Logo
March 29 2024 08:45 PM

क्या आप आज तक पता लगा पाए हैं की किन कारणों से होता है अस्थमा

Posted at: Sep 3 , 2017 by Dilersamachar 11137

दिलेर समाचार, अस्थमा जिसे दुसरे शब्दों में दमा कहा जाता है, यह एक रोग है जिसका समय पर उपचार न किया जाय तो इसका रोगी पर गंभीर असर देखने को मिलता हैं। सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाने के कारण जब किसी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है तब यह स्थिति दमा रोग कहलाती है, इस रोग में व्यक्ति को खांसी की समस्या भी होती है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा होने के कारण इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन और संकुचन पैदा हो जाता है जिससे फेफड़ो में वायु का प्रवाह सही ढंग से नहीं हो पाता हैं। जिसकी वजह से रोगी व्यक्ति को साँस लेने में खासा परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। जिससे रोगी व्यक्ति के शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन नहीं मिल पाता हैं । जिसकी वजह से कई विषम परिस्थितयो में रोगी की मौत तक हो जाती हैं।वैसे तो इस बिमारी का अभी तक चिकित्सा विज्ञान में कोई प्रमाणित इलाज संभव नहीं हो पाया है। लेकिन कुछ ऐहतियात बरत के हम इसपर कंट्रोल पा सकते हैं । तो चलिए आपको बताते है दमा होने के क्या करण हैं और हम इस से कैसे बचाऊ कर सकते हैं।

वंशानुगत कारक : अस्थमा (दमा) एक वंशानुगत बिमारी है। वंशानुगत बीमारियां – ऐशी हार्मोनल बीमारियां होती हैं जो की हमे बड़े – बुढो से स्वतः मिल जाती हैं। यानि की अगर हमारे परिवार में कोई बड़े-बुजर्ग किसी रोग से प्रभावित होते हैं तो एक ही हार्मोन होने की वजह से उनके बच्चो को उस रोग के होने की संभवाना काफी बढ़ जाती हैं।

एलर्जी :- एलर्जी एक ऐसी समस्या है जो किसी को कभी भी हो सकती है. एलर्जी आमतौर पर नाक, गले, कान, फेफड़ों और त्वचा को प्रभावित करती है ।कई बार नाक,फेफड़ों और त्वचा संबंधी एलर्जी के कारण भी अस्थमा (दमा) की समस्या उत्पन्न हो सकती हैं।

वायु प्रदुषण :- प्रदुषण दिन व दिन गंभीर समस्या बनता जा रहा है। वायु प्रदूषण जैसे धूल, घुन, पराग के कुप्रभाव से ज्यादातर साँस और फेफड़ो संबंधी समस्या में बढ़ोतरी देखनो को मिल रही है। जिसमे ज्यादातर लोग अस्थमा (दमा) से प्रभावित हैं।

खराब जीवनशैली :- आज के आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली जितनी व्यस्त हो रही है उतना ही ज्यादा खराब भी हो रही हैं। शारीरिक क्षमता में कमी, खराब खानपान, स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही भी अस्थमा (दमा) का एक महत्वपूर्ण कारण हैं।

खाने में शल्फर की अधिकता :- ज्यादा साल्ट और जंक फ़ूड खाने से अस्थमा (Asthma) होने का खतरा बढ़ता है।

धूम्रपान: धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा होने का खतरा होता है।

दमा होने के लक्षण

सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती है शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव) दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है। दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेनें में बहुत अधिक कठिनाई होती है। दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं। दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं। सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है। नाक से साँस लेने में परेशानी घबराहट, सीने में दर्द, साँस लेते समय आवाज होना।

दमा से जुड़े परीक्षण

स्पिरोमेटी :-इस जांच से आदमी के सांस लेने की गति का पता चलता है। यह एक सामान्य प्रकार का टेस्ट होता है जो किसी भी मेडिकल क्लिनिक में हो सकता सकता है। इस जांच से सांस लेने की दिक्कत या हृदय रोग को पहचाना जा सकता है।

पीक फ्लो :-इस जांच द्वारा पता लगया जा सकता है कि आदमी अपने फेफडे से कितनी तेजी से और आसानी से सांसों को बाहर कर रहा हे। अस्थमा को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी सांसों को तेजी से बाहर निकालें। इस मशीन में एक मार्कर होता है जो सांस बाहर निकालते समय स्लाइड को बाहर की ओर ढकेलता है।

