दिलेर समाचार, डा॰ सुभाष शल्या। पोलियों विषाणुजनित रोग है जो रोगी को विकलांग बना देता है। प्रभावित होते समय अधिकांश पोलियो रोगियों की आयु एक से पांच वर्ष के बीच होती है। पोलियो प्रभावित 40 फीसदी रोगियों में हाथ-पैर का लकवा होता है। जिनमें असर गहरा होता है, उनकी मांसपेशियों की ताकत वापस नहीं आती व प्रभावित हाथ, पैर पूर्णरूपेण शिथिल व विकलांग हो जाते हैं।
पोलियों में मांसपेशियां असामान्य रूप से कमजोर हो जाती हैं, जोड़ों में असंतुलन से वे टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। शरीर के स्थायित्व में कमी से अंतिम रूप से हड्डियां भी टेढ़ी तथा छोटी हो जाती हैं। पोलियोग्रस्त विकलांगों की एक टांग 1 से 3 इंच तक छोटी हो जाना सामान्य बात है। इससे रोगी की चाल में लचक आ जाती है व चलने में ज्यादा शक्ति लगती है। नतीजतन वह जल्दी थक जाता है। प्रायः छोटी टांग की लंबाई समायोजित करने के लिए पंजा आगे से नीचे लटक जाता है ताकि जमीन छू सके तथा एड़ी ऊपर उठ जाती है और घुटना आगे निकल आता है व कूल्हा पीछे। रोगी घुटने पर हाथ टिकाकर, आगे झुक कर चलता है जिससे रीढ़ की हड्डी भी टेढ़ी हो जाती है जो बाद में स्थाई विकलांगता बन जाती है। मांस-पेशियों की कमजोरी के कारण रोगी अक्सर घुटनों व पैरों को मोड़कर रखता है जिससे कूल्हे घुटने व एड़ी के जोड़ों में कुरूपता आ जाती है। एक टांग छोटी होने के कारण कूल्हे एक ओर झुक जाते हैं जिसका प्रभाव रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है।
पोलियो विकलांगता को सुधारने के लिए इलिजारोव रिंग फिक्सेटर पद्धति अपनाई जाती है। इस पद्धति से छोटी हुई टांग का लंबा करना, हड्डियों तथा जोड़ों का टेढ़ापन दूर करना, पतली हुई टांग को मोटा करना तथा जोड़ों के अस्थायित्व को स्थायित्व में बदला जाता है। अधिकांशतः यह सब एक बार की शल्यक्रिया में ही हो जाता है। इस तरह एक रोगी विकलांगता से परे नया जीवन जीता है।
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