दिलेर समाचार, इंसान को सबसे बड़ी खुशी उस वक्त होती है, जब उसको संतान की प्राप्ति होती है। बच्चे के होने के साथ ही वह उसकी परवरिश में जुट जाता है और उसकी बेहतर जिंदगी के सपने बुनने की कवायद करने लगता है। बच्चे के जन्म से ही उसके भविष्य का निर्धारण हो जाता है। शुभ योग में जन्म लेने वाले बच्चे जीवन में उत्तम सुखों की प्राप्ति करते हैं और अशुभ योगों की वजह से उसको दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ विशेष दिनों में बच्चों के जन्म लेने से उनके ऊपर संकटों का साया गहराता रहता है। आइए अब बात करते हैं विशेष तिथि में जन्म लेने वाले बच्चों की।
संक्रांति
संक्रांति तिथि में बच्चे का जन्म अशुभ माना जाता है। संक्रांति को सप्ताह के वारों के हिसाब से अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। सोमवार की संक्रांति को ध्वांक्षी, मंगलवार को महोदरी, बुधवार को मन्दा, गुरूवार को मन्दाकिनी, शुक्रवार को मिश्रा व शनिवार की संक्रान्ति को राक्षसी कहते है। इन अलग-अलग संक्राति को जन्मे बच्चों पर प्रभाव भी अलग अलग होता है। संक्रांति के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए ब्राह्मण को गाय और सोने का दान करना चाहिए। शिव रुद्राभिषेक और छाया पात्र दान करने से भी संक्राति पर जन्म के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
भद्रा में जन्म भी शुभ नहीं माना जाता है। भद्रा में जन्म लेने वाले बच्चे को जिंदगी में काफी मुसीबतें उठाना पड़ती है। इस दिन जन्मे बच्चे का जीवन कष्टों में गुजरता है। भद्रा के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए सूक्त और पुरूष सूक्त का पाठ करने के साथ रुद्राभिषेक करना चाहिए। पीपल के वृक्ष की पूजा करने से भी भद्रा का अशुभ प्रभाव कम होता है।
शास्त्रों में कृष्ण चतुर्दशी को छह भागों में बांटकर जन्म के लिए उसके अलग-अलग दोष बतलाए गए हैं। कृष्ण चतुर्दशी के पहले भाग में जन्म शुभ होता है, लेकिन दूसरे भाग में बच्चे का जन्म पिता को दिक्कत दे सकता है। तीसरे भाग में जन्म माता के लिए अशुभ होता है। चौथे भाग में जन्म मामा के लिए कष्ट भरा होता है। पांचवे भाग में यदि जन्म होता है तो वह वंश के लिए अशुभ होता है। । छठे भाग का जन्म स्वयं के और धन के लिए अशुभ होता है। कृष्ण चतुर्दशी पर जम्न होने पर अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए बच्चे के माता-पिता और खुद का अभिषेक करना चाहिए और इसके साथ ब्रह्मण भोज और छायापात्र का दान करना चाहिए।
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