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अगर आप भी शादी के ऐसे संबंध में बंधे है तो तोड़ना ही उचित है

Posted at: Mar 8 , 2020 by Dilersamachar 10786

दिलेर समाचार, सोनी मल्होत्रा। पायल और राज की जोड़ी को देखकर हमारे मुंह से हमेशा यही निकलता था कि अगर हम सफल दांपत्य जीवन को देखना चाहते हैं तो यही एक आदर्श जोड़ी है। हम सब को लगता कि ‘हम बने, तुम बने, एक दूजे के लिए‘ को यह जोड़ी सार्थक करती है पर हमारा यह भ्रम तब टूटा जब एक पार्टी के दौरान इस आदर्श जोड़ी का असली रूप सामने आया।
राज जो हंसमुख, मस्त नजर आता था, असल में उसके अंदर की कड़वाहट बाहर निकली जब उसने एक पार्टी के दौरान बिना किसी कारण के न केवल पायल पर हाथ उठाया बल्कि उसके परिवार वालों के साथ भी बदतमीजी से पेश आया। उस दिन हमें पायल से पता चला कि यह पहली बार नहीं। पता नहीं कितने वर्षों से होता चला आ रहा है और पायल इसे अपने घरवालों से व सबसे छुपाती यह सब सहती रही है।
पायल ही क्यों, ऐसी कई पत्नियां हमें ढूंढने पर मिल जाएंगी जो सिर्फ इस डर से कि ‘लोग क्या कहेंगे‘, ‘सब हंसी उड़ाएंगे‘, ‘अब इतनी कट गई तो आगे भी कट जाएगी‘, ‘बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा‘ जैसी बातें सोच कर सारी जिंदगी खुद सुलगती रहती हैं और इन सब बातों की खातिर एक ऐसे व्यक्ति का साथ उम्र भर निभाती हैं जिसे उसकी तनिक भी परवाह नहीं होती, जिसके लिए उसकी भावनाएं व इच्छाएं कोई मायने नहीं रखती। 
सहनशीलता व शर्म, नारी के आभूषण तो हैं पर इनकी आड़ में अपने जीवन की आहुति देना और बिना किसी कारण जुल्म सहना नारी की कायरता है। वैसे तो आज नारी स्वतंत्राता की बात की जाती है पर ऐसी नारियां बहुत कम ही मिलेंगी जो सही अर्थ में स्वतंत्रा हुई हैं। आज भी आप देखेंगे कि तलाकशुदा पुरूषों को तो पुनः विवाह के लिए रिश्ता ढूंढ़ते वक्त कुंवारी कन्याएं भी मिल जाती हैं पर जहां लड़की की बात आती है तो हजार सवाल खड़े हो जाते हैं और समाज का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। समाज ऐसी लड़की को संदेह के नजरिए से जांचता है, इसलिए यह कहना कि आज की नारी स्वतंत्रा है, पुरूष के बराबर स्थान पर है, शायद सब नारियों पर सही नहीं बैठता।
प्रश्न यह नहीं कि नारी स्वतंत्रा है या नहीं, प्रश्न यह है कि वे पत्नियां जो अपनी सारी जिंदगी सिर्फ पति के जुल्म सहते हुए निकाल देती हैं, उन्हें क्या ऐसा करना चाहिए या नहीं। संबंधों को जोड़ने की कोशिश करना, अपने जीवन साथी की पसंद की खातिर स्वयं को बदलने का प्रयास करना, अपनी इच्छाओं को मार कर उसकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करना गलत नहीं है बल्कि एक सफल दांपत्य जीवन के लिए कभी-कभी आवश्यक भी हो जाता है पर अगर इतना कुछ करने पर भी सिर्फ आपको बदले में पति की मार, रूखेपन व गालियों का उपहार ही मिलता है तो जरूरत होती  है एक सही फैसला लेने की क्योंकि आपकी अपनी जिंदगी तो नरक बन ही चुकी होती है, साथ ही आपके बच्चे का भविष्य भी अंधकारमय होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि ऐसी महिलाओं के बच्चे बचपन में तो सहमे रहते ही हैं, उनके दिलो दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है और वे डिप्रेशन का शिकार भी हो सकते हैं, इसलिए ऐसे पुरूष के साथ सारी जिंदगी निभाना एक गलत फैसला ही है।
कई औरतें यह भी सोचती हैं कि शायद आज नहीं तो कल उनका पति सुधर जाएगा और इस सुधार के इंतजार में वे जुल्म सहती रहती हैं पर उनका इंतजार खत्म नहीं होता। डाॅली को ही लीजिए। जब उसकी शादी हुई तो उसके पति व सास का व्यवहार उससे अच्छा नहीं था पर उसने सोचा कि बच्चा होने पर सब ठीक हो जाएगा। डाॅली की पहली लड़की हुई तो भी उसके पति के व्यवहार में सुधार नहीं आया।
डाॅली को लगा शायद बेटी होने के कारण उसका पति नहीं सुधरा। शायद बेटा होने पर सुधर जाए, इसलिए वह सब अत्याचार सहती रही और आज बेटे का भी बेटा पैदा हो चुका है पर आज भी वह इस उम्मीद में है कि शायद बुढ़ापे में उसके पति को अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह सुधर जाए। पता नहीं उसका इंतजार खत्म होगा भी या नहीं पर उसकी सारी जिंदगी तो दुखों का पहाड़ ही रही। अगर प्रारंभ में ही वह कोई कड़ा फैसला ले लेती तो शायद उसे आज इतना इंतजार नहीं करना पड़ता।
पर इतना कड़ा फैसला लेने के लिए लड़की को बहुत हिम्मत चाहिए क्योंकि आज भी भारतीय समाज में लड़कियों को समाज के कड़वे प्रश्नों का सामना करना पड़ता है। अगर लड़की को अपने माता-पिता व भाई बहनों का सहारा मिले तो वह शायद ऐसा कदम उठा सकती है और अपनी जिदंगी को नरक बनने से बचा सकती है। इसमें सबसे अधिक दायित्व होता है माता-पिता का। लड़की की शादी करते वक्त वे यह न सोचें कि उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई। लड़की को ‘एडजस्ट‘ करना सिखाएं पर मार खाना न सिखाएं। अपनी जायदाद में लड़की का हिस्सा रखना न भूलें। कभी मुश्किल आने पर वह आर्थिक रूप से तो स्वतंत्रा रहेगी।
सबसे ज्यादा जरूरी है लड़की की हिम्मत बनाए रखना, उसे टूटने न देना क्योंकि जिंदगी ने तो उसके साथ गलत किया ही होता है और अगर उसकी हिम्मत भी टूट जाएगी तो वह कोई गलत कदम भी उठा सकती है, इसलिए बेटी को बेटा मानकर उसकी जिम्मेदारी उठाएं। जब आप बेटे को अपने साथ रख सकते हैं तो बेटी को क्यों नहीं रख सकते। ‘समाज क्या कहेगा’, आदि सब बातें खोखली हैं। समाज हम बनाते हैं न कि समाज हमें।
अगर माता-पिता प्रारंभ से ही अपनी बेटी को बेटा मान कर उसे समान अधिकार देंगे तो शायद लड़की शादी होने के बाद अत्याचार, जुल्म सहते रहने की बजाय अपनी जिदंगी को खुशनुमा बनाए रखने में सक्षम हो जाएगी और फैसला लेते वक्त हिचकिचाएगी नहीं कि उसका आगे क्या होगा। 

 

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