दिलेर समाचार, महाराष्ट्र के पंढरपुर शहर में जगत प्रसिद्ध भगवान विट्ठल और देवी रुकमणी का मंदिर स्थित है। भक्त इस मंदिर को विठोबा के मंदिर के नाम से भी जानते हैं। भगवान विट्टल के इस प्रसिद्ध नगर में प्राचीन समय में उनका एक भक्त पुंडलिक रहता था। पुंडलिक भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और श्रीहरि के दर्शनों की ईच्छा रखता था। इसके लिए वह हर तरह के जतन पूजा-पाठ, जप-तप और यज्ञ- अनुष्ठान करता रहता था।
पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार भगवान विष्णु उसके घर पर उसको दर्शन देने के लिए पहुंचे। उस समय पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा कर रहा था। वह अपने माता-पिता की सेवा में इतना तल्लीन था कि उसको भगवान के आने का पता नहीं चला। तब भगवान ने स्वयं उसको अपने आने की सूचना दी। पुंडलिक ने भगवान का स्वागत करने की बजाय भगवान के लिए एक ईंट रख दी और उनसे इंतजार करने को कहा। उसने उस वक्त यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि दरवाजे पर कौन आया है।
माता-पिता की सेवा में सारी रात बीत गई और सवेरा हो गया। नगर के लोग अपनी दिनचर्या के लिए घरों से निकल गए। इस समय रातभर से अपने भक्त को दर्शन देने के लिए खड़े भगवान विष्णु ने अपने आपको मूर्ति के रूप में परिवर्तित कर लिया। पुंडलिक की माता-पिता की सेवा से श्रीहरि इतने प्रसन्न हुए की उन्होंने स्वयं को मूर्ति रूप में परिवर्तित कर पुंडलिक के घर में निवास करने का निश्चय कर लिया।
कहा जाता है कि पंढरपुर के विट्ठल मंदिर में यही मूर्ति विराजमान है। वैसे ज्यादातर मंदिरों में श्रीकृष्ण के साथ राधा की मूर्ति विराजमान है, लेकिन इस मंदिर में श्रीहरी के साथ रुकमणी विराजमान है।
इस कहानी का सार यही है कि सच्चे मन की श्रद्धा से प्रभु को याद किया जाए तो वह अपने भक्त को दर्शन देने के लिए स्वर्ग से धरती पर अवतरित अवश्य होते हैं। साथ ही माता-पिता, दीन-दुखियों की सेवा ही हरिसेवा मानी जाती है
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