सुनीता गाबा
मधुमेह स्वयं में तो एक रोग है ही, अन्य रोगों की जननी भी है। यह आज समाज में अपने पैर इतने पसार चुका है कि इस पर काबू पाना मुश्किल सा होता जा रहा है। इस महामारी से ग्रस्त लोगों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है। इससे बचाव के लिए लोगों का जागरूक होना अति आवश्यक है। अगर लोग इससे लड़ने के तरीके जान जाएं तो इस जंग को जीतना आसान हो जाएगा।
कुछ फंडे मधुमेह से लड़ने के:
हमेशा इस मंत्रा को ध्यान में रखें कि नो फास्ट, नो फीस्ट। इसका अर्थ है न तो भूखे रहो, न जरूरत से अधिक खाओ। 2-3 घंटे के अंतराल में थोड़ा सा खाते रहे।
-खाने में कैलोरी और सोडियम की मात्रा सीमित रखें। मिठाई, चाकलेट, साफ्ट ड्रिंक्स, क्रीम, मक्खन, फैटी मीट न खाएं। बस ताजे फल, सब्जियां व अंकुरित दालें अपने दैनिक आहार में लें।
-प्रतिदिन प्रातः लम्बी सैर करें। 35 से 45 मिनट तक की सैर करें। सैर करने के लिए समय की कमी हो तो प्रतिदिन 15-20 मिनट नियमित व्यायाम करें।
-अल्कोहल, चाय, काफी से परहेज़ रखें क्योंकि इन सब चीज़ों से हार्ट पर प्रभाव पड़ता है। एंटी आॅक्टीडेंट्स हेतु बादाम, अखरोट का भी सेवन करें।
30-35 वर्ष की आयु के बाद अपने रूटीन चेक आप नियमित कराते रहें ताकि आप अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रह सकें।
-कमर की चैड़ाई और ब्लड प्रेशर का स्तर सामान्य से ऊपर जाने लगे तो यह आपके लिये खतरे की घंटी है।
-हंसने को अपनी दिनचर्या में ढाल लें क्योंकि हंसने से इंडोरफिन हारमोन निकलते हैं जो स्वास्थ्य हेतु लाभप्रद है।
-अपनी टोटल कैलोरी में फैट की मात्रा 25 से 35 प्रतिशत से अधिक न होने दें।
डायबिटिज वाले रोगियों को हार्ट की बीमारी का खतरा तो होता ही है, उसके अलावा अन्य अंगों पर भी इसका पड़ता है जैसे किडनी पर और कानों पर भी। अगर हम प्रारंभ से ही सही टेस्ट कराकर समस्या को नियंत्रित कर लें तो हम किडनी फेल होने से बचा सकते हैं।
किडनी पड़ जाती है कमजोर:
विशेषज्ञों के अनुसार अगर किडनी की समस्या प्रारंभ हो जाए तो इरेथ्रोपायटिन हार्मोन बनना बंद हो जाता है जो शरीर में रेड ब्लड सेल्स बनाने में मदद करता है। रेड ब्लड सेल्स न बनने से हीमोग्लोबिन की समस्या हो जाती है। अगर प्रारंभ में ही इलाज हो जाए तो किडनी फेलियर होने के खतरे को रोका जा सकता है। डायबिटिज के प्रारंभ से किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है और इरेथ्रोपायटिन हार्मोन के उत्पादन में भी कमी आ जाती है।
ध्यान रखें
-डायबिटिज के रोगियों को समय-समय पर ब्लड में हीमोग्लोबिन की जांच करवाते रहना चाहिये और यूरिन टेस्ट भी कराते रहें।
-अगर ब्लड में हीमोग्लोबिन कम हो और कोई वजह भी समझ न आए तो यूरिन कल्चर करवाएं। इंफेक्शन का पता लगने पर तुरंत इलाज प्रारंभ कर दें।
-अगर फिर भी लाभ न हो तो स्पेशलिस्ट से मिलकर अन्य जांच करवाएं ताकि किडनी के साइज और स्ट्रक्चर में अगर कोई बदलाव हो तो तुरंत इलाज प्रारंभ हो सकें। वैसे अब कुछ दवाइयों के सेवन से इरेथ्रोपायटिन की कमी को दूर किया जा सकता है।
कानों पर भी पड़ता है प्रभाव:
डब्ल्यू एच ओ की स्टडी के मुताबिक डायबिटिज वाले रोगियों का हियरिंग लाॅस अन्य लोगों के मुकाबले में 30 प्रतिशत अधिक होता है। डायबिटिज होते ही कानों पर प्रभाव नहीं पड़ता। 4 से 5 वर्ष तक अगर डायबिटिज कंट्रोल में न रहे तो कानों पर प्रभाव पड़ता है। हियरिंग लाॅस प्रारंभ तो जल्दी हो जाता है पर असर 4-5 वर्ष बाद ही पता चलता है। धूम्रपान भी करते हैं तो खतरा अधिक बढ़ जाता है। बहुत सारे लोग इस बात से अंजान रहते हैं।
स्पेशलिस्ट के अनुसार डायबिटिज के कारण कान के अंदर के भाग काक्लिमा में ब्लड सप्लाई करने वाली नर्व प्रभावित हो जाती है जिससे ब्लड सप्लाई पूरी न मिलने के कारण हियरिंग लाॅस प्रारंभ हो जाता है। अगर इलाज समय पर न किया जाए तो उम्र के साथ यह समस्या भी बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त हार्ट अटैक होता है तो रोगी को पता ही नहीं चलता। ऐसे में साइलेंट हार्ट अटैक रोगी की जान के लिए खतरनाक साबित होता है।
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