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आखिर क्यों अखबार की सुर्खियां होती है ऐसी!

Posted at: May 20 , 2018 by Dilersamachar 9691

दिलेर समाचार, कहते है अगर देश के हाल की खबर रखनी हो तो रोजाना एक नजर अखबार पर जरुर डा़लनी चाहिए ।

लेकिन आजकल जब भी हम अखबार पर देश का हाल जाने के लिए नजर डालते है । तो अखबार का हर पन्ना सांप्रदाय के आक्रोश से भरा होता है । अब तो कोई अपराध भी होता है । उसे भी हिंदु मुस्लिम, दलित से जोड़कर देखा जाता है । वरना खबरों की ऐसी हेडलाइन का क्या अर्थ निकलता है – क्या दलितों को मिलेगा इंसाफ, रेप केस को लेकर हिंदु मुस्लिम समुदाय मे झड़प ।

खबर अच्छी हो या बुरी वो देश में रहने वाले हर व्यक्ति पर असर करती है ।फिर उसके लिए किसी व्यक्तिगत समुदाय को जिम्मेदार ठहराना या एक ही समुदाय से जोड़कर देखना क्या सही है ? अभी कुछ वक्त पहले हमने सुप्रीम कोर्ट दारा एसई एसटी एक्ट में किए गए बदलावों के बाद दलित समुदाय के लोगों का देश भर प्रदर्शन देखा । जिसका फायदा कई राजनीतिक पार्टियों ने अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए भी उठाया ।

 

जहाँ भी देखो हिंदु मुस्लिम की खबरें नजर आती है – हाल ही में बिहार में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी इस नारे के साथ प्रर्दशन किया कि दीन बचाओं मुस्लिम बचाओ और अब कठुआ रेप केस की हालात से आप सब रुबरु हो ही चुके है ।

ये बहुत ही अफसोस जनक बात है कि एक बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म को लोग हिंदु – मुस्लिम, धर्म जाति, मजहब से जोड़कर देख रहे है । एक समुदाय कहता है कि जब हमारी बेटियों के साथ कुछ गलत होता है तो दूसरा समुदाय क्यों नहीं बोलता ?  और यही बात दूसरा समुदाय भी पहले समुदाय के लिए कहता है कि जब उनकी महिलाओं के साथ कुछ होता है तो वो क्यों मौन रहता है पर अगर इन सब बातों पर गौर किया जाए तो ये बात हमें सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या हमारी सोच इतनी छोटी हो गई है कि हम किसी की मदद से पहले उसका मजहब पूछे ?

क्या देश में कोई ओर समस्याएं नहीं है जो अखबार के पन्नों में अपनी जगह बना सकती है ?

अब तो किसी आम खबर में भी हिंदु मुस्लिम की खबरें आती है – आपको संप्रदायिकता की झलक दिख ही जाएगी ।

भले ही वो आपसी रंजिश की क्यों न हो ? इस साल के शुरुआत में दिल्ली के अंकित मर्डर केस ने सबको हिला कर रख दिया । अंकिता की उसके प्रेमिका के पिता और भाइयों ने सड़क पर चाकू से मारकर हत्या कर दी थी ।

अगर साधारण तौर पर देखा जाए तो ये मामला प्रेम संबंधो का था जिसमें लड़की के घर वाले लड़के को पसंद नहीं करते थे । जिस वजह से उन्होनें उसकी हत्या कर दी ।

 

अंकित की प्रेमिका मुस्लिम समुदाय से थी और अंकित हिंदु समुदाय का था । इसलिए एक बार के लिए उसकी हत्या की वजह अलग धर्म से होना माना जा सकता है । लेकिन क्या इस हादसे को संप्रदाय का रंग देकर दो समुदाय के बीच झड़प फैलाना सही था ? एक की गलती की सजा पूरे समुदाय को कैसे दी जा सकती है ? और ऐसा ही कुछ आजकल कठुआ रेप केस में भी हो रहा है जहां बच्ची को इंसाफ दिलाने की बजाय कुछ लोग इसे हिंदु- मुस्लिम संप्रदाय के बीच आग भड़काने के लिए इस्तेमाल कर रहे है ।

आप खुद सोचिए जब आप सुबह देश का हाल जाने के लिए अखबार के पन्ने पलटने लगते है और आपको हिंदु मुस्लिम की खबरें नज़र आती है – हर पन्ने पर हर खबर को दो समुदायों से जोड़कर देखा जाता है । तो आप कैसा महसूस करते है 

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