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अजय देवगन के फैन्स के लिए है ‘रेड’

Posted at: Mar 16 , 2018 by Dilersamachar 9619

दिलेर समाचार, हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री में बायोपिक की बाढ़ रुके नहीं रुक रही। हर दूसरी फ़िल्म रियल लाइफ चरित्र पर आधारित है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के इनकम टैक्स ऑफिसर की सच्ची कहानी है फ़िल्म ‘रेड’। डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता ने फ़िल्म की कहानी का विषय तो बहुत ही कमाल का चुना और यह जरूरी भी है कि समाज के ऐसे नायकों की कहानी कहीं जाए जिन्होंने समाज पर वाकई असर डाला हो! ऐसे ही एक नायक की कहानी है ‘रेड’।

ढेरों तबादले झेल चुके नायक का तबादला जब लखनऊ होता है तब वहां उनके सहयोगी उनकी ईमानदारी पर सब लगाते हैं। जैसा कि अमूमन सरकारी विभागों में होता आया है कि जैसे ही कोई बड़ा अधिकारी तबादला ले कर आता है, बहुत शोर मचाता है मगर बाद में वह भी सिस्टम मे ढल जाता है! कुछ उसी तरह की उम्मीद अमय पटनायक (अजय देवगन) से की जा रही थी। मगर वो एक अलग ही धातु के बने हैं और वो उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े बाहुबली नेता रामेश्वर सिंह उर्फ़ ताऊजी (सौरभ शुक्ला) के घर उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे लंबी चलने वाली रेड मारने पहुंचते हैं!

निर्देशक राज कुमार गुप्ता की कहानी की प्रेरणास्तोत्र तो दमदार था लेकिन, हर व्यक्ति, चित्र फ़िल्म का विषय हो यह ज़रूरी नहीं! विषय आपको लुभावना लग सकता है मगर क्या उसमें नाटकीयता है? उसकी कहानी में उतार-चढ़ाव है? उस कहानी में फ़िल्म बनने के बीज मौजूद है? इन सारी बातों को आपके प्रेरणास्तोत्र और सिनेमा के बीच रखना जरूरी हो जाता है!

शायद दृश्यों के लगातार दोहराव ने फ़िल्म को बोझिल बना दिया। अगर फ़िल्म की कहानी पर, उसके उतार-चढ़ाव पर काम किया जाता तो शायद इस फ़िल्म के सीक्वल भी बनते नज़र आते! लेकिन, कथा-पटकथा की कमजोरी ने फ़िल्म को एक साधारण फ़िल्म की श्रेणी में ला खड़ा किया। अजय देवगन जैसे सितारे टी सीरिज़ जैसे निर्माता, ग्रैंड प्रोडक्शन वैल्यू के होने के बावजूद फ़िल्म कोई कमाल करती नज़र नहीं आती।

इस फ़िल्म की सबसे बड़ी कमी ये है कि जब फ़िल्म में अजय देवगन जैसे सुपरस्टार हैं जिन्हें दर्शकों ने सशक्त सिंघम के रूप में स्वीकार किया हुआ हो, उनसे ये उम्मीद जुड़ जाती है कि वो क्लाइमेक्स में कुछ चमत्कार करेंगे! इस हीरोइज्म पर ही हमारा स्टार सिस्टम टिका हुआ है मगर, एक साधारण इंसान के रूप में एक डरे हुए हीरो को स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है!

अभिनय की बात करें तो अजय देवगन एक शानदार अभिनेता हैं और उन्होंने सौरभ शुक्ला के साथ मिलकर अभिनय और फ़िल्म को एक अलग ऊंचाई दी है। इलियाना डिक्रूज के पास करने को बहुत कुछ था नहीं मगर, वह अपने किरदार में दर्शनीय रही हैं। बाकी के कलाकारों में उल्लेखनीय ऐसा एक भी चरित्र नहीं रहा!

तकनीकी स्तर पर अगर बात करें तो फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी शानदार है। फ़िल्म जो सामने दिखती है एडिटिंग टेबल पर ही की गयी है, उसमें से बेहतरीन निकालने की ईमानदार कोशिश एडिटिंग विभाग ने पूरी तरह से की है। फ़िल्म का आर्ट डायरेक्शन कमाल का है और कॉस्ट्यूम डिजाइनर ने किरदारों के अनुरूप ही कॉस्ट्यूम देने में सफलता हासिल की है।

कुल मिलाकर ‘रेड’ एक साधारण फ़िल्म है जिससे काफी उम्मीदें की जा रही थीं। अगर आप अजय देवगन के हार्डकोर फैन हैं तो आप यह फ़िल्म एक बार देख सकते हैं। अन्यथा ना भी देखें तो कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला!

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