दिलेर समाचार, नई दिल्ली: Bala Movie Review: जब भरी जवानी में नहाते वक्त बाल झड़ना शुरू हो जाते हैं, शीशे के सामने कंघी करते वक्त बाल गिरने लग जाते हैं और तो और आस-पास के लोग आपका मज़ाक उड़ाने लग जाते हैं तो गंजे हो रहे उस इंसान का दर्द बनकर आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) खुद पर्दे के सामने आए हैं. हर उस शख्स जिसने अपने बाल कम उम्र में खोया है और गंजेपन के मज़ाक का शिकार बना है उसकी जुबां बनकर आयुष्मान ने न सिर्फ एक संदेश दिया बल्कि जमकर गुदगुदाया. अखबार के विज्ञापन को कहानी में बदलकर स्क्रीन पर पेश करने वाले डायरेक्टर अमर कौशिक और कहानीकर नीरेन भट्ट ने क्या खूब उकेरा है. हर एक झड़ते बाल की क़िस्सागोही करना आयुष्मान ने अकेले ही नहीं कि बल्कि फ़िल्म के सभी किरदारों ने बखूबी निभाया. जैसा कि लोग हमेशा कहते आये हैं कि एक ही दिल है, कितनी बार जीतोगे आयुषमान खुराना. इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
बालमुकुंद शुक्ला यानी कि 'बाला' (Bala). बचपन में अपने लंबे बालों और जबरदस्त एटीट्यूड के लिए पहचाने जाते थे. इतना ही नहीं, स्कूल में कानपुर के नन्हे बाला (Sachin Chaudhary) लड़कियों के बीच अपने बालों की स्टाइल से मशहूर थे. टीचर से लेकर दोस्तों का मजाक उड़ाने में जरा सा भी वक्त नहीं लेते, लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि खुद मजाक बनने को मजबूर हो गए. उत्तर प्रदेश के कानपुर और लखनऊ की देसी भाषा से फिल्म शुरू होती है. 25 की उम्र में बाला (Ayushmann Khurrana) का बाल झड़ना शुरू हो गया और फिर लग गई वाट. जी हां, हर समय बाल गिरने की वजह से 200 से ज्यादा नुस्खे अपनाए, लेकिन फिर भी कोई उपाय नहीं मिला. आखिर में नकली बालों का सहारा लेना पड़ा. काले रंग की वजह से बचपन से लोगों का ताना सुनती आईं लतिका त्रिवेदी (Bhumi Pednekar) अपने क्लासमेट बाला को बीच-बीच में छेड़ती रहती. फिर लाइफ में आती हैं परी मिश्रा (Yami Gautam), जो सच में बाला की जिंदगी के लिए परी होती हैं और फिर शुरू होता है फिल्म का असली मजा.
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