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लगातार बढ़ रही है नशे की प्रवृृत्ति

Posted at: Jun 2 , 2019 by Dilersamachar 9513

नरेंद्र देवांगन

अनुभूतियों और संवेदनाओं का केंद्र मनुष्य का मस्तिष्क है। सुख-दुख, कष्ट-आनंद, सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है तथा मस्तिष्क ही प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने का जोड़-तोड़ करता है। कई लोग इन समस्याओं से घबराकर अपना जीवन ही नष्ट कर लेते हैं। अधिकांश व्यक्ति जीवन से पलायन करने के लिए अजीब उपाय अपनाते हैं।

जैसे शुतुरमुर्ग संकट को देखकर अपना सिर रेत में छिपा लेता है, उसी तरह की पलायनवादी प्रवृत्तियों में मुख्य है मादक द्रव्यों की शरण में जाना। शराब, गांजा, भांग, चरस, अफीम, ताड़ी आदि नशे वास्तविक जीवन से पलायन करने की इसी मनोवृत्ति के परिचायक हैं। लोग इनका सेवन या तो जीवन की समस्याओं से घबराकर करते हैं या फिर अपने संगी-साथियों को देखकर उन्हें अपनाकर अपना मनोबल चौपट करते हैं।

मादक द्रव्यों के प्रभाव से वे अपनी अनुभूतियों, संवेदनाओं तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझ-बूझ और सोचने-विचारने की क्षमता भी खो देते हैं। मादक द्रव्य इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वाले को तत्काल अपने आसपास की दुनिया से काट देते हैं और उसे विक्षिप्त कर देते हैं। ऐसी वस्तु जिसकी मांग हमारा मस्तिष्क करता है लेकिन उससे शारीरिक नुकसान हो तो वह नशा कहलाता है। मानसिक स्थिति को उत्तेजित करने वाले रसायन जो नींद, नशे या भ्रम की हालत में शरीर को ले जाते हैं, वे ड्रग्स कहलाते हैं।

मादक द्रव्यों के बढ़ते प्रचलन के लिए आधुनिक सभ्यताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिसमें व्यक्ति यांत्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड़ में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगों का भी ध्यान नहीं रहता। नशा एक अभिशाप है। यह एक ऐसी बुराई है जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत की आगोश में चला जाता है और उसका परिवार बिखर जाता है। व्यक्ति के नशे के आदी होने के कई कारण हो सकते हैं।

माता-पिता की अति व्यस्तता बच्चों में अकेलापन भर देती है। प्यार से वंचित होने के कारण वे नशे की दुनिया का रूख कर लेते हैं। परिवार में कलह का वातावरण व्यक्ति को नशे की ओर ढकेलता है। मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है। यह मानसिक परेशानी पारिवारिक, आर्थिक तथा सामाजिक भी हो सकती है। बेरोजगारी भी नशे की ओर उन्मुख होने का एक प्रमुख कारण है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। दिनभर घर में खाली और बेरोजगार बैठे रहने से व्यक्ति हीनभावना का शिकार होता है और इसे दूर करने के लिए वह नशे का सहारा लेता है।

शारीरिक कमजोरी व पढ़ने में कमजोर होने के कारण बच्चे उस कमी को पूरा करने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं। जो व्यक्ति तनाव, अवसाद और मानसिक बीमारी से पीडि़त है, वह नशे का आदी हो जाता है। परिवार के व्यक्ति, दोस्त तथा अपने आदर्श व्यक्ति को नशा लेते देखकर युवा नशे का शिकार होते हैं। कुछ लोग यह सोचकर नशा लेते हैं कि नशा तनाव को दूर करता है। किसी दूसरे की दवा को खुद पर आजमाने से व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है।

चोट या दर्द की वजह से डॉक्टर दवा लिखता है जिससे आराम मिलता है। जब भी चोट लगे या दर्द हो, वह दवा बार-बार लेने लगता है जिससे वह नशे का आदी हो जाता है। पुरानी, दुखद घटनाओं को भूलने के लिए भी लोग नशे का सहारा लेते हैैं। लोग सोचते हैं कि ड्रग्स लेने से वह फिट और तंदुरूस्त रहेंगे। विशेषकर खिलाड़ी किसी कारण मादक द्रव्यों की चपेट में आ जाते हैं। बच्चों में भेदभाव करने पर वे हीनभावना से ग्रसित हो जाते हैं और विद्रोह स्वरूप नशे की ओर मुड़ जाते हैं।

अपराध ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार छोटे-बड़े अपराधों, बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, राहजनी आदि तमाम तरह की वारदातों में नशे के सेवन का मामला लगभग साढ़े 73 फीसदी तक है। अपराधजगत पर गहन नजर रखने वाले मनोविज्ञानी बताते हैं कि अपराध करने के लिए जिस उत्तेजना, मानसिक उद्वेग और दिमागी तनाव की जरूरत होती है उसकी पूर्ति नशा करता है जिसका सेवन मस्तिष्क के लिए एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है।

नशे की लत वाले व्यक्ति को विभिन्न स्तरों पर उपचार की जरूरत होती है। इसके लिए कुशल चिकित्सक की देख-रेख में उपचार जरूरी है। अधिकांश इलाज नशे के सेवन को बंद करने में मदद करने पर केंद्रित होते हैं जिसके बाद उन्हें नशे के प्रयोग पर फिर लौटने से रोकने में उनकी मदद करने के लिए जीवन प्रशिक्षण सामाजिक समर्थन की आवश्यकता होती है।

डिटॉक्सीफिकेशन उपचार का शुरूआती स्तर है। इसमें नशे के परिणामों को कम करने के लिए दूसरी दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रबंधन बहुत सतर्कता से किया जाना चाहिए। दवा उपचार, अनुकूलन और मनोवैज्ञानिक सहायता के बिना संभव नहीं है। गंभीर नशे के आदी व्यक्ति को लंबे उपचार की जरूरत पड़ती है। इसमें रोगी को 24 घंटे चिकित्सक की देख-रेख में रखा जाता है। इसमें 8 से 12 माह लगातार सामाजिक, पारिवारिक और मानसिक स्तरों पर चिकित्सक उपचार करते हैं। छोटे उपचार में रोगी करीब 3 से 6 सप्ताह तक चिकित्सक की निगरानी में रहता है।

व्यक्तिगत परामर्श उपचार में रोगी के संपूर्ण इतिहास पर परामर्श दिया जाता है। रोगी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, रोजगार, सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में गहन अध्ययन पर चिकित्सक उसके योग्य उचित सलाह तथा इलाज का परामर्श देते हैं। परामर्शदाता 12 सप्ताह तक रोगी को नशे से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक, सामाजिक और सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशा मुक्ति संस्थाएं इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। नशा रोकने में सबसे बड़ी समस्या है कि हम सिर्फ जागरूकता पर जोर देते हैं, उसकी रोकथाम के प्रयास कम करते हैं। जागरूकता सिर्फ बड़ों को नशे की लत से दूर करती है जबकि रोकथाम बचपन से नशे की लत न लगे, इसके लिए जरूरी है। राष्ट्रीय स्तर पर चेतना जरूरी है।

ये भी पढ़े: हिंसा का निषेध और अहिंसा का सम्प्रेषण

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