दिलेर समाचार, नई दिल्ली: नासा ने चंद्रमा पर भारत के महत्वकांक्षी चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का मलबा मिलने का दावा करते हुए उसकी एक तस्वीर साझा की है. विक्रम लैंडर की सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने की भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कोशिश नाकाम रही थी और लैंडिंग से कुछ मिनट पहले लैंडर का इसरो से सम्पर्क टूट गया था. नासा ने अपने ‘लूनर रिकॉनसन्स ऑर्बिटर' (एलआरओ) से ली गई तस्वीर में अंतरिक्ष यान से प्रभावित स्थल को और उस स्थान को दिखाया है जहां मलबा हो सकता है. लैंडर के हिस्से कई किलोमीटर तक लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरे हुए हैं.
नासा ने एक बयान में कहा कि उसने स्थल की एक तस्वीर 26 सितम्बर को साझा की और लोगों से उस तस्वीर में लैंडर के मलबे को पहचानने की अपील की. नासा ने कहा कि शनमुगा सुब्रमण्यन ने एलआरओ परियोजना से संपर्क किया और मुख्य दुर्घटनास्थल से लगभग 750 मीटर उत्तर पश्चिम में पहले टुकड़े की पहचान की.
नासा ने कहा, ‘यह जानकारी मिलने के बाद, एलआरओसी दल ने पहले की और बाद की तस्वीरें मिला कर इसकी पुष्टि की. पहले की तस्वीरें जब मिलीं थी तब खराब रोशनी के कारण प्रभावित स्थल की आसानी से पहचान नहीं हो पाई थी.' नासा ने कहा कि इसके बाद 14 -15 अक्टूबर और 11 नवम्बर को दो तस्वीरें हासिल की गईं.
एलआरओसी दल ने इसके आसपास के इलाके में छानबीन की और उसे प्रभावित स्थल (70.8810 डिग्री दक्षिण, 22.7840 डिग्री पूर्व) तथा मलबा मिला. नासा के अनुसार नवम्बर में मिली तस्वीर के पिक्सल (0.7 मीटर) और रोशनी (72 डिग्री इंसीडेंस एंगल) सबसे बेहतर थी. भारत का यह अभियान सफल हो जाता तो वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन जाता.
बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने चंद्रयान 2 (Chandryaan 2) के विक्रम लैंडर (Vikram Lander) की चंद्रमा की सतह पर हार्ड लैंडिंग के कारणों की जानकारी दी थी. लोकसभा (Lok Sabha) में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह (Jitendra Singh), जो अंतरिक्ष विभाग को देखते हैं ने कहा कि डिसेंट के दौरान विक्रम लैंडर के वेग में कमी तय मापदंडों से अधिक थी और इस वजह से उसकी हार्ड लैंडिंग हुई.
उन्होंने कहा था, "चांद की सतह से 30 किलोमीटर से 7.4 किलोमीटर की दूरी के बीच डिसेंट का पहला फेज किया गया था. इस दौरान वेग 1,683 मीटर प्रति सेकंड से घटाकर 146 मीटर प्रति सेकेंड कर दिया गया था. इसके बाद डिसेंट के दूसरे फेज में वेग में कमी डिजाइन किए गए मूल्य से ज्यादा थी. इस वजह से दूसरे फेज के शुरुआती चरण की परिस्थिति, डिजाइन किए गए मापदंडों से अलग थी. इस कारण तय लैंडिंग साइट के 500 मीटर के दायरे में विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई."
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