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बिहार में गठबंधन पर रार क्या है विवाद की पृष्ठभूमि, वजह और समाधान

Posted at: Jun 26 , 2018 by Dilersamachar 11032

दिलेर समाचार, पटना : इन दिनों सबकी निगाहें एक बार फिर बिहार की राजनीति पर हैं. इसका कारण है भाजपा और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेताओं के बीच आगामी लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे और नीतीश कुमार की भूमिका पर विरोधाभासी बयान. परस्पर विरोधी बयान देने वाले नेताओं की पृष्टभूमि की वजह से भी इस विवाद और इसके राजनीतिक असर के बारे में अटकलबाजी तेज कर दी हैं. आइये हम आपको बताते हैं कि आखिर विवाद की पृष्ठभूमि क्या है? इसके कारण क्या हैं और समाधान कैसे हो सकता है. 

क्या है विवाद और इसकी पृष्ठभूमि : 
बिहार एनडीए में फिलहाल चार घटक दल शामिल हैं और अब इनमें से कौन कितनी सीटों पर आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ेगा, यही पृष्टभूमि है. अगर आप पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो भाजपा  ने रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाह के कारण ३१ सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके आधार पर बात करें तो नीतीश कुमार को देने के लिए मात्र 9 सीट बचती है और अगर पासवान थोड़ी उदारता दिखाएं तो यह संख्या 11 तक जा सकती है, लेकिन दिक्कत यह है कि जदयू 15 से कम सीटों पर मानना नहीं चाहती. वहीं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से राज्य के नेताओं के एक तबके की अपेक्षा है कि अगर नीतीश अलग लड़ें तो मुक़ाबला पिछले लोकसभा चुनाव की तरह त्रिकोणीय होगा. जिसका लाभ भाजपा को मिलेगा. हालांकि ये आकलन करने वाले इस बात को नज़रंदाज कर देते हैं कि इस त्रिकोणीय मुकाबले का लाभ भाजपा को मिला, इसी सच्चाई के कारण नीतीश और लालू अपनी राजनीतिक दुश्मनी भूल कर एक साथ आए थे. जो सफल भी हुआ था. 

नीतीश की भाजपा से नाराज़गी और भाजपा के अविश्वास की वजह : 
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि नीतीश कुमार ने जिस उम्मीद से भाजपा के साथ हाथ मिलाया था उसका 20 फीसद भी वो अपने समर्थकों या जनता को बता पाने में समर्थ नहीं हैं.  बाढ़ राहत के मामले में केंद्र ने अनुशंसा की थी कि बिहार को नियमों को शिथिल कर अधिक केंद्रीय सहायता दी चाहिए, लेकिन जो मिला वह 'ऊंट के मुंह में जीरा' जैसा ही था. इसके अलावा नदियों में गाद की समस्या हो या बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात,  जिसका वादा ख़ुद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पूर्व किया था, पूरा नहीं हुआ. इसके अलावा बिजली के क्षेत्र में बिहार को नज़रंदाज किया गया. इसके अलावा जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश ने लालू का साथ छोड़ा उस फ़्रंट पर भी मोदी सरकार का रवैया ढीला रहा है. जैसे तेजस्वी यादव के खिलाफ आज तक कोर्ट ने चार्ज एसआईटी का केवल इसलिए संज्ञान नहीं लिया है, क्योंकि रेल मंत्रालय ने अपने दो अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला चलाने की अनुमति नहीं दी है. वही भाजपा को लगता है कि नीतीश अपनी मर्ज़ी से गठबंधन चलाना चाहते हैं. उन्होंने योग दिवस में हिस्सा नहीं लिया और अक्सर सार्वजनिक मंचों पर उनका बयान केंद्र के प्रति आलोचक का होता है. जैसे- केंद्रीय किसान कृषि बीमा योजना को उन्होंने लागू करने से मना कर दिया.  
क्या है इस विवाद का समाधान : 
अब सबकी निगाहें जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पर टिकी हैं. उस बैठक में पार्टी क्या रूख अपनाती है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 11 को पटना प्रवास के लिए जा रहे है. तब भी इस विवाद का हल निकल सकता है. यह अमित शाह के रुख पर निर्भर करेगा कि क्या वे नीतीश से मिलकर इस मुद्दे का समाधान करेंगे या एक और सहयोगी को अलविदा कह देंगे. बिहार में गठबंधन के बारे में एक और बात चर्चित है. वह यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, संघ के शीर्ष नेतृत्व और नीतीश कुमार व उनके करीबियों के बीच काफी सोच-समझ कर गठबंधन हुआ था. अब इन लोगों के अलवा कोई नहीं जानता कि इसका भविष्य क्या होगा. 

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