Logo
March 29 2024 05:02 AM

कन्या भ्रूण गर्भपात रोकने में धार्मिक आस्थाओं का महत्त्व

Posted at: May 16 , 2019 by Dilersamachar 10245

विवेक रंजन श्रीवास्तव

हमारे देश की पहचान एक धर्म प्रधान, अहिंसा व आध्यात्मिकता के प्रेमी  और नारी गौरव-गरिमा का देश होने की है। फिर क्या कारण है कि इस शिक्षित युग में भी बेटियांे की यह स्थिति हुई है कि उन्हें बचाने के लिए सरकारी अभियान की जरूरत महसूस की जा रही है। एक ओर कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी बेटियां अंतरिक्ष में भी हमारा नाम रोशन कर रही हैं।

महिलाएं राजनीति के सर्वोच्च पदों पर हैं। पर्वतारोहण, खेल, कला, संस्कृति, व्यापार,जीवन के हर क्षेत्रा में लड़कियांे ने सफलता की कहानियां गढ़कर सिद्ध कर दिखाया है कि ‘का नहिं अबला करि सकै, का नहि समुद्र समाय’  तो दूसरी और माता पिता उन्हें जन्म से पहले ही मार देना चाहते हैं। यह विरोधाभासी स्थिति मौलिक मानवाधिकारांे का हनन तथा समाज की मानसिक विकृति की सूचक है। पुरुषों की तुलना में निरंतर गिरते स्त्राी अनुपात के चलते इन दिनों देश में ’बेटी बचाओ अभियान’  की आवश्यकता आन पड़ी है। 

नारी-अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से समाज ग्रस्त है। सबसे दुखद ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमें आत्ममंथन व चिंतन के लिए विवश कर रही है। एक ओर नारी स्वातंत्रय की लहर चल रही है तो दूसरी ओर स्त्राी के प्रति निरंतर बढ़ते  अपराध दुखद हैं।  साहित्य की एक सर्वथा नई धारा के रूप में स्त्राी विमर्श पर चर्चा और रचनाएं हो रही हैं, ’नारी के अधिकार’, ’नारी वस्तु नहीं, व्यक्ति है’। वह केवल ’भोग्या नहीं, समाज में बराबरी की भागीदार हैं’, जैसे वैचारिक मुद्दों पर लेखन और सृजन हो रहा है पर फिर भी नारी के प्रति सामाजिक दृृष्टिकोण में वांछित सकारात्मक बदलाव का अभाव  है।

’यत्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्रा देवताः’ अर्थात जहाँ नारियांे की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है यह उद्घोष, हिन्दू समाज से कन्या भ्रूण हत्या ही नहीं, नारी के प्रति समस्त अपराधों को समूल समाप्त करने की क्षमता रखता है। जरूरत है कि इस उद्घोष में व्यापक आस्था पैदा हो। नौ दुर्गा उत्सवांे पर कन्या पूजन, हवन हेतु अग्नि प्रदान करने वाली कन्या का पूजन हमारी संस्कृति में कन्या के महत्त्व को रेखांकित करता है। आज पुनः इस भावना को बलवती बनाने की आवश्यकता है।

बेटियों की निर्मम हत्या की  कुप्रथा को जन्म देने में अल्ट्रा साउन्ड से कन्या भ्रूण की पहचान की वैज्ञानिक खोज का दुरुपयोग जिम्मेदार है। केवल सरकारी कानूनांे से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के स्थाई प्रयास संभव नहीं हैं। दरअसल इस समस्या का हल कानून या प्रशासनिक व्यवस्था से कहीं अधिक स्वयं ‘मनुष्य’  के अंतःकरण, उसकी आत्मा, प्रकृति व मनोवृत्ति, मानवीय स्वभाव, उसकी चेतना,  मान्यताआंे व धारणाआंे और उसकी सोच में बदलाव तथा नारी सशक्तिकरण ही इस समस्या का स्थाई हल है। यू ए ई, केनेडा, आदि अनेक देशांे में प्रसव पूर्व बच्चे का सेक्स माता पिता को सहज ही बता दिया जाता है किन्तु वहां समाज का शैक्षिक व मानसिक स्तर ऐसा है कि इससे गर्भपात जैसी स्थितियां नहीं बनती। गर्भपात को लेकर सख्त कानून भी हैं। 

समाज की  मानसिकता व मनोप्रवृृत्ति  में यह स्थाई बदलाव आध्यात्मिक चिंतन तथा ईश्वरीय सत्ता में विश्वास और पारलौकिक जीवन में आज के अच्छे या बुरे कर्मों का तद्नुसार फल मिलने के कथित धार्मिक सिद्धान्तों की मान्यता पर दृृढ़ता से संभव है। विज्ञान  धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाता है किन्तु सच यह है कि अध्यात्म, विज्ञान का ही विस्तारित स्वरुप है। विभिन्न धर्मो के आडम्बर रहित धार्मिक विधिविधान वे सैद्धांतिक सूत्रा हैं जो हमें ध्येय लक्ष्यांे तक पहंु्चाते हैं।

ईसाई समाज में  पत्नी को ’बैटर हाफ’ का दर्जा तथा लेडीज फर्स्ट  की संकल्पना नारी के प्रति सम्मान की सूचक है। जैन संप्रदाय में तो छोटे से छोटे कीटाणुओं की हिंसा तक वर्जित है। इसी तरह अन्य धर्मों में भी मातृ शक्ति के महत्त्व के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं किन्तु इन धार्मिक आख्यानों को किताबांे से बाहर समाज में व्यवहारिक रूप में अपनाए जाने की जरूरत है।

पैगम्बर मुहम्मद  ने कन्या हत्या रोकने के लिए  भाषण देने, आन्दोलन चलाने और ‘कानून अदालत या जेल’ का प्रकरण बनाने के बजाय केवल इतना कहा है कि ‘जिस व्यक्ति के  बेटियां हों, वह उन्हें जिन्दा गाड़कर उनकी हत्या न कर दे। उन्हें सप्रेम व स्नेहपूर्वक पाले-पोसे, उन्हें नेकी, शालीनता, सदाचरण व ईशपरायणता की उत्तम शिक्षा-दीक्षा दे, बेटों को उनसे बढ़कर न माने। नेक रिश्ता ढूंढ़कर बेटियों का घर बसा दे, तो वह स्वर्ग में मेरे साथ रहेगा’।

मुस्लिम समाज कुरानशरीफ की इस प्रलोभन भरी शिक्षा को अपनाकर, बेटी की अच्छी परवरिश से स्वर्ग-प्राप्ति का  अवसर मानकर प्रसन्न हो सकता है और  लालच में ही सही पर लड़कियों के प्रति अपराध रुक सकते हैं। जरूरत है इस विश्वास में भरपूर आस्था की।  कुरान में कहा गया है कि परलोक में हिसाब-किताब वाले दिन  जिन्दा गाड़ी गई बच्ची से ईश्वर पूछेगा कि वह किस जुर्म में कत्ल की गई थी ? इस तरह कन्या-वध करने वालों को अल्लाह  ने चेतावनी भी दी है।

मनुष्य  कभी कुछ काम लाभ की चाहत में करता है और कभी  भय से, और नुकसान से बचने के लिए करता है। इंसान के रचयिता ईश्वर से अच्छा, भला इस मानवीय कमजोरी  को और कौन जान सकता है ? अतः इस पहलू से भी धार्मिक मान्यताआंे में रुढि़वादी आस्था ही सही किन्तु ईश्वरीय सत्ता में विश्वास, पाप पुण्य के लेखा जोखा की संकल्पना, कन्या भ्रूण गर्भपात के अनैतिक सामाजिक दुराचरण पर स्थाई रोक लगाने में मदद कर सकता है। 

ये भी पढ़े: साध्वी प्रज्ञा और हिन्दू आतंकवाद - सत्य या मिथक

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED