जगदीश कुमार चैरसिया
हमारे देश में हर जगह पान के शौकीन मौजूद हंै, केवल शौक व मुख शुद्धि के बतौर ही नहीं, यह विभिन्न रीति-रिवाजों, शुभ कर्मों, पूजा, विधानों में भी प्रयोग में लाया जाता है।
आकार व स्वाद सुगंध की दृष्टि से पान की कई किस्में प्रचलित हैं जैसे, मीठा पत्ता, मद्रासी, बनारसी, कपूरी आदि। स्वाद व पसंद के आधार पर खाने वाले लोग भी अलग-अलग होते हैं। पान मुंह का जायका और सांसों को ताजगी प्रदान करने के साथ-साथ मुख के कई विकारों में भी लाभप्रद साबित होता है। इसमें क्लोरोफिल पर्याप्त मात्रा में होता है इसलिए इसके रस को निम्न दवाओं के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
पान के फायदे व औषधि प्रयोग।
पान पाचन शक्तिवर्धक तथा मंदाग्नि कब्जनाशक होता है।
यह गले संबंधी विकारों में भी लाभप्रद होता है, आवाज साफ करता है।
रक्त विकारों को दूर करता है व रक्तचाप नियंत्रित करने में सहायक है।
मुंह के स्वाद, जी मिचलाने आदि में उपयोगी होता है।
हृदयगति को नियंत्रित रखता है।
इसके प्रयोग से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं।
मसूड़ों को पायरिया की बीमारी से बचाकर मजबूत बनाता है।
खांसी-सर्दी में इसके रस के साथ शहद खाने से लाभ मिलता है।
पान के बीड़े में काली मिर्च, मुलेठी व लौंग डालकर खाने से खांसी ठीक होती है।
मुंह के छालों में पान में कपूर का टुकड़ा डालकर चबाएं व पीक थूकते रहे, लाभ होगा। पायरिया के लिए भी यह उपयोगी होता है।
पान के सेवन से, चूसते-चबाने से मुंह में लार बनती है जो पाचन क्रिया में सहायक होती है।
पान प्रयोग की सावधानियां
पान की गुणवत्ता नष्ट हो जाती है जब इसे जर्दे, तम्बाकू के साथ प्रयोग किया जाता है।
पान भोजन के पश्चात ही खाना चाहिए। खाली पेट इसे खाना ठीक नहीं।
इसका अधिक प्रयोग हानिकारक होता है। इससे मुंह व नेत्रा संबंधी रोग हो सकते हैं।
पान के साथ अधिक सुपारी का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
पान के साथ कत्थे का अधिक प्रयोग फेफड़ों में खराश उत्पन्न करता है।
अधिक चूने की मात्रा आंतों व दांतों को नुकसान पहुंचाती है।
जिन लोगों को पेचिश, बुखार दांतों के रोग हो उन्हें पान का सेवन नहीं करना चाहिए।
यह उष्ण व पित्तकारक है। बच्चों, गर्भवती महिलाओं, गर्म प्रकृति के लोगों के लिए यह उपयोगी नहीं होता।
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