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कांग्रेस की देहरी तक पहुंची बैंक घोटलों की आंच

Posted at: Feb 27 , 2018 by Dilersamachar 9641
 
राकेश सैन
 
दिलेर समाचार, आग, अपने घर लगे तो आंच और दूसरों के यहां लगे तो बसंतर। देश में नित नए उजागर हो रहे बैंक फर्जीवाड़े जिसको कांग्रेस बसंतर समझती आरही थी अब उसे खुद को तपिश देने लगी है और इसकी आंच कांग्रेस की देहरी तक पहुंच रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी की पत्नी अनीता सिंघवी के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री व पार्टी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद का नाम बैंक घोटाले से जुड़ा है। आरोप है कि कैप्टन के दामाद से जुड़ी एक कंपनी ने ओरियंटल बैंक आफ कामर्स के साथ लगभग दो सौ करोड़ रूपये का घोटाला किया है। सीबीआई ने कई लोगों पर केस भी दर्ज किया है। हास्यस्पद बात है कि कांग्रेस कार्यालय ने इस कथित घोटाले के लिए भी ट्वीट कर मोदी सरकार को जिम्मेवार ठहराया परंतु बाद में सच्चाई पता चलने पर अपने ट्वीट को हटाना पड़ा। अब भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल सहित अनेक दलों ने कांग्रेस पार्टी से जवाब मांगा है कि आखिर किसकी शह पर राबर्ट वाड्रा के बाद कांग्रेस से जुड़े दूसरे दामाद पर दरियादिली दिखाई गई। पूरे मामले पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की सफाई और भी मनोरंजक रही कि आरोपी कंपनी में उनके दामाद की हिस्सेदारी केवल 12.5 प्रतिशत है, इसलिए इस पर अनावश्यक राजनीति नहीं होनी चाहिए।
काबिलेजिक्र है कि 22 फरवरी को सिम्भावली शुगर्स लिमिटेड, उसके अध्यक्ष गुरमीत सिंह मान, उप प्रबंध निदेशक गुरपाल सिंह एवं अन्य के खिलाफ 97.85 करोड़ रुपये की कथित बैंक धोखाधड़ी मामले में मामला दर्ज किया है। गुरपाल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के दामाद हैं। ओरियंटल बैंक आफ कामर्स ने नवंबर 2017 में सीबीआई से शिकायत की थी। हालांकि, एजेंसी ने इस साल 22 फरवरी को आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया। इस मामले में सीबीआई ने कुल 8 ठिकानों पर छापेमारे की है। उनमें एक उत्तर प्रदेश के हापुड़, एक नोएडा और 6 ठिकाने दिल्ली के हैं। गाजियाबाग सिम्भौली शुगर्स लिमटेड देश की सबसे बड़ी चीनी मिलों में से एक है, आरोप है कि ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से चीनी मिल के नाम पर दो ऋण लिए गए थे जिसमें एक 97.85 करोड़ और दूसरा 110 करोड़ रुपए का है। 97.85 करोड़ के ऋण को साल 2015 में ही घपला घोषित किया गया था, वहीं पुराने ऋण को चुकाने के नाम पर 110 करोड़ रुपए का उद्योगिक ऋण लिया गया था। ऋण की राशि रिजर्व बैंक की एक योजना के तहत कंपनी को दी गई थी। जिसमें 5762 गन्ने के किसानों को वित्तीय सहायता दी जानी थी। लेकिन कंपनी ने लोन की राशि को बैंक से अपने निजी प्रयोग के लिए गलत ढंग से स्थानांतरित करा लिया। इससे पहले नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी सहित अनेक लोगों को विगत कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार के समय बिना वापसी की गारंटी के नियमों को ताक पर रख कर भारी भरकम लोन दिए गए, इस पर भी कांग्रेस पर कई अंगुलियां उठ रही हैं।
