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Delhi Crime Season 2 Review: पुलिस के रवैये और सामजिक पहलुओं का आईना

Posted at: Aug 29 , 2022 by Dilersamachar 9464
दिलेर समाचार,दुष्यंत शर्मा। "मैडम जी यो दिल्ली है, जब यहां कुछ मिलता नही है तो छीना पढ़ता हैं" इस अंतिम संवाद के साथ कच्छा–बनियान गैंग के स्टाइल में क्राइम करने वाले अपराधी भी गिरफ्तार हो जाते हैं लेकिन जिन युवाओं को नही पता की कच्छा–बनियान गैंग क्या बला है वो खुद से बड़े लोगो से पूछे की किस तरह एक ट्राइबल गैंग जो 90 के दशक के अन्तिम सालो में खूब सक्रिय हुआ करता था. आखिरी बार 2003 में इसके होने के साक्ष्य मिले थे. ये गैंग कच्छा-बनियान पहनकर डकैती किया करता था. पर मामला यही है कि वर्तमान समय में ये दोबारा कैसे सक्रिय हो गया। यही प्लॉट है दिल्ली क्राइम के दूसरे सीजन का यदि अपने पहला सीजन नही देखा है तो परेशान होने की जरूरत नही है क्योंकि किरदार एक है लेकिन कहानी अपनी अपनी अलग है लेकिन पहले सीजन की फिल्म समीक्षको ने खूब तारीफ़ की थी और विश्व स्तर पर उसको ढेर पुरस्कार भी मिले थे तो यदि पहला सीजन नही देखा है तो मेरी सलाह से देख डालो, खैर 26 तारीख को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुआ दूसरा सीजन जब शुरू होता है तो शुरू से ही सिनेमेटोग्राफी की समझ रखने वालो को अपने बस में कर लेगा क्योंकि जिस तरह से शॉर्ट फिल्माए गए है उससे आपको प्यार हो जायेगा, और जो दिल्ली को हिंदी सिनेमा में हमेशा करोल बाग वाले हनुमान जी, इंडिया गेट और मेट्रो से ही दिखाया गया है वैसा इसमें नही है इसने अपनी दिल्ली को अपने ढंग से दिखाया है इसमें एक सीन में शाहदरा की बात हुई है तो शाहदरा की मशहूर दक्कन जी की कचौड़ी की दुकान नही दिखाई है उन्होंने शाहदरा को शाहदरा की ढंग से ही दिखाया और साउथ दिल्ली को साउथ दिल्ली जो अंतर दिल्ली का असल में है वो अंतर इसमें दिखाया गया हैं निर्देशक ने खूब मेहनत की है और इस मेहनत का परिणाम ये है की यदि आप इसको देखना शुरू करते है और आपके पास थोड़ा सा समय है तो पूरा सीजन एक बैठक में खत्म कर देंगे क्योंकि निर्देशक ने जो रोचकता बनानी चाही है उसमे वो कामयाब हुआ है। 
 
सामाजिक रूढ़ियां को चमकाता सीजन:
इस सीरीज में यदि सामाजिक पहलू की बात करे या पुलिस महकमा, पुलिस में काम करने वाले सिपाही और अधिकारियों की बात करें तो इन सब के संगम को जितनी ईमानदारी के साथ दिखाया गया है वो तो इस सीरीज को दूसरो से अलग करती हैं ट्राइबल समुदाय के साथ होने वाला व्यवहार हो या आम लोग उनके बारे में कैसा सोचते है ये सब निर्देशक ने अपने किरदार से बिलकुल साफगोई से बिना हिजक कहलवा दिया है पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार की एक रिटायर SHO रिपोर्ट में से नाम काटने के लिए 15 हजार रुपए लेता है से लेकर उसमे पुलिस वालो की ईमानदारी की वो 24 घंटे बिना सोए कैसे वर्दी पहन कर ड्यूटी करते रहते है और घर जाने का समय भी नही है उनके पास, पुलिस महकमे में रिटायर कर्मचारियों को पेंशन तक का मुद्दा इस में उठाया गया है अब बात पुलिस महकमे की हुई है तो एक सीन जो मुझे भावुक कर गया की पुलिस की टीम अपराधी को पकड़ने के लिए जाती है और सभी ने बुल्टप्रूफ जैकेट पहनी हुई है फिर भी एक इंस्पेक्टर को गोली जैकेट को पार करके सीने में लग जाती है यानी देश की राजधानी की पुलिस के पास न तो संख्या में पूर्ण कर्मचारी है और न उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त असला है 
कलाकारों की बात करें तो सारे कलाकार एक से बढ़कर एक हैं. इसलिए ऐक्टिंग सभी की अच्छी है. शेफ़ाली शाह (DCP वर्तिका चतुर्वेदी) किरदार की बॉडी लैंग्वेज तो पकड़ती ही हैं, पर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से जो काम उन्होंने किया है वो उस किरदार को और भी सुंदर बना देती हैं. इंस्पेक्टर भूपेंद्र बने राजेश तैलंग कभी लगता ही नहीं की किरदार में है वो जिस किरदार में होते है वो वही होते है एसीपी के रोल में रसिका दुग्गल ने जो नारीवादी एंगल सीरीज को दिया है वो एक अलग ही छाप छोड़ता है आदिल हुसैन और दिनकर शर्मा कम स्क्रीन समय में भी अपने होने को दर्शक के दिमाग में बैठा गए हैं कुल मिलकर बेहतरीन श्रेणी की सीरीज जिसमे सिनेमा के सभी पहलू आपको देखने को मिलेंगे। और सीरीज का अंतिम संवाद के साथ "हिम्मत की कीमत चुकानी पड़ेगी"। 
 

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