दिलेर समाचार,तथ्यों के अनुसार दुर्गापूजा के समय राज परिवार में नरबलि दिया जाता था। बांकुड़ा जिले के बारुईपुर के राजा दुर्जन सिंह के युद्धास्त्रों से यह साबित होता है। विख्यात चोयाड़ विद्रोह का वे दूसरे नायक थे। जिस हथियारों से एक दिन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ दुर्जन सिंह ने विद्रोह किया था उसके बाद उस हथियार से कुलदेवता देवी महामाया पूजा में नरबलि दिया जाता था। उस नरबलि की रक्तधारा पास में ही बह रही कंसावती के पानी में मिल जाता था
। ऐतिहासिक आंकड़ों के अनुसार 1769 साल से 1799 साल तक इस विद्रोह का काल माना जाता है। जिसकी दूसरी नेत्री मेदिनिपुर जिले के कर्णगढ़ की रानी शिरोमणि थीं। बरुईपुर राज परिवार सूत्रों के अनुसार, हर साल वर्तमान राजबाड़ी में उस हथियार को रखा जाता है। दुर्गापूजा के 6ठवीं के दिन विजय शोभायात्रा के साथ उस हथियार को महामाया मन्दिर में लाया जाता है।
महाअष्टमी के दिन बकरा के बलि राजा दुर्जन सिंह के हथियार से चढ़ाई जाती है। दशमी के दिन इसी तरह शोभायात्रा के साथ हथियार को वापस राजबाड़ी में रख दिया जाता है। पूजा के समय आम जनता के लिए उस हथियार का दर्शन दुर्लभ होता है। यहाँ आज भी रीति-नीति के साथ चण्डीपाठ के साथ दुर्गापूजा की जाती है।
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