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सोशल मीडिया पर हुआ फेसबुक विवाद

Posted at: Nov 11 , 2017 by Dilersamachar 10109
 

दिलेर समाचार, देश के नेताओं में राहुल अमित शाह मोदी आदि सभी में दलितों के यहां भोजन करने की होड़ लगी है। यह राजा का काम नहीं। राजा का काम है कि वो ऐसे काम करे कि दलित भी उस जैसा भोजन करें। देश मे राजा का काम नहीं कि वो मन्दिर मस्जिद के विवाद मंे पडे़। राजा का काम है कि वो देश को ही मन्दिर बना दे।

हम राजा तो बदलते हैं पर राजा अपना चरित्रा नहीं बदलते, राजा राम हांे या रावण। जनता तो बेचारी सीता है एक अपहरण कर लेगा तो दूसरा अग्नि परीक्षा लेकर भी बनवास दे देगा। राजा कौरव हो या पाण्डव, कोई फर्क नही पड़ता जनता तो द्रोपदी ही रहेगी। एक चीर हरण करेगा तो एक जुए मे हरा देगा कोई फर्क नहीं पड़ता राजा हिन्दू हो या मुस्लिम। जनता तो बेचारी लाश है। एक जला देगा तो दूसरा मिट्टी मे दफना देगा।

मोदी जी ने कहा कि अच्छे दिन आएँगे। ना तारीख बताई, ना सन बताया। यही मन्दिर का मसला था कि राम लला हम आएंगे, मन्दिर वही बनाएंगे पर तारीख नही बताएंगे। मोदी जी जनता ने आप पर भरोसा करके बुलन्दियों पर तो पहुंचा दिया अब टिके रहना आपका काम है।

बुलेट ट्रेन पर कहना चाहता हूं कि उधार व दान के पैसों पर मौज मस्ती नही की जा सकती ? देश मंे उस व्यक्ति की तरफ भी गौर करो जो लम्बी लम्बी यात्राएं तक बसांेे में खडे़ होकर उस डिब्बे मंे करता है जिसकी क्षमता तो 80 यात्रियों की होती है पर सफर करते है 300 से 400 लोग। ,इतना ही नहीं, पैसा देकर हाई टेंशन तार के नीचे रेल की छत पर बैठकर सफर करता हुआ अपने मां बाप बीबी बच्चों की दुआ के साथ यात्रा करने को मजबूर है। पहले उसे डिब्बे के अन्दर बिठाओ। इसका भी समय तय करदो जैसे बुलट ट्रेन का समय 2022 तय कर दिया।

(नरोत्तम शर्मा की फेसबुक वॉल से)

रमन सिंह

रमन सिंह से बेवकूफ मुख्यमंत्राी कौन होगा? अपने प्रदेश के प्रतिष्ठित पत्राकार को उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित करने की जगह दिल्ली/यूपी पुलिस भेजकर उठवाया है, एक दुराचारी मंत्राी के अहम की तुष्टि के लिए।

इसके लिए देश भर में उनकी सरकार की थूथू हो रही है। दूसरी तरफ यौन वीडियो क्लिप वायरल हो चुका है। दस-बारह बार तो अनचाहे मेरे पास ही आ चुका। इस प्रसार का अंदेशा मुझे तभी हो गया था जब छत्तीसगढ़ सरकार ने विनोद वर्मा पर हाथ डाला।

क्या इसे ही नहीं कहते, प्याज भी खाना और जूते भी?

(ओम थानवी की फेसबुक वॉल से)

राष्ट्रपति का सुप्रीमकोर्ट को सलाह

उच्च न्यायालय अंग्रेजी में निर्णय देते हैं लेकिन हमारे देश में विविध भाषाएं हैं। हो सकता है कि वादी अंग्रेजी भाषा में इतने दक्ष नहीं हों और वे निर्णय के अहम बिंदुओं को समझ पाएं। ऐसा होने पर वादियों को वकीलों या निर्णय का अनुवाद करने वाले अन्य व्यक्ति पर निर्भर रहना होगा। इससे समय और खर्च बढ़ सकता है।

(

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