बैंक घोटालों व एनपीए को लेकर देश में खूब राजनीति हो रही है लेकिन इससे समस्या का समाधान निकलने वाला नहीं है। बैंकों का तेजी से बढ़ता एनपीए आज एक ऐसा रोग बन चुका है जिसका ईलाज बड़े से बड़े आर्थिक वैद्य के पास भी फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि एनपीए के इस अंधकार से रोशनी कब और कैसे मिलेगी? इस पर सरकार और रिजर्व बैंक भी चिंता जता चुके हैं। इसके साथ ही समय-समय पर नियम-कानून भी बनते रहे हैं, लेकिन सभी नियम-कानून फाइलों में दबे रह गए। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि एनपीए पर जवाबदेही तय क्यों नहीं हो रही? एनपीए जैसा गंभीर आर्थिक अपराध आज राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सरकार और विपक्ष दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा कर इस समस्या से आंख चुराने की कोशिश कर रहे हैं। बैंक डिफाल्टरों का मुद्दा समय-समय पर संसद से सड़क तक चर्चा का विषय बनता रहा है। बैंकों पर एनपीए का दबाव आर्थिक स्थिति को चाट रहा है, बावजूद इसके बैंक खुद के पैसे वसूलने में असहाय नजर आ रहे हैं। एनपीए के बोझ तले कराह रहे बैंक क्या खुद इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? अगर किसी बड़े उद्योगपति को कर्ज बैंक ने दिया है तो उसे वसूलने के लिए सरकार, सुप्रीम कोर्ट और रिजर्व बैंक को क्यों दखल देना पड़ रहा है? आखिर इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है? एनपीए को लेकर सरकार ने भी कुछ बड़े कदम तो उठाए हैं। केंद्र सरकार ने एनपीए के खिलाफ 'द एनफोर्समेंट ऑफ सिक्युरिटी इंटरेस्ट एंड रिकवरी ऑफ डेब्ट्स लॉस एंड मिसलेनियस प्रोविजंस' नाम का विधेयक सरकार ने संसद के दोनों सदनों से पास करवाया था। जिसमें न सिर्फ सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को और अधिकार दिए गए, बल्कि इस महत्त्वपूर्ण संशोधन की बदौलत एनपीए से जुड़े मामलों का निपटारा भी जल्द से जल्द हो सकेगा। लेकिन यह कानून आने के बाद भी परिणाम उत्साहजनक नहीं दिखाई पड़े।
वित्त मंत्री अरुण जेतली ने ठीक ही पूछा है कि ऋण देने व उगाही में बैंकों का आंतरिक तंत्र क्यों असफल हो रहा है। बैंक व वित्तीय संस्थान इस बात का विश्लेषण करें कि तीन स्तरीय लेखाजोखा होने, आंतरिक सतर्कता तंत्र होने के बावजूद भी क्यों कोई नीरव मोदी जैसा ठग बैंक का पासवर्ड प्रयोग करता रहा, क्यों आंख मूंद कर ऋण संबंधी सहमती पत्र जारी किए जाते रहे। अगर बैंक में भ्रष्ट अधिकारी या तंत्र विकसित हो गया तो क्यों उच्चाधिकारी सोए रहे। ठीक है कि सभी बैंक रिजर्व बैंक आफ इंडिया और आरबीआई वित्त मंत्रालय के अधीन है और मंत्रालय की ही जिम्मेवारी हैं परंतु मंत्रालय का काम बैंक की हर शाखा की चौकीदारी करना तो नहीं हो सकती? यह काम तो मोटे वेतन व लंबे चौड़े भत्ते लेने अधिकारियों को करने होंगे। इन सभी के बीच सुखद समाचार है कि केंद्र सरकार ने देश में आर्थिक अपराधों से निपटने में सख्ती बरतने के संकेत दिए हैं। बैंकों के घोटाले दशकों की आर्थिक अव्यवस्था के परिणाम हैं और स्वभाविक है इसे दुरुस्त करना केवल सरकार की ही जिम्मेवारी नहीं। सरकार, विपक्ष, बैंक और जनता के संयुक्त सहयोग से ही बैंकों को सही रास्ते पर लाया जा सकता है। विपक्ष इस गंभीर मुद्दे पर राजनीति करने की बजाय सरकार का सहयोग करे तो यह न केवल देश बल्कि खुद उसके लिए भी लाभप्रद होगा।

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