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यूपी के गंगा घाटों की महिमा है अद्भुत

Posted at: Oct 1 , 2017 by Dilersamachar 9890
दिलेर समाचार,काशी, कानपुर और इलाहाबाद में पूरे भारत में सबसे पवित्र शहर माने जाते है। धर्म एवं संस्कृति का केंद्र बिन्दु काशी रहा हैं। असि से आदिकेशव तक घाट श्रृंखला में हर घाट के अलग ठाठ हैं। कहीं, शिव गंगा में समाये हुये हैं तो किसी घाट की सीढि़यां शास्त्रीय विधान में निर्मित हैं।

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विभिन्न शुभ अवसरों पर गंगापूजा के लिए इन घाटों को ही साक्षी बनाया जाता है। विभिन्न विख्यात संत महात्माओं ने इन्हीं घाटों पर आश्रय लिया जिनमें तुलसीदास, रामानन्द, रविदास, तैलंग स्वामी, कुमार स्वामी प्रमुख हैं। कई राजाओं-महाराजाओं ने इन्हीं गंगा घाटों पर अपने महलों का निर्माण कराया एवं निवास किया।
यह दक्षिण की ओर स्थित अंतिम घाट है। इस घाट के पास कई मंदिर और अखाडे हैं। असीघाट के उत्तर में जगन्नाथ मंदिर है, जहां प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।

दशाश्वमेध घाट .................दशाश्वमेध घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पडता है। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक राजा दिवोदास द्वारा यहां दस अश्वमेघ यज्ञ कराने के कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पडा।

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पंचगंगा घाट .................पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचगंगा घाट से गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपापा नदियां गुप्त रूप से मिलती हैं। इसी घाट की सीढियों पर गुरू गुरू रामानंद से कबीरदास जी ने दीक्षा ली थी।
मणिकार्णिका घाट .................इस घाट का निर्माण महाराजा इंदौर ने करवाया है। पौराणिक मान्यताओं से जु़डे मणिकार्णिका घाट का धर्मप्राण जनता में मरणोपरांत अंतिम संस्कार के लिहाज से अत्यधिक महत्व है। इस घाट की गणना काशी के पंचतीर्थो में की जाती है। मणिकार्णिका घाट पर स्थित भवनों का निर्माण पेशवा बाजीराव तथा अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।


इलाहाबाद का त्रिवेणी संगम .................इलाहाबाद में संगम स्थल जहां भारत की पवित्र नदियों गंगा-यमुना व सरस्वती का संगम होता है। हालांकि सरस्वती दिखती नहीं पर लोगों की मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में होकर गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है इसीलिए यहां के संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहलाता है। त्रिवेणी संगम के धार्मिक महत्व के बारे में ऎसी धारणा है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्राप्त हुआ तब लोग इस अमृत कलश को असुरों से बचाने के प्रयास मे लगे थे इसी खींचातानी में अमृत कि कुछ बूंदें धरती पर गिरी थी और जहां-जहां भी यह बूंदें पडी उन स्थानों पर कुुंभ का मेला लगता है यह स्थान उज्जैन,हरिद्वार, नासिका व प्रयाग थे।

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