राजेन्द्र मिश्र ‘‘राज’
मृत्यु जीवन का एकमात्रा सत्य है। कोई भी व्यक्ति अमर नहीं है। हमें अपनी जिंदगी में जीवन की चारों अवस्थाओं से गुजरना है। यह बात अलग है कि किसी के लिए चारों ही अवस्थाएं सामान्य होती हैं तो किसी के लिए दुखद। आजकल पुरूषों में स्त्रिायों की तरह सौंदर्य बोध जाग रहा है। युवतियों में डाइटिंग की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हर युवती छरहरी दिखना चाहती है। मोटापा सचमुच ही त्रासदी बन रहा है।
यह जरूरी नहीं है कि आप दुबले पतले दिखने के लिए डाइटिंग करें। दवाओं का सेवन करें। एक अध्ययन के अनुसार डाइटिंग से ऑस्टियोपोरोसिस, बांझपन, चेहरे का बदसूरत दिखना, शरीर में ऊर्जा की कमी होना जैसे दोष पैदा हो रहे हैं।
डाइटिंग के कारण ही शरीर को उचित मात्रा में विटामिन और प्रोटीन नहीं मिल पाते हैं। यहां तक कि मस्तिष्क संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं। डाइटिंग का चलन कामकाजी महिलाओं में कुछ ज्यादा ही बढ़ रहा है। कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियांे में भी डाइटिंग की आदत बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
अब तो स्कूली छात्राएं भी डाइटिंग करने लगी हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार स्कूली बच्चों के टिफिन में पौष्टिक आहार दिनों दिनों घट रहा है। नर्सरी के बच्चों के टिफिन में बिस्किट, ब्रेड या नमकीन ही ज्यादा होते हैं।
लड़कियां दाल-रोटी की जगह अचार-परांठा या फिर पोहा खाना ज्यादा पसंद करती हैं। चॉकलेट का चलन भी अधिक हो गया है। दूध, दही, सलाद और फलों से तो मानों युवतियों को एलर्जी हो। उन्हें तो चाट, पाव-भाजी, छोला भटूरा, मोमोज़, पिज्जा, बर्गर, समोसा, भेल या फिर गोल गप्पे पसंद है।
क्या फायदा है डाइटिंग का? भूखे रहना बुद्धिमानी नहंीं है। खान-पान में लापरवाहियों का ही दुष्परिणाम है पेट से संबंधित रोगों का बढ़ना। डाइटिंग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आ जाती है। यही कारण है कि डाइटिंग करने वालों को खांसी-जुकाम जैसी बीमारियां भी जल्दी होती हैं।
कहने का तात्पर्य सिर्फ यह है कि डाइटिंग बीमारी का कारण बन सकती है। छरहरा रहना है तो श्रम करो। सुबह की सैर करो। संतुलित भोजन की आदत डालो। जीभ पर नियंत्राण करना सीख कर चटोरा बनने का जुर्म मत करो।
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