दिलेर समाचार, रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। राजधानी पुलिस ने पहली बार दवाइयों की रॉ-मटेरियल की तस्करी करने वाले एक अंतर्राज्जीय गैंग का भंडाफोड़ किया है। गैंग से जुड़े छह सदस्यों की गिरफ्तारी की गई है। यह गैंग लंबे समय से मुंबई की दवा निर्माता कंपनियों की फैक्टरी से रॉ-मटेरियल चुराकर देशभर में दूसरे दवा निर्माता कंपनियों को सस्ते दाम पर बेचता आ रहा था। इसलिए कई दवाईयां बेअसर निकलती थी।
एडिशनल एसपी सिटी विजय अग्रवाल, डीएसपी क्राइम अभिषेक माहेश्वरी ने पुलिस कंट्रोल रूम में शनिवार देर शाम गैंग का राजफाश किया। उन्होंने बताया कि राज्य में पहली बार इस तरह के गैंग का भंडाफोड़ करने में पुलिस सफल रही। दरअसल पिछले दिनों गंज थाना क्षेत्र के बालाजी डॉरमेट्री में ठहरे मुंबई निवासी लक्ष्मण रामचित बिंद के कब्जे से चार किलो सफेद पाउडर जब्त किया गया था।
इसके ड्रग्स होने की संभावना होने पर उसका परीक्षण एफएसएल से कराया गया। रिपोर्ट में इस पाउडर को मेग्लूमाइन होना पाया गया। यह पदार्थ दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। लक्ष्मण बिंद से पूछताछ के बाद तस्करी से जुड़े उत्तरप्रदेश के जौनपुर निवासी रामलगन पांडेय, आजमगढ़ के नंदलाल बिंद, अमरनाथ बिंद, मुंबई के राजेंद्र बिंद तथा महेंद्र बिंद की गिरफ्तारी की गई।
50 करोड़ का खेल
यह गैंग दवाओं के रॉ-मटेरियल को फैक्टरी, गोदाम, रास्ते से या फिर परिवहन के दौरान ट्रकों से लूट कर देशभर के दूसरी दवा निर्माता कंपनियों को सस्ते दर पर बेच देता था। पुलिस का दावा है कि हर साल तस्करी के इस खेल में 40 से 50 करोड़ का वारा-न्यारा किया जा रहा था।
दवाइयों के रॉ-मटेरियल की तस्करी के मामले में राजधानी पुलिस के हत्थे चढ़े अंतरराज्यीय गैंग के छह सदस्यों ने पूछताछ में चौंकाने वाली बात बताकर पुलिस अफसरों को हैरत में डाल दिया है। तीन दिन के पुलिस रिमांड पर लिए गए उप्र के जौनपुर जिले के बदलापुर थानाक्षेत्र के मल्लूपुर निवासी रामलगन पांडेय (50) ने बताया कि मुंबई की दवा निर्माता कंपनियों के कारखानों में गैंग की अंदर तक घुसपैठ है। दवाओं का कच्चा माल चौकीदार, मास्टर के जरिए सालों से उड़ाते आ रहे हैं। महंगी दवाओं के रॉ-मटेरियल के ड्रम चुपचाप निकालकर अपने गोदामों में ले जाकर भारी मात्रा में दवा निकालने के साथ उसमें सस्ता स्टार्च, हल्दी या फिर कैल्शियम पाउडर मिलाकर ड्रम को वापस गोदाम पहुंचा दिया जाता है, ताकि किसी को शक न हो।
दरअसल यह गैंग तब फूटा, जब पिछले महीने 4 मार्च को गंज पुलिस ने स्टेशन रोड गुरुदारा के पास स्थित बालाजी डोरमेट्री हाल के बेड नंबर 10 में सोए उप्र के आजमगढ़ जिले के ग्राम क्षम्कापुर निवासी लक्ष्मण बिंद (36) के बेड लॉकर की तलाशी लेने पर 4 किलो सफेद पाउडर मिला। ब्राउन सुगर होने की आशंका पर इसे जांच के लिए एफएसएल भेजा गया। परीक्षण रिपोर्ट में इस पाउडर को मेग्लूमाइम न होना बताया गया। यह पाउडर काफी महंगे दर में मिलता है। ड्रग इंस्पेटर के अनुसार यह पदार्थ दवा बनाने में उपयोग में लाया जाता है। पूछताछ में अंतरराज्यीय तस्कर गिरोह का भांडा फूटा। मामले में धारा 21 बी एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई कर लक्ष्मण बिंद की निशानदेही पर उप्र और मुंबई से रामलगन पांडेय (50), नंदलाल बिंद(40), राजेंद्र बिंद (47), महेंद्र बिंद(45) तथा अमरनाथ बिंद की गिरफ्तारी की गई जबकि गैंग से जुड़े 24 अन्य सदस्यों की सरगर्मी से तलाश की जा रही है।
पुलिस के मुताबिक जीवन रक्षक दवाइयों का रॉ-मटेरियल ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मप्र समेत अन्य राज्यों में खपाने वाले तस्करों ने पूरे देश में अपना जाल फैला रखा है। मुंबई की फैक्टरी से रॉ-मटेरियल चुराकर तस्करी का खेल फूटने के बाद अब दवा निर्माता कंपनियां भी संदेह के घेरे में आ गई है। एएसपी सिटी विजय अग्रवाल ने बताया कि यह गैंग दवा फैक्टरियों से मेग्लूमाइन पाउडर चुराकर कई राज्यों में पिछले पांच साल से चल दीगर कंपनियों को यह पाउडर मोटी रकम वसूलकर बेचते थे। गैंग के लोग गोदाम के अलावा परिवहन के दौरान रास्ते में वाहनों से चोरी करने के साथ ही लुटेरों की मदद से ट्रक पर कब्जा कर पूरा कच्चा माल उड़ाने के बाद विरोध करने पर चालक व क्लीनर की हत्या तक करवा देते थे और लवारिश हालत में ट्रक छोड़कर भाग निकलते थे। यह गैंग पहले महाराष्ट्र पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है।
50 किलो के ड्रम से 15 किलो कच्चा माल पार
दवाओं का कच्चा माल काफी मंहगा होता है। दवा कारखाने में रखे 50 किलो के ड्रम से यह गैंग 15 किलो तक पाउडर निकाल कर उसमें सस्ता पाउडर मिला देता था। इस दौरान यह सावधानी भी बरती जाती थी कि जब एक ड्रम से असली कच्चा माल निकाला जा रहा हो तो दो तिहाई ड्रम खाली करते थे, उससे निश्चित मात्रा निकालकर खाली ड्रम के बीच वाले हिस्से में नकली माल भरते थे।
ऐसे होता था खेल
पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि दवा कारखाने में काम करने के बहाने गैंग के लोग दवाईयों के रॉ-मटेरियल से भरे कंटेनर को कस्टडी में लेते थे। कंटेनर में मौजूद जीवन रक्षक दवाइयों के पाउडर को तीन हिस्सो में बांट देते थे।इसके बाद बीच का हिस्सा निकालकर उसके वजन के बराबर कैल्शियम, स्टार्च, नमक, हल्दी या पाउडर मिलाकर सीलबंद कर देते थे। जांच के दौरान तकनीशियन उपर की परत से नमूना लेता था, इसलिए न तो चोरी का पता चलता था और न ही जांच में नमूने फेल होते थे और आसानी से मिलावटी कच्चा माल कारखानों के भीतर चला जाता था।
कैंसर की दवा में इस्तेमाल होता मेग्लूमाईन पाउडर
मेग्लूमाईन पाउडर बेहोश करने वाली दवाइयों को बनाने में काम आता है। मेडिसिन एक्सपर्ट के अनुसार इस पाउडर का उपयोग कैंसर की दवाइयों को बनाने में भी किया जाता है। बाजार में मेग्लूमाइन से बनाई गई 5 एमजी की दवा की कीमत 40 रुपए है। तस्कर यह पावडर लोकल दवा कंपनियों को सस्ते दाम पर बेचते थे। पुलिस अफसरों अनुसार जीवन रक्षक दवाईयां बनाने में काम आने वाली मेग्लूमाईन की चोरी के बाद सस्ता पाउडर मिला दिया जाता था, इससे जो दवाईयां बनती थी उनकी गुणवत्ता बेहद कम होती थी, इससे इन दवाओं का उपयोग करने वाले मरीजों पर दवाओं का कोई असर नहीं होता था।
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