दिलेर समाचार, उज्जैन। सावन के पवित्र महीनें में शिव कि पुजा को अधिक महत्व दिया जाता है एवं भगवान शिव के अवतार हनुमान जी है। इनकी भी सावन के महीनें में विभिन्न कथाओं एवं धार्मिक कार्यो का अयोजन किया जाता है। भगवान शिव ने ही हनुमान का रूप धारण कर श्री राम कि सहायता कि थी। एवं सीता को ढूंढने में और दुष्टों का नाश करने में वानर का रूप धारण कर आये शिव जी ही थे।
आज हम ऐसे हनुमान के ऐसे कार्यो के बारे में बता रहे है। जो कार्य कोई नही करता है। हनुमान श्रीराम और लक्ष्मण को उनके संकट से निकालने वाले हनुमान ही थे जिन्होने लक्ष्मण कि भाभी सीता को दुष्ट रावण के कैद से छुड़वाया था। लक्ष्मण के बाण लगने पर भी हनुमान ने जड़ीबूटी नही मिलने पर पहाड़ को उठा कर ले आये थे। भवगावन शिव ने हनुमान का अवतार धारण कर वानर के रूप धरती पर कदम रखकर श्रीराम व लक्ष्मण कि सहायता कि पूरा साथ दिया। और समुन्द्र को पार कराने में पत्थरों से रोड़ बनाकर समून्द्र पार करवाया था।
हनुमान जी ने जब सीता को ढूंढने लंका गये थे तो लंकापती रावण के राक्षसों ने हनुमान का सामना किया लेकिन हनुमान ने उन सब को मार डाला एवं रावण कि लंका में लगे पेड़ो का भी नाश किया एवं सीता जिस पेड़ के नीचे बैठी थी उस पेड़ पर जाकर बैठ गये और सीाता को भजन सुनाया एवं सीता से वार्ता कि। हनुमान व रावण के बीच एक घमाशान युद्ध हुआ और रावण के थप्पड़ भी जड़ा। जबकि शिवपुराण के अनुसार तो त्रेतायुग में भगवान श्रीराम का साथ देने एवं दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था। जब हनुमान ने रावण को थप्पड़ मारा था तो रावण ऐसे कांप गया जैसे पृथ्वी भूंकप आ गया हो। जब हनुमान जी ने श्रीराम के आर्शीवाद के बाद माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र घबरा गये।
जब हनुमान ने सभी वानरों को उनकी छलांग लगाने कि क्षमता के बारे में पूछा तो किसी ने 30 योजन तक तो किसी ने 50 योजन तक कि छलांग लगाने कि क्षमता बताई। लेकिन जब ऋतुराज जामंवत ने सभी वानरों को बताया कि मैं कम से कम 90 योजन तक कि छलांग लगा सकता हूँ। व हनुमान ने 100 योजन तक कि छलांग लगा सकते है तो सभी वानर आश्चर्य में पड़ गये। जिसके बाद हनुमान ने एक छलांग में 100 योजन पार कर लिया। जब हनुमानजी ने समुन्द्र पार कर लंका के लंकापति रावण के महल पर पहुंचे तो और प्रवेश करते समय एक राक्षस ने उन्हे रोका तो उसे मार दिया। जब हनुमान ने सीता कि खोज करने के लिए पूरी लंका को छान लिया लेकिन नही मिलने पर उन्हे शक हुआ कि रावण कही सीता का वध तो नही कर दिया।
लेकिन फिर भी हनुमान ने अपने परिश्रम में कमी नही छोड़ते हुए अशोक वाटिका कि ओर जाते समय सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह दुष्कर कार्य भी बहुत ही सहजता से कर दिया। लेकिन हनुमान जी के द्वारा किये गये नुकसान को देखते हुए रावण हनुमान को पकडऩे के लिए अपने सैनिकों एवं उसके बाद अपने पुत्र को भेजा तो हनुमान जी ने उन सब को मार डाला। और लंका को अपनी पूछं कि सहायता से पूरी लंका में आग लगा दी। बताया जाता है कि रामचरितमानस में लिखा हुआ है कि जब हनुमान जी लंका में थे तब विभीषण ने श्रीराम का नाम पुकारा तब हनुमान के मन में कोई बात उत्पन्न हुई और अपना रूप बदलकर विभीषण के पास गये एवं बातचीत कि उसके बाद दोनो का साथ मिल गया और हनुमान ने सीता के बारे में अपनी पूरी जानकरी विभीषण को बता दी। हनुमानजी ने विभीषण का समर्थन कर श्रीराम के परामर्श से रावण का वध किया गया।
इंन्द्रजीत ने कई करोडा़े वानरों का वध कर दिया जिसे देखकर श्रीराम व लक्ष्मण दोनो बेहोश हो गये। और जामंवत ने हनुमानजी को पर्वत पर भेजा और सुगंन्धित जड़ीबूटी मंगवाई और श्रीराम व लक्ष्मण सहित सभी वानरों को स्वस्थ किया गया । हनुमानजी को धरती पर लाने के लिए सप्त ऋषियों ने वानर केसरी कि पत्नी के कान से शिव के वीर्य को डाला गया जिससे वह गर्भ में स्थापित हो गया और उसके माध्यम से हनुमान जी अंजनी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए। बाल्यकाल में हनुमानजी ने सूर्यदेव को अपने अनुसार फल समझकर खाने लगे तो इंन्द्रदेव जी ने हनुमान जी के ऊपर वज्र का वार किया। जिससे उनका ध्यान कही और चला गया। जब वायुदेव ने ऐसा देखा तो तत्काल पुरे संसार में वायु के प्रवाह को रोक दिया और पूरे संसार में आहाकार मच गया। सूर्यदेव ने हनुमानजी को अपने से बढक़र सौ से बढक़र अधिक शक्तिशाली बताया है।
जब हनुमान में शास्त्र के ज्ञान प्राप्त करने कि जरूरत आ जायेगी तब में ही इन्हे शास्त्रज्ञान दूंगा जिससे इसकी समानता करने वाला कोई नही होगा। सभी देवताओं ने हनुमान को वरदान दिया धर्मराज ने अपने वरदान में अवध्य और निरोग होगा। कुबेर ने युद्ध में विशाद नही मिलेगा। भगवान शिव ने शस्त्रों के द्वारा कभी परेशान नही होगा। विश्वकर्मा ने ंिचरंजीवी होने का वरदान दिया। इंन्द्रदेव के अनुसार वह वज्र रहेगा। वरूण ने बताया कि जल से मृत्यु नही होगी। हनुमान जी के परमपिता ब्रहम्मा ने वरदान देते हुए इसके दीर्घायु एवं युद्ध में कभी भी अपनी हार नही होगी। और यह अपनी इच्छा के आधार अपना रूप बदल सकता है।
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