न-भिन्न अंगुलियां का प्रयोग अलग-अलग फल प्रदान करता है। अगर तिलक अनामिका अंगुली से लगाया जाता है तो इससे शांति मिलती है। मध्यमा अंगुली से तिलक करने पर आयु में बढ़ोत्तरी होती है, इसके अलावा अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक माना गया है।
चार प्रकार के होते है तिलक
1. कुमकुम
2. केशर
3. चंदन
4. भस्म
कुमकुम हल्दी चूना मिलकर बना होता है जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए उसे कैल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्ज्वलित करता है चंदन दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए मानसिक शान्ति भी देता है। भस्मी वैराग्य की अग्रसर करते हुए मस्तिष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है।
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