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बिना सबके सहयोग के कैसे हो पाएगी गंगा निर्मल

Posted at: Jul 6 , 2018 by Dilersamachar 9623
दिलेर समाचा,  संतोष कुमार तिवारी, गंगा या अन्य नदियों की धारा अविरल हो, स्वच्छ हो इसके लिये सरकार कई वर्षों से प्रयासरत है लेकिन कोई खास प्रगति नहीं देखने को मिल रही है। गंगा की स्वच्छता के लिये वर्तमान सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे का आगाज किया लेकिन तीन वर्ष बीतने के बावजूद भी दशा में इच्छित प्रगति नहीं है। सरकार द्वारा इस योजना के लिये धन की कमी नहीं है। गंगा की सफाई के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च हो गये लेकिन सुधार न के बराबर। यहां केवल कमी है तो हम सब की लापरवाही युक्त जिम्मेदारी की जिसमें केवल जमीन पर कम कागजों पर ज्यादा काम करना देश के लिये, पर्यावरण के लिये, गंगा के लिये और हम सब के लिये दुखदायी है। गंगा देश के पांच राज्यों के 97 शहरों से होकर बहती है। गंगा की स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सरकार के साथ साथ कई सामाजिक संगठन भी लगे हैं।

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1883 में अपने जमाने के हिन्दी के विद्वान व लेखक पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने जून में प्रकाशित ‘ब्राह्मण’ पत्रिका में गंगा की सफाई का उल्लेख किया लेकिन आज 135 साल बाद भी हमारी गंगा दिनोंदिन और खराब स्थिति को प्राप्त होती जा रही है। वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण  में ईको सिस्टम को प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। यह बहुत ही सराहनीय व अच्छा कदम है। गंगा में रहने वाले जीवों को मारना गैरकानूनी है तो सरकार खुलेआम मछली मारनेे वालों पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है?

मालूम होे कि गंगा में गंगा डाल्फिन, उदविलाव की तीन प्रजातियां, घडि़याल, मगरमच्छ, कछुएं की तेरह प्रजातियां और मछली की 143 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनका संरक्षण बहुत जरूरी है। हाल ही में हुये एक परीक्षण में गंगा नदी में 43 किमी तक किसी भी जलीय जीव का न पाया जाना चिंता का विषय है। विदित हो कि वेद पुराण में 84 लाख के जीवों का जिक्र है लेकिन वैज्ञानिक अबतक केवल 60 लाख जीवों का पता लगा सके हैं लेकिन यदि यह विलुप्तिकरण ऐसे होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे वैज्ञानिकों को उक्त आंकड़ों से आगे जाने का मौका मिल पायेगा। जैव विविधता बनाने में सब को सामूहिक रूप से पूरी जिम्मेदारी के साथ सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली योजनाओं में सहयोग करना  ही होगा। कुछ नहीं होगा केवल खानापूर्ति करने से होगा।

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अब यहां प्रश्न यह बनता है कि गंगा की बालू चाहे वह गंगा में हो या किनारे घाटों पर, यह भी जलीय जीवों के लिये लाभदायक है लेकिन फिर भी गंगा घाटों से बालू की निकासी होती है जो जलीय जीवों के रहने में असुविधा पैदा करती है। केवल मछली मारना, बालू की निकासी ही नहीं अपितु अन्य कई कारण और भी हैं जो गंगा को दूषित करने में सहयोगी हैं जिसमें नालों की निकासी, खेतों या मैदान का गंदा पानी, शवों का प्रवाह, कूड़ा कर्कट, मूर्ति इत्यादि का डालना प्रमुख हैं। इसके लिये जनजागृति जरूरी है, तभी गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाया जा सकता है।

गंगा को पुनः पवित्रा, निर्मल एवं प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये गंगा के तटबंधों पर वृक्षारोपण, पौधारोपण करना, खुले में या गंगा के किनारे शौच न करना, केमिकल या प्रदूषकों का प्रयोग न करना, जैविक खेती पर बल देते हुये रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग कम करना या न करना, पूजा सामग्री या मूर्ति विसर्जन न करना, प्लास्टिक बोतल या पालिथिन का प्रयोग न करना तथा मृत पशुओं को गंगा में प्रवाहित न करना प्रमुख रूप से जरूरी हैं।

हमें ज्ञात होना चाहिये कि गंगा की निर्मलता व स्वच्छता में आम जनमानस का सहयोग नितान्त आवश्यक है। केवल सरकार के सहारे रहकर यह बड़ा अभियान पूरा नहीं हो सकता है। गंगा की स्वच्छता के साथ साथ पर्यावरण की शुद्धता बनाये रखने में हमसब का सहयोग जरूरी है। सरकार भी बनाये गये कानून का उल्लंघन करने वालों या लापरवाही करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करके राष्ट्रहित में कदम उठाये। वैसे हम सब की लापरवाही का परिणाम हम सब की आगे आने वाली पीढ़ी झेलेगी। अतः हम सब को मिलकर सरकार के तरफ से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं में सहयोग देकर देश को प्रगति की तरफ ले जाना चाहिए।

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