दिलेर समाचार, नई दिल्ली. कोरोना संकट (Coronavirus Crisis) के बीच जब हर तरफ से बुरी खबरें ही सामने आ रही थीं, तब कच्चे तेल की कीमतें (Crude Oil Prices) हर दिन कम होने की जानकारी मिल रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब क्रूड ऑयल की कीमतें पानी के दाम से भी नीचे पहुंच गई थीं. हालांकि, केंद्र सरकार (Central Government) ने आम लोगों को इसका कोई खास फायदा नहीं दिया. दरअसल, कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन (Lockdown) लगा दिया गया था. इससे करोड़ों-अरबों लोग अपने घरों में बंद दरवाजों के पीछे कैद होने को मजबूर हो गए. वहीं, कारोबारी गतिविधियां (Business Activities) भी ठप हो गईं. नतीजा ये निकला कि पेट्रोल-डीजल की मांग और खपत (Demand & Consumption) तेजी से धड़ाम हो गई.
इस बीच सऊदी अरब (Saudi Arabia), रूस (Russia) और अमेरिका (US) के बीच क्रूड ऑयल का उत्पादन घटाने पर सहमति नहीं बन पाई. सऊदी अरब तेल उत्पादन करता रहा. बाद में कच्चे तेल पर निर्भर सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी तो उसने बहुत तेजी से क्रूड के दाम घटा दिए. बाद में ओपेक प्लस देशों के दबाव में तेल उत्पादन पर अंकुश लगाया गया. हालांकि, ऐसा हो पाने से पहले क्रूड ऑयल के दाम ऐतिहासिक गिरावट के साथ 16 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच गए थे. वहीं, अमेरिका का डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल शून्य से भी नीचे पहुंच गया था. अब इसका फायदा भारत समेत उन तमाम देशों को मिला, जो सऊदी अरब या अमेरिका से तेल आयात करते हैं. हालांकि, मई-जून के दौरान उत्पादन कम करने से क्रूड की कमीतों में सुधार हुआ. मई में ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई क्रूड 30 डॉलर प्रति बैरल के बैरियर को पार कर गए. वहीं, जून में इनका भाव 40 डॉलर को पार गया. अगस्त के आखिरी सप्ताह में क्रूड 45 के करीब पहुंचा.
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