उषा जैन ‘शीरीं‘
आखिर नैतिकता सही मायने में कौन सा सामाजिक कानून है? इसे किसने बनाया, इसकी धाराएं कौन तय करेगा? कौन से कोर्ट में इसकी अपील होगी? फैसला कौन करेगा?
दरअसल नैतिकता की सीमा की कोई बाउंडरी नहीं है। नैतिकता बोध के मायने यही हैं कि आप स्वयं अच्छे बुरे को अपने विवेकानुसार समझें, परखें लेकिन यह बहस का मुद्दा है क्योंकि हर व्यक्ति की सोच अच्छे बुरे को लेकर भिन्न हो सकती है, खासकर आज के दौर
में।
फिर भी मोटे तौर पर आपकी अपनी भलाई के लिए आपके काम की जगह दफ्तर, फैक्टरी, बुटीक, अस्पताल, बैंक कहीं पर भी जहां आप जॉब कर रही हैं। आप यह देखें कि जो काम आपको सौंपा गया है, वह कानून की हद में है। जरा भी शक होने पर एहतियात बरत कर पहले ‘कन्फर्म‘ कर लें। जरा सी लापरवाही आपको मुसीबत में डाल सकती है। ऐसे में होगा यह कि ऊपरवाला साफ बच जाएगा, आप ही चपेट में आ जाएंगी।
दूसरी बात यह देखें कि इससे फायदा किसको हो रहा है। जो काम आपको सौंपा गया है वह कंपनी की भलाई के लिए है या काम सौंपनेवाले की अपनी भलाई के लिए या फिर उसमें आपका कुछ भला है। अपने प्रति ईमानदारी बरतें। अगर कंपनी का भला नहीं हो रहा है तो उस मुद्दे पर गंभीरता से सोचें।
हर प्रोफेशन के अपने कुछ उसूल और नैतिक नियम होते हैं। उनकी जानकारी आपके लिए निहायत जरूरी है। दुविधा में पड़ने पर कुछ आसान से टेस्ट आप स्वयं पर करके देखें। आपको सही उत्तर त्वरित रूप में मिलेगा।
आपको ऐसा व्यवहार करते हुए कुछ झिझक हो रही है, कुछ दुविधा लग रही है। आप यह सोचें कि अगर मेरे साथ कोई ऐसा करे तो क्या होगा। निश्चय ही आपको गलत बात पर क्रोध आएगा। बुरा लगेगा। मत करिए ऐसा कुछ।
ऑफिस में किसी धांधली, किसी गड़बड़ में आप शरीक हैं तो क्या यह बात आप सिर ऊंचा कर के अपने प्रियजनों को बता सकती हैं? उत्तर आप स्वयं जानती हैं।
एक और अहम् बात। ऑफिस में अपनी गरिमा बनाए रखें। पुरूष मित्रा बनाने, सबसे हंसने बोलने में हर्ज नहीं। हजऱ् है अपने को सस्ता और आसानी से उपलब्ध बनाने में। न अपने घर की समस्याएं, न पति की बुरी आदतें ऑफिस में किसी से डिस्कस करें, न बॉस की सहानुभूति बटोरने की चाल में फंसें। ये लटके बहुत पुराने हो चुके हैं, सो संभल कर रहें।
ऑफिस में आप इतनी परेशान हैं कि रात दिन का चैन गवां बैठी हैं, यहां तक कि आत्महत्या के कगार तक पहुंच गई है। ऐसे में बिना देर किए ‘रिजाइन‘ कर दें मगर पहले छुट्टियां जितनी ले सकती हैं, लें। इस बीच आप को सोचने समझने का वक्त मिलेगा। दूसरा जॉब ढूंढ सकती हैं।
याद रखिए नौकरी जि़न्दगी से बड़ी नहीं होती। अच्छा तो यही है कि हमेशा ‘सेफ साइड‘ लेकर चलें। ‘ओवर स्मार्टनेस‘ न दिखाएं। बड़बोली न बनें। ऑफिस के सीक्रेट्स कभी किसी के सामने न खोलें चाहे आप किसी भी ओहदे पर क्यों न हों।
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