चेस्टन एक्सरे :-अस्थमा में चेस्ट का एक्सरे कराना चाहिए। चेस्ट एक्सरे द्वारा अस्थमा को फेफडे की अन्य वीमारियों से अलग किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा अस्थमा को देखा नहीं जा सकता लेकिन इससे संबंधित स्थितियां जानी जा सकती हैं।

एलर्जी टेस्ट :-कई बार डॉक्टर एलर्जी टेस्ट के बारे में सलाह देते हैं, इस टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि आदमी कि टिगर्स की सही स्थिति क्‍या है और कौन सी परिस्थितियां आपको प्रभावित कर सकती हैं।

स्किन प्रिक टेस्ट :-स्किन प्रिक टेस्ट बहुत साधारण तरीके से होता है और एलर्जिक टिगर्स जानने का बहुत ही प्रभावी तरीका होता है। यह बहुत ही सस्ता, तुरंत रिजल्ट देने वाला और बहुत ही सुरक्षित टेस्ट होता है।

ब्लड टेस्ट :-ब्लड टेस्ट, द्वारा अस्थमा का पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन शरीर के त्वचा की एलर्जी के लिए यह टेस्ट बहुत ही कारगर होता है।

शारीरिक परीक्षण :-अस्थमा की जांच के लिए डॉक्टर आपका शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं जैसे, चेस्ट के घरघराहट की आवाज सुनना। चेस्टं के घरघराहट की आवाज से अस्थतमा की गंभीरता को पहचाना जा सकता है।

दमा का घरेलू इलाज

·         फेफड़े में बसी ठडक निकालने के लिए छाती और पीठ पर कोई गर्म तासीर वाला तेल लगाकर ऊपर से रुई की पर्त बिछाकर रातभर या दिन भर बनियान पहने रहें।

·         बायीं नासिका के छिद्र में रुई लगाकर बन्द कर लेने से दाहिनी नासिका ही चलेगी। इस स्वर चिकित्सा से दमा के रोगियों को बहुत आराम मिलता है।

·         नाक के बढ़े हुए मास या हड्डी से छुटकारा पाने के लिए तेल नेति, रबर नेति व नमक पड़े हुए गर्म पानी से जल नेति करे।

·         साइट्रस फूड जैसे संतरे का जूस, हरी गोभी में विटामिन सी की मात्रा अधिक पायी जाती हैं और यह अस्‍थमा के मरीज़ों के लिये अच्‍छे होते हैं।

·         शरीर शोधन में कफ के निवारण के लिए वमन (उल्टी) लाभप्रद उपाय है। श्वास के रोगी को आमाशय, आतों और फेफड़ों के शुद्धीकरण के लिए‘अमलतास’ का विरेचन विशेष लाभप्रद है। इसके लिए 250 मि.ली. पानी में 5 से 10 ग्राम अमलतास का गूदा उबालें। चौथाई शेष रहने पर छानकर रात को सोते समय दमा पीड़ित शख्स को चाय की तरह पिला दें।

·         ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें विटामिन बी की मात्रा ज़्यादा होती है जैसे दाल और हरी सब्ज़ियां, वो अस्थमैटिक्स को अटैक से बचाती हैं। ऐसा भी पाया गया है कि अस्थमैटिक्स में नायसिन और विटामिन बी 6 की कमी होती है।

·         सेलेनियम भी फेफड़ों में हुई सूजन को कम करने में उपयोगी होता है। अगर सेलेनियम के साथ अस्थमैटिक्स द्वारा विटामिन सी और ई भी लिया जा रहा है तो प्रभाव दोगुना हो जाता है। सेलेनियम सी फूड, चिकेन और मीट में भी पाया जाता है।

·         तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी काली मिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।

·         गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रि‍त करने में राहत मिलती है।

·         अस्थमा रोगी को लहसून की चाय या फिर दूध में लहसून उबालकर पीना भी लाभदायक है।

·         दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसका पाने में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिए तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

·         लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।

·         180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।

दमा रोग से जुड़ी सावधानियां

·         दमा रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की अवस्था और खराब हो सकती है ।

·         इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में लेसदार पदार्थ तथा मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए ।

·         एयरटाइट गद्दे .बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है ।

·         दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें ।

·         किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें ।

ये भी पढ़े: अगर आप भी अपनी शादीशुदा जिंदगी का आनंद लेना चाहते है तो करें ये उपाय

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED