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Ego को हटाकर भारत और चीन ने भी सुधार लिए अपने रिश्ते

Posted at: Aug 30 , 2017 by Dilersamachar 9845

दिलेर समाचार, दुनिया इसे भारत की कूटनीतिक जीत कह रही है. ऐसा क्यों है, ये समझना भी आपके लिए ज़रुरी है. लेकिन सबसे पहले आपको इस बड़ी ख़बर की मुख्य बातें पता होनी चाहिए.भारत के विदेश मंत्रालय ने आज सुबह एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया, कि दोनों देशों ने कूटनीतिक बातचीत के बाद डोकलाम में सैनिकों को पीछे हटाने का फैसला कर लिया है लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने सिर्फ भारत के सैनिकों के पीछे हटने की घोषणा की इसके बाद शाम को भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक और बयान जारी किया और इस बार कहा गया, कि दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने का काम लगभग पूरा हो चुका है और इसे Verify भी कर लिया गया है.ऐसा माना जा रहा है कि दोनों देशों ने जो फैसला लिया है, उसके मुताबिक, चीन...विवादित क्षेत्र में सड़क नहीं बनाएगा और भारत वहां से पीछे हट जाएगा चीन ने उस जगह पर जाकर इस बात की पुष्टि भी की है, कि भारत ने अपनी सेना वहां से हटा ली है हालांकि, चीन ने ये ज़रुर कहा है, कि वो उस इलाके में मौजूद अपनी सीमा में Patroling करता रहेगा. और अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठाता रहेगा.जून में शुरू हुए टकराव के बीच, दोनों ही देशों ने भूटान के डोकलाम में सीमा पर अपनी सेना तैनात कर दी थी ऐसा, इसलिए हुआ था क्योंकि चीन, डोकलाम में सड़क बनाने की कोशिशें कर रहा था. जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया था. इस दौरान चीन ये कहता रहा, कि जब तक भारत डोकलाम से अपनी सेना नहीं हटाता, तब तक माहौल ठीक नहीं होगा जबकि भारत की शर्त ये थी कि जब तक उस इलाके में चीन सड़क बनाना नहीं रोकेगा तब तक भारत की सेना वहां से पीछे नहीं हटेगी.यानि चीन का डोकलाम में सड़क ना बनाने का फैसला लेना एक तरह से भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, अब ये देखिए.सीमा के जिस विवाद को लेकर चीन इतनी हेकड़ी दिखाता है, वो भारत, चीन और भूटान तीनों के लिए सैनिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है ये चीन और भूटान के बीच का विवाद है.कलाम के जिस इलाके पर इतना विवाद हुआ, वहां से चुंबी वैली का हिस्सा बहुत क़रीब है. ये वो इलाक़ा है जहां भारत, भूटान और चीन की सीमाएं मिलती हैं चीन इस क्षेत्र को डोंगलांग कहता है और प्राचीन काल से इसे अपना हिस्सा बताता है चीन के मुताबिक वर्ष 1890 की Sino-British Treaty के तहत ये ज़मीन उसके इलाके में आती है. भूटान चीन का वो पड़ोसी है जिसके साथ उसके कूटनीतिक संबंध नहीं है.सिक्किम पर कब्ज़े के लिए चीन पिछले कई वर्षों से लगातार कोशिश कर रहा है चीन को इस बात की जलन है, कि वर्ष 1975 में हुए जनमत संग्रह के बाद सिक्किम का भारत में विलय हुआ. चीन जानता है, कि सैन्य ताकत के लिहाज़ से भूटान उसके मुक़ाबले बेहद कमज़ोर है लेकिन, उसे इस बात की चिढ़ है, कि भारतीय सेना भूटान की सेना को Training देती है.

भूटान के सैनिकों को Training देने के लिए भारत ने वहां पर स्थाई रुप से Indian Military Training Team तैनात की हुई है मौजूदा विवाद के दौरान चीन ये कहता रहा, कि भारत इस पूरे मामले में तीसरा पक्ष है लेकिन सच ये है, कि वर्ष 2012 में दोनों देशों के बीच एक करार हुआ था जिसके तहत, भारत...चीन और किसी तीसरे देश के बीच Tri-Junction Boundary को लेकर जो भी विवाद है उसे संबंधित देश से बात करके ही हल किया जा सकता है.अब आपको ये बताते हैं, कि दुनिया इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर क्यों देख रही है? चीन के सैनिकों ने उस इलाके में अपना कदम रखा था, जो उनका नहीं, बल्कि भूटान का था दूसरी तरफ भारत और भूटान आपस में गहरे मित्र हैं और अगर कोई तीसरा देश ज़मीन हड़पने की मंशा से भारत या भूटान में घुसपैठ की कोशिश करता है, तो ये दोनों देश एक साथ मिलकर उसका सामना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.चीन ने भूटान के डोकलाम में अनैतिक हरकत की इसलिए ये भारत की ज़िम्मेदारी थी कि वो अपने सैनिकों को भेजकर डोकलाम की हिफाज़त करे. और भारत ने बिल्कुल वैसा ही किया, भूटान को सबक सिखाने के लिए चीन ने People’s Liberation Army को हथियार बनाया. इस दौरान चीन ये सोचता रहा, कि भारत पहले की तरह शांत बैठा रहेगा और यहीं पर उससे ग़लती हो गई. क्योंकि, चाणक्य नीति पर चलते हुए भारत ना सिर्फ भूटान के साथ खड़ा रहा बल्कि उसकी हर प्रकार से मदद भी की.अगर भारत चीन के आक्रामक रवैये से डर जाता, तो भविष्य में भारत का कोई भी पड़ोसी उसके साथ खड़ा नहीं होता आपने ध्यान दिया होगा, कि ढाई महीने के दौरान चीन के मीडिया ने काफी कुछ कहा. वहां के विदेश मंत्रालय ने भी धमकी भरे लहज़े में भारत को डराने की कोशिश की लेकिन, इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने.. एक दूसरे के ख़िलाफ एक शब्द नहीं कहा चीन ढाई महीने तक एक तरह का मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहा था.लेकिन कूटनीति के मुद्दे पर वो भारत के प्रधानमंत्री की सोच को पकड़ नहीं पाया क्योंकि, चीन के ज़्यादातर अधिकारियों और सैनिकों ने उनके काम करने के तरीके के बारे में इससे पहले ना तो सुना था और ना ही कभी देखा था अगर चीन, भारत की बात नहीं मानता, तो सितम्बर में होने वाली BRICS Summit पर भी इसका असर पड़ सकता था.चीन के लिए BRICS Summit काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि, पश्चिमी देशों की आर्थिक ताकत से मुक़ाबला करने के लिए BRICS एक प्रकार का Alternate Economic Block है अगर भारत BRICS सम्मेलन में भाग नहीं लेता तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की बहुत किरकिरी होती डोकलाम के मुद्दे पर भारत की कूटनीति का ही असर था कि कई दूसरे देशों ने भारत का साथ दिया. जबकि चीन ऐसा करने में नाकाम रहा.अमेरिका, ब्रिटेन और जापान ने ना सिर्फ खुले तौर पर भारत का साथ दिया था. बल्कि चीन से कहा था, कि वो इस विवाद का हल कूटनीतिक तरीकों से निकाले. यहां तक कि पाकिस्तान तक ने चीन का खुलकर साथ नहीं दिया. डोकलाम में चीन के पीछे हटने की एक वजह ये भी थी, कि भारत के सैनिक ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात थे. जबकि चीन के सैनिक नीचे थे. यानी रणनीतिक तौर पर भारत को यहां बढ़त हासिल थी यहां हमें ये भी देखना होगा कि भारत की इस कूटनीतिक जीत का श्रेय किसे जाता है?ये जीत Team Work का नतीजा है और इस टीम के कप्तान हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके अलावा टीम के महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैंराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार- अजित डोवल, विदेश मंत्री-सुषमा स्वराज, विदेश सचिव, एस जयशंकर और आर्मी चीफ-जनरल बिपिन रावत आपको याद होगा BRICS देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के लिए NSA अजित डोवल चीन गए थे और वहां पर उन्होंने Chinese State Councilor से मुलाकात भी की थी. भारत और चीन के बीच भूटान सीमा पर तनाव के बीच इस मुलाकात को काफ़ी महत्वपूर्ण माना गया था और हो सकता है कि इस मुलाकात का असर भी आज हुए फैसले पर पड़ा हो.कुल मिलाकर, इस फैसले का सार ये है, कि अब दोनों देशों के बीच का तनाव थोड़ा कम होगा. वैसे भी, BRICS Summit से पहले ये ज़रूरी था कि इसके दो महत्वपूर्ण सदस्य देश तनावमुक्त माहौल में एक साथ बैठ पाएं और सहजता के साथ बातचीत कर सकें लेकिन यहां एक सवाल भी खड़ा होता है.. और ये सवाल चीन की मंशा को लेकर है.ऐसा भी हो सकता है कि चीन सिर्फ BRICS Summit के सही-सलामत गुज़रने के लिए कोई चाल नहीं चल रहा हो झूठ बोलना और धोखा देना चीन की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का एक अटूट हिस्सा है.. इसलिए भारत को डोकलाम ही नहीं बल्कि पूरी LAC पर बहुत सावधान रहना होगा और अब आपको इस ख़बर से जुड़े एक दिलचस्प पहलू के बारे में बताते हैं एक तरफ भारत सरहद पर चीन का सामना करता है और दूसरी तरफ भारत का नीति आयोग अपनी रिपोर्ट में 60 से भी ज़्यादा बार चीन का ज़िक्र करता है और उसके Development Model से सीखने की बात करता है यानि हम चीन से संघर्ष भी कर रहे हैं और शिक्षा भी ले रहे हैं ये एक नई तरह की कूटनीति है जिसे आपको समझना चाहिए नीति आयोग ने भारत की आर्थिक तरक्की के लिए Three Year Action Agenda तैयार किया है.लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है, कि भारत को आर्थिक ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए बनाई गई इस रिपोर्ट में Chinese Model से सीखने और प्रेरणा लेने की बातें कही गई हैं. भारत सरकार के Think Tank द्वारा तैयार की गई 211 पन्नों की रिपोर्ट में, China Chinese और Beijing जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक या दो बार नहीं बल्कि पूरे 67 बार किया गया है.इस रिपोर्ट में नीति आयोग ने चीन की आर्थिक शक्ति को पहचाना है, बल्कि इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, कि भारत, चीन के मुक़ाबले काफी पीछे है.Special Economic Zones से लेकर Job Creation तक World-Class Universities से लेकर Modern शहरों तक, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले नीति आयोग ने हर पहलू का अध्यन किया है.इसमें कहा गया है, कि भारत को Special Economic Zones के मामले में चीन के Model को अपनाना होगा इसके अलावा, इस रिपोर्ट में Make in India को क़ामयाब बनाने के लिए Global Market में उतरने की बात कही गई है. ठीक वैसा ही, जैसा चीन या दूसरे देश करते हैं इस रिपोर्ट में चीन के शहर Shenzhen का भी ज़िक्र किया गया है.40 वर्ष पहले चीन का ये शहर किसी आम शहर के जैसा ही था. लेकिन Urbanisation की मदद से इसे एक ऐसी Mega City बना दिया गया, जिसकी बदौलत आज ये चीन का सबसे धनवान शहर बन गया है. हमारे देश में Smart Cities बनाने की योजना पर तेज़ी से काम चल रहा है लेकिन ये भी एक सच है, कि भारत के पास चीन जैसी Mega Cities नहीं हैं, जहां से भारत की तरक्की के रास्ते खुल सकें.उदाहरण के तौर पर मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलुरु, और हैदराबाद जैसे शहरों को ही ले लीजिए. क्योंकि, बात चाहे आर्थिक तरक्की की हो जनसंख्या की हो Innovation की हो आम तौर पर इन्हीं शहरों का नाम लिया जाता है.2011 की जनगणना के मुताबिक इन 6 शहरों की कुल जनसंख्या कम से कम 7 करोड़ है. देश के सभी महत्वपूर्ण दफ़्तर और संस्थान इन्हीं शहरों में हैं.सारी बड़ी कंपनियां भी इन्हीं शहरों में काम करती हैं. ज़ाहिर है जहां किसी देश की सबसे ज़्यादा व्यावसायिक गतिविधि होती हैं लोगों की भीड़ भी उन्हीं शहरों की तरफ आती है ऐसे में अगर हमारे देश में बड़े और स्मार्ट शहरों की संख्या तेज़ी से बढ़ेगी तो इन 6 शहरों पर पड़ने वाला भीड़ का बोझ कम हो जाएगा और देश के संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो पाएगा.सवाल ये है, कि अगर चीन किसी ज़माने में Market Town के नाम से मशहूर Shenzhen को एक आधुनिक और धनवान शहर बना सकता है....तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? अगर चीन Smart नीतियों की मदद से 200 से ज़्यादा Smart Cities बना सकता है तो फिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता ?जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2017 के अंत तक चीन में Smart Cities की संख्या 500 तक पहुंचसकती है. ऐसे में हमें अपनी Speed बढ़ानी होगी. शायद यही वजह है कि नीति आयोग के Three Year Action Agenda में चीन को इतनी प्रमुखता से जगह दी गई है. इस रिपोर्ट में ऐसा संदेश देने की कोशिश की गई है, कि चीन के अंदर जितनी खूबियां हैं उन्हें जल्द से जल्द सीखना होगा. चीन कैसे अपने शहरों को स्मार्ट बना रहा है ये आपको बताने के लिए हमने ground reporting की है आज हम आपको चीन के Smart शहर चोंग-चींग में लेकर चलेंगे वहां की तस्वीरें और सुविधाएं देखकर आपको पता चल जाएगा कि एक Smart देश बनने के लिए भारत को चीन से कौन-कौन सी चीज़ें सीखने की ज़रुरत है. चीन ने भारत को धमकी दी थी कि ये 1962 नहीं 2017 है. और भारत ने भी अपनी भाषा में चीन को समझा दिया कि वो 1962 का नहीं बल्कि 2017 का भारत है चीन को अपनी ज़िद से पीछे धकेलना बहुत मुश्किल है. लेकिन भारत ने अपनी भाषा में चीन को जवाब दे दिया है अभी तक इस बात पर संशय बना हुआ था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के शियामेन शहर में होने वाले BRICS सम्मेलन में हिस्सा लेंगे या नहीं और चीन को भी इस बात का डर था कि अगर नरेंद्र मोदी नहीं आए तो BRICS सम्मेलन पर पानी फिर जाएगा लेकिन अब ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी BRICS Summit में जाएंगे और कुछ दिनों के लिए सब कुछ ठीक हो जाएगा.

ये भी पढ़े: यूपी-असम में रहने वालों के राहत की बात।

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