दिलेर समाचार, रायपुर। छत्तीसगढ़ में 15 साल के वनवास को खत्म करने के लिए 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस न केवल हारी सीटों पर नए चेहरों को उतारने जा रही है, बल्कि कमजोर परफॉर्मेंस वाले विधायकों की टिकट भी काटने का फैसला लिया है। पुरानी परंपरा को तोड़ने के लिए टिकट वितरण का नया फॉर्मूला बनाया गया है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को लेकर कहा जाता रहा है कि विधायकों का टिकट नहीं काटने की परंपरा से पार्टी का अब तक बंटाधार होता रहा है। यानी पार्टी लगातार पराजित प्रत्याशियों पर दांव खेलती रही है।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 48 विधायक थे। छत्तीसगढ़ बना तो पहला विधानसभा चुनाव 2003 में हुआ, तब 48 विधायकों में से दो विधायकों की टिकट काटकर 46 को मैदान में उतारा गया। इसमें से 21 विधायक चुनाव हार गए थे। दूसरे चुनाव 2008 में 37 विधायकों में से तीन विधायकों की टिकट काटी गई। मतलब, 34 को मैदान में उतारा गया था, जिसमें से 17 को हार का सामना करना पड़ा था।
2013 के चुनाव में 38 विधायकों में से केवल एक को टिकट से वंचित किया। 37 चुनावी मैदान में उतरे। इनमें से 24 विधायक हार गए। 2013 में टिकट वितरण से पहले केंद्रीय स्क्रीनिंग कमेटी ने हारे विधायकों में से 22 की स्थिति कमजोर बताई थी फिर भी उन्हें टिकट दिया गया।
अगर स्क्रीनिंग कमेटी के सुझाव मानकर उन 22 विधायकों की टिकट काटी जाती तो पार्टी को फायदा हो सकता था। टिकट वितरण में यह गफलत इसलिए भी होती रही है, क्योंकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता अपने-अपने क्षेत्र की सीटें बांट लेते थे और वहां प्रत्याशी उनकी पसंद का उतारा जाता था।
पिछली बार कांग्रेस की भाजपा से 10 सीटें कम हो गई थीं, जबकि स्क्रीनिंग कमेटी की बात मान ली गई होती तो छत्तीसगढ़ के पटल पर तस्वीर बदल सकती थी। पिछली गलतियों से अब पार्टी के नेताओं ने सबक ले लिया है।
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