सज्जाद हैदर
अमेरिका और ईरान के मध्य तनाव का माहौल बना हुआ है जिससे पूरी दुनिया भयभीत है क्योंकि इस युद्ध से पूरे विश्व को क्षति पहुँचेगी। पूरी दुनिया में अस्थिरता का माहौल बन जाएगा। फिलहाल अमेरिका ने युद्ध का रूप बदल दिया। अब अमेरिका ईरान के खिलाफ प्रत्यक्ष की बजाय परोक्ष रूप से युद्ध छेड़ चुका है। ईरान का दावा है कि अमेरिका ने ईरान के सैन्य प्रतिष्ठानों पर कई जगह साइबर हमले किए।
अमेरिका के द्वारा ईरान पर सीधा हमला न करने को विश्व के विशेषज्ञ इसे अमेरिका की विवशता भी बता रहे हैं क्योंकि अमेरिका अपनी जिस नीति के साथ विश्व स्तर पर कार्यवाही करता है और अपनी पैठ बनाने की दिशा में गतिमान रहता है तो उसका यह फार्मूला ईरान के प्रति फिट नहीं बैठ रहा है क्योंकि, कई देश ईरान के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से खड़े हो जाएंगे जिससे कि विश्व में अमेरिका के विरूद्ध एक बड़ा माहौल बनाने की मुहिम भी इसी के साथ आरंभ हो जाएगी और अमेरिका को अब निकट भविष्य में काफी हानि होने की संभावना प्रबल हो जाएगी।
कई देश जो अमेरिका के विरोधी हैं, वे इसका खुलकर लाभ उठाएंगे क्योंकि ईरान गैस एवं आयल के संदर्भ में प्रबल देश है जो विश्व बाजार को काफी हद तक अपने दम पर सहयोग करता है। अतः कई देश ईरान के और निकट आने का प्रयास करेंगे जिससे यह युद्ध खाड़ी देश की राजनीति को पूरी तरह से बदल देगा। तेल एवं गैस बाजार में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी होगी जिससे पूरी दुनिया में अमेरिका को अलग-थलग करने की मुहिम आरंभ हो जाएगी इसका मुख्य कारण अमेरिका को ही ठहराया जाएगा। ऐसे कई एक कारण हैं जोकि अमेरिका की नीति से विपरीत हैं।
रिमोट से नहीं चलेगा ईरान-
जैसा कि अमेरिका की विदेश नीति है कि वह किसी भी खनिज संपन्न देश पर आक्रमण करे, फिर वहाँ की वर्तमान सरकार अथवा शासन को उखाड़ फंेके। उसके बाद कठपुतली वाली सरकार बनाकर उसे रिमोट से चलाता रहे। ऐसा कर पाना अमेरिका के लिए ईरान के विरुद्ध असंभव ही नहीं, अकल्पनीय है क्योंकि ईरान की राजनीति दुनिया की राजनीति से पूरी तरह से भिन्न है। ईरान एक बुद्धिजीवी एवं दूरदर्शी देश है। ईरान का विपक्ष भी अमेरिका का घोर विरोधी है। वह भी सत्ता के लालच में अमेरिका के हाथ की कठपुतली कदापि नहीं बनना चाहता, इसलिए ईरान में युद्ध छेड़ने एवं सत्ता परिवर्तन होने के बाद भी अमेरिका का कोई लाभ होने वाला नहीं है क्योंकि कोई भी ऐसा नेता ईरान में नहीं है जो अमेरिका के इशारे पर अमेरिका के लिए मुखौटा रूपी कार्य कर सके, इसलिए ट्रंप प्रशासन ने युद्ध के लिए कोई लक्ष्य घोषित नहीं किया है।
वैसे भी ईरान एक ताकतवर और बड़ा देश है। आसानी से इसे झुकाया नहीं जा सकता। एक पल को अगर ऐसा हुआ भी तो जो विकल्प बनेगा, वह और कट्टर तथा अमेरिका का धुरविरोधी होगा। ईरान के संदर्भ में यह सोचना कि वह अमेरिका के सामने मजबूर होकर उसकी शर्तों पर संधि को राजी हो जाएगा, यह गलत है क्योंकि ईरान की कूटनीति बहुत ही मजबूत है। ईरान अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्राता बनाकर चलता है जिसका उदाहरण भारत एवं अफगानिस्तान मुख्य रूप से है जोकि ईरान के साथ अच्छे रिश्तों को अडिग उदाहरण हैं।
