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भारत-पाक दो देश, जुदा भेष

Posted at: Oct 24 , 2019 by Dilersamachar 9681

नरेन्द्र देवांगन

1947 में दो देश बने, एक भारत तो दूसरा पाकिस्तान। आज भारत को दुनिया सबसे बड़े लोकतंत्रा के रूप में जानती है जो ‘सबका साथ सबके विकास’ मंत्रा के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर उन्मुख है। दूसरे देश पाकिस्तान की भी एक विशिष्ट पहचान बनी। दुनिया ने इसे आतंक की नर्सरी के रूप में जाना-समझा। आर्थिक रूप से बदहाल यह देश अपने लोभी मित्रों की खैरात पर जिंदा है। पाकिस्तान में लोगों को बुनियादी जरूरतें ही नहीं पूरी हो पा रही हैं। पेट्रोल से महंगा यहां दूध हो गया है। पिछले 70 साल में तीन दशक से अधिक समय तक सैन्य शासक के रूप में पनपे तानाशाहों ने मनमानी की। ऐसे में सूरज को दीया दिखाने चले पाकिस्तान की हाल-ए-बयां मानवाधिकारी आयोग की ताजा रिपोर्ट बयां कर रही है।

पाकिस्तान के वर्तमान को समझने के लिए उसके अतीत में जाना जरूरी है। 1977 का साल था। जिया उल हक ने तख्तापलट किया और देश के सर्वेसर्वा बने। 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्राी रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया। इसी साल सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया। इस हमले ने देश में अलोकप्रिय हो चले जिया उल हक को मजबूत किया। रूस को रोकने के लिए अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को एक ऐसे ही मजबूत आदमी की तलाश थी। 1989 तक चली इस जंग के दौरान जिया उल हक पश्चिमी देशों के लाडले बने रहे। खूब आर्थिक और सैन्य मदद मिली। पाकिस्तान ने दुनिया भर से इस्लामिक लड़ाकों को कम्युनिस्टों के खिलाफ लड़ने के लिए पाकिस्तान आने का आह्वान किया।

पश्चिमी देशों के अपार समर्थन के बूते लोगों के अधिकारों का दमन करने के लिए इस्लामिक शरई कानून लागू किया। इसी के साथ पहली बार पाकिस्तान में धार्मिक नेता और कट्टरपंथी प्रभावशाली और ताकतवर हुए। पहले से ही पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक पीडि़त रहे हैं। 1974 में एक अध्यादेश के तहत अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक करार दिया गया था। अहमदी मुसलमान खुद को मुस्लिम नहीं कह सकते थे। इस्लामिक अभिवादन अस्सलाम अलैकुम सहित प्रार्थना नमाज नहीं कर सकते थे। मस्जिदों में नहीं जा सकते थे।

जियाउल हक के कार्यकाल 1984 में इस कानून को और सख्त कर दिया गया। अनुच्छे 289 ए, बी, सी और 295, 295 ए को पाकिस्तान की दंड संहिता का हिस्सा बनाया गया। अब अगर कोई अहमदी खुद को मुस्लिम कहता या अपनी धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करता पकड़ा जाता तो उसे आर्थिक दंड सहित तीन से दस साल की सख्त कैद हो सकती थी।

तानाशाह जियाउल हक ने 1986 में हदों की सीमा पार करते हुए ईशनिंदा कानून लागू किया। आज भी अल्पसंख्यकों के न्याय की मांग के खिलाफ इसी कानून का इस्तेमाल कर उनके अधिकारों को रौंदा जा रहा है। इस कानून के तहत पवित्रा कुरान की बुराई करने वाले को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। साथ ही पैगंबर मुहम्मद साहब की शान में गुस्ताखी करने वाला मृत्युदंड का भागी होगा। इसी के बाद वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऊपर जुल्मो सितम में बेतहाशा शुरू हुई वृद्धि अभी तक जारी है।

अभिव्यक्ति के नाम पर पाकिस्तान में खामोशी है। सुरक्षा एजेंसियों के साथ आतंकी समूहों पर मीडिया समूह और आम जनता निशाने पर होती है। सरकारी संस्थाओं और न्यायपालिका के खिलाफ न बोलने-लिखने को लेकर अधिकारियों का मीडिया को फरमान आता है।

महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा चरम पर है। दुष्कर्म, ऑनर किलिंग, एसिड अटैक, घरेलू हिंसा और जबरदस्ती शादी के मामले गंभीर समस्या बने हुए हैं। मानवाधिकार आयोग के अनुसार हर साल करीब एक हजार ऑनर किलिंग के मामले सामने आते हैं। एक सितंबर, 2018 को जस्टिस ताहिरा सफदर बलूचिस्तान हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बनी। पाकिस्तान के इतिहास में किसी महिला का हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनने का यह पहला मामला रहा।

मूवमेंट फॉर सॉलिडरिटी एंड पीस इन पाकिस्तान के अनुसार हर साल ईसाई और हिंदू समुदायों की करीब एक हजार लड़कियों की जबरदस्ती शादी मुस्लिम युवकों से करा दी जाती है। बच्चों के स्कूलों को आतंकी समूह आए दिन निशाना बनाते रहते हैं। अगस्त 2018 में सिर्फ गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में आतंकियों ने 12 स्कूलों को आग के हवाले कर दिया। इनमें से आधे लड़कियों के स्कूल थे। सैन्य कामांे में स्कूलों के इस्तेमाल पर इस देश ने अब तक प्रतिबंध नहीं लगाया है न ही संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षित स्कूल घोषणापत्रा पर हस्ताक्षर ही किए हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में 17 लोग फांसी की कतार में हैं। सैंकड़ांे लोग मुदकमे का दंश झेल रहे हैं। ईशनिंदा के एक चर्चित मामले में सजा काट रही 47 साल की आसिया बीबी की सजा माफ करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जब उन्हें छोड़े जाने का आदेश दिया तो कट्टरपंथियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। गली-मुहल्लों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गया। सरकारी और निजी संपत्ति को तहस-नहस किया गया। जज सहित सरकारी अधिकारियों और सेना तक को धमकाया गया।

गुलाम कश्मीर, सिंध, बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान सहित पाकिस्तान के कई हिस्से आक्रोश की आग मंे सुलग रहे हैं। सेना की बर्बरता ने यहां के लोगों के जीवन जीने के अधिकार को छीन लिया है। आतंक को रोकने के अभियानों के नाम पर अलग राष्ट्र की मांग कर रहे बलूचिस्तान सहित देश के कई हिस्सों में सेना अत्याचार ढा रही है।

आम नागरिकों के बर्बर नरसंहार के बढ़ते मामले पाकिस्तान की करनी का फल हैं। भारत विरोध के लिए उसने जिस आतंकी की नर्सरी को रोपा और खाद और पानी दी, आज वही आतंक उसे ही लहूलुहान करने लगा है।

पाकिस्तान में हर साल 18 साल की आयु से पहले शादी कर दी जाने वाली लड़कियों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है। 3 प्रतिशत ऐसी लड़कियां हैं जिनकी शादी 15 साल से पहले ही कर दी जाती है। 50 लाख उन बच्चों की पाकिस्तान में संख्या है जो प्राइमरी में जाने की आयु में स्कूल से बाहर रहने को विवश हैं। इनमें अधिकांश लड़कियां हैं। 8000 सजा-याफ्ता कैदी फांसी का इंतजार कर रहे हैं। फांसी लटकाने के इंतजार में यह किसी एक देश से दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है।

भारत में पाकिस्तान की तुलना में स्थिति काफी बेहतर है। भारत की सरकारें अल्पसंख्यकों का पूरा ख्याल रखती हैं। पाकिस्तान की आबादी से ज्यादा भारत में अल्पसंख्यक हैं। इनमें मुसलमान सर्वाधिक हैं। भारत का मुसलमान विश्व के हर देश के मुसलमानों से अच्छी हालत में है। भारत का संविधान यहां के मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण की सबसे बड़ी गारंटी है। इस संविधान ने जो अधिकार आम नागरिकों को दिए हैं उससे ज्यादा अपने अल्पसंख्यकों को दिए हैं। 

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