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बहुत महत्त्व है चैत्र नवरात्र का

Posted at: Mar 8 , 2018 by Dilersamachar 10049

डा. सीतेश कुमार द्विवेदी

दिलेर समाचार, देवी भागवत् पुराण के अनुसार पूरे वर्ष में चार नवरात्रा मनाए जाते हैं जिनमें दो गुप्त नवरात्रा सहित शारदीय नवरात्रा और बासंती नवरात्रा जिसे चैत्रा नवरात्रा कहते हैं, भी सम्मिलित  हैं। वास्तव में ये चारों नवरात्रा ऋतु चक्र पर आधारित हैं और सभी ऋतुओं के संधिकाल में मनाए जाते हैं।

प्रकृति अर्थात मातृशक्ति की पूजा का पर्व

वैसे सभी नवरात्रा का आध्यात्मिक दृष्टि से अपना महत्त्व है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यह प्रकृति और पुरुष के संयोग का भी समय होता है। प्रकृति मातृशक्ति होती है इसलिए इस दौरान देवी की पूजा होती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और वह सिर्फ पुरुष हैं यानी हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं, वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्राी रूप है। स्त्राी से यहां तात्पर्य यह है कि जो पाने की इच्छा रखने वाला है वह स्त्राी है और जो इच्छा की पूर्ति करता है वह पुरुष है।

चैत्रा मास से गर्मी की शुरुआत

ज्योतिष की दृष्टि से चैत्रा नवरात्रा का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्रा की अवधि में  सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।

चैत्रा नवरात्रा से हिन्दू नववर्ष आरम्भ

चैत्रा नवरात्रा से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्राी, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्रा में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।

धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व

 जहां तक बात है चैत्रा नवरात्रा की तो धार्मिक दृष्टि से इसका विशेष  महत्व है क्योंकि चैत्रा नवरात्रा के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरु किया था। इसलिए चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है। चैत्रा नवरात्रा के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है, वह भी चैत्रा नवरात्रा में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्रा नवरात्रा का बहुत महत्व है।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी  महत्व

नवरात्रा का महत्व सिर्फ धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टि से ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी नवरात्रा का अपना महत्व है। ऋतु बदलने के लिए समय रोग जिन्हें आसुरी शक्ति कहते हैं, उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है जिसमें कई तरह की जड़ी, बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रखकर नवरात्रा में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है।

हवन पूजन से स्वास्थ्य लाभ

नवरात्रा के समय व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढि़या हैं। इसका कारण यह है कि चारों नवरात्रा ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में बदलाव होता है जिससे शारीरिक और मानसिक बल की कमी आती है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किया जाता है। ऋतु संधि बेला में व्रत -उपवास से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। व्रत -उपवास करने वाले को अपनी सेहत एवं स्थिति के अनुसार व्रत -उपवास रहना चहिये। रोगी को डाक्टर से सलाह लेकर उपवास रहना चाहिए।

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