तेल बाजार में उबाल-
पश्चिमी एशिया के बिगड़ते हालातों के बीच तेल बाजार में अस्थिरता बनी हुई है। ओमान की खाड़ी में दो तेल टैंकरों पर हमले की घटना के बाद तेल की कीमतों में वृद्धि भी हुई है। इतना ही नहीं, फारस की खाड़ी में तेल का व्यापार करना भी अमेरिका के लिए आसान और अर्थपूर्ण नहीं होगा। ईरान को बल पूर्वक झुका पाना अमेरिका के लिए आसान नहीं है। अमेरिका ईरान के तेल भण्डार पर अपना कब्जा जमाना चाहता है क्योंकि ईरान के पास तेल का भण्डार है और अमेरिका की विदेश नीति भी कुछ इसी प्रकार है। उदाहरण हेतु कुवैत से लेकर सऊदी अरब तक सभी खाड़ी देशों के तेल भण्डार पर प्रत्यक्ष न सही परन्तु परोक्ष रूप से अमेरिका का कब्जा है जिसे अमेरिका रिमोट से हैंडल कर रहा है।
ईरान अपने सैन्य उपकरणों से भी इतना ताकतवर है कि अमेरिका की तमाम घेराबंदी के बावजूद भी वह खाड़ी क्षेत्रा से भेजे जाने वाले तेल टैंकरों को कभी भी निशाना बना सकता है और उस रास्ते को ईरान रोक सकता है। ईरान टेक्नालाजी में भी मजबूत एवं प्रबल है। ईरान की सेना भी अत्याधुनिक हथियारों से लैस है, साथ ही अमेरिका का युद्ध लड़ने का मुख्य हथियार अमेरिका की वायुसेना है जिसके बलबूते अमेरिका पूरे विश्व को धमकाता रहता है तो अमेरिका की वायुसेना से निपटने के लिए ईरान प्रबलता के साथ मजबूत है। वह अमेरिका की वायुसेना का मुकाबला करने में सक्षम है।
गैस भण्डार ईरान की ताकत-
अमेरिका अपनी वायुसेना के बल पर पूरे विश्व पर राज करने की चेष्टा रखता है। इसी क्रम में अमेरिका ईरान पर कब्जा जमाने की फिराक में पिछले काफी समय से प्रयासरत है जोकि प्रतिबंधों के आधार पर ईरान को आर्थिक रूप से कमजोर करने की योजना के अनुसार चाल चल रहा है। अमेरिका की वायुसेना ईरान पर बल पूर्वक काबू कर ले, यह असंभव है, साथ ही अमेरिका की नजरें ईरान के जिस गैस भण्डार पर टिकी हुई हैं, वही गैस भण्डार अमेरिकी सेना के लिए सबसे घातक है क्योंकि अमेरिका यदि ईरान पर वायु आक्रमण करता है तो ईरान अपने गैस भण्डार का प्रयोग अपनी रक्षा हेतु निश्चित ही करेगा जिसका रूप वायुमण्डल में काफी घातक एवं भयानक होगा। अगर अमेरिका ईरान पर वायु आक्रमण करता है तो ईरान अपनी गैस की ऊँची चिमनियों का प्रयोग निश्चित ही करेगा और गैस के रेगुलेटर को खोलकर ऊँची चिमनियों की मदद से वायु मण्डल में आग लगा देगा जिससे वायु मण्डल में जहाज तो दूर की बात है, कोई जीव भी नहीं उड़ सकता क्योंकि वायुमण्डल में पूरी तरह से गैस फैल जाएगी और उस वायुमण्डल में जब कोई भी यान उड़ेगा तो निश्चित ही यान से निकलने वाला धुआँ गैस में मिश्रित होकर वायुमण्डल में आग लगा देगा जिससे हवा में उड़ने वाला वायुयान स्वयं ही अपने धुएं एवं वायुमण्डल की गैस के कारण जलकर तबाह हो जाएगा और यान में बैठे हुए सभी सैनिक मारे जाएंगे।
अलग-थलग पड़ने का डर-
कोरिया के साथ 1953 के युद्ध के बाद अमेरिका ने जितने भी युद्ध लड़े, उसमें दूसरे देशों को भी साथ जरूर लिया। इस समय अगर युद्ध छिड़ता है तो ब्रिटेन, सऊदी अरब, यूएई व इजरायल को छोड़ शायद ही कोई देश अमेरिका का साथ दे। रूस और अमेरिका के शुरू से रिश्ते ठीक नहीं रहे। चीन के साथ आर्थिक मोर्चों पर भिड़ंत जगजाहिर है। ऐसे में ये दोनों बड़े देश दुनिया भर में अमेरिका के खिलाफ माहौल बनाने का मौका नहीं छोड़ेंगे। ब्रिटेन ने तो यहाँ तक कह दिया है कि हम अमेरिका पर भरोसा करते हैं परन्तु हम कोई भी फैसला सोच समझकर ही लेंगे। अतः ब्रिटेन का यह बयान अमेरिका के लिए काफी चिंता का विषय होगा जिससे अमेरिका की चिंताएं और बढ़ेंगी क्योंकि ब्रिटेन का यह बयान उस समय पर आया जब अमेरिका एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा हुआ है।
एक और युद्ध में फंसना नहीं चाहता अमेरिका-
ट्रंप अंतहीन युद्ध से अलग दिशा में चलने वाले राष्ट्रपति हैं। इसे अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से जोड़कर देखा जा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से भी ईरान से खुला युद्ध ट्रंप को अपने विरोधी डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों, निर्दलीयों के आगे कमजोर कर सकता है जिससे ट्रंप के राजनीतिक भविष्य को खतरा है। यदि युद्ध होता है तो विपक्षी नेता ट्रंप पर आक्रामक हो सकते हैं क्योंकि विपक्षी नेताओं के द्वारा ट्रंप पर विदेश नीति के संदर्भ में आरोप लगते रहे हैं। अमेरिका में विरोधी नेता ट्रंप को विदेश नीति में अनुभवी बताते रहे हैं।
हमले में आर्थिक चपत-
खाड़ी से ही विश्व बाजार का 50 प्रतिशत तेल गुजरता है और यहां ईरान काफी मजबूत एवं प्रबल है। वह यहां किसी को भी नुकसान पहुंचाने में सक्षम है। युद्ध हुआ तो तेल की कीमतों में भारी इजाफा होगा और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल होगा। जानकारों का यह भी मानना है कि अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के साथ ही उसके मित्रा देश भी ईरान के निशाने पर आ जाएंगे। यमन में हउथी विद्रोहियों के जरिए सऊदी अरब में ड्रोन-मिसाइल से हमले करवा सकता है।
ईरान में शिया संगठनों के जरिए तो हिजबुल्लाह की मदद से इजरायल व अन्य अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर भी हमला तेजी के साथ हो सकता है। अमेरिका विरोधी देशों के माध्यम से तमाम अमेरिकी दूतावासों को निशाना बनाया जा सकता है। अतः पूरे विश्व में अस्थिरता का माहौल उत्पन्न हो जाएगा, सभी देशों में प्रदर्शन एवं वहाँ की सरकारों पर जनता के द्वारा दबाव भी बनाया जाएगा। समूचे विश्व में अशांति फैल जाएगी जिससे अमेरिका को भारी नुकसान होगा। साथ ही अमेरिका के विरूद्ध पूरी दुनिया में गोलबंदी भी हो जाएगी। इसी के साथ अमेरिका का व्यापार और वर्चस्व भी पूरी दुनिया में तबाह हो जाएगा